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सर्वोच्च न्यायालय कास्थगन आदेश-तरुण विजयजब डा. सुब्राह्मण्यम स्वामी ने सर्वोच्च न्यायालय में रामसेतु को विस्फोटकों से न उड़ाने देने की प्रार्थना करने वाली याचिका दायर करने का फैसला किया, तो प्राय: सभी ने उनका मजाक उड़ाया और कहा, आपके पास क्या सबूत है, किस कागज या दस्तावेज को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के पास जाओगे, सर्वोच्च न्यायालय को किस प्रकार से प्रभावित करोगे कि वह आपकी याचिका पर तुरन्त सुनवाई करे? और फिर स्थगनादेश हा…हा…हा!!डा. सुब्राह्मण्यम स्वामी स्वयं कुछ अनिश्चितमना थे, लन्होंने सोचा, राम जी का काम है, जो होना होगा, राम जी देखेंगे। उन्होंने 31 तारीख की सुबह याचिका दायर की और उसी दोपहर ही याचिका पर अपना निर्णय सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने अगली सुनवाई यानी 14 सितम्बर तक रामसेतु को किसी भी प्रकार से क्षतिग्रस्त किए जाने के विरुद्ध स्थगन आदेश दे दिया। डा. सुब्राह्मण्यम स्वामी ने स्वयं अपनी याचिका पर 4 घंटे तक जिरह की। वास्तव में यह मामला मद्रास उच्च न्यायालय में चल रहा था और जून में मद्रास उच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार से कहा था कि डा. स्वामी ने जिन सवालों को उठाया है उनका जवाब दिया जाए और एक शपथपत्र दाखिल किया जाए। जो आरोप डा.स्वामी ने लगाए हैं उसके बारे में सरकार का क्या कहना है? बजाए इसके कि सरकार शपथपत्र देती उसने सर्वोच्च न्यायालय में सारा मामला स्थानांतरित करने की प्रार्थना दाखिल कर दी। और इस प्रकार मामला जब सर्वोच्च न्यायालय में आ ही गया तो डा. स्वामी ने रामसेतु को विस्फोटकों से उड़ाए जाने के फैसले के विरुद्ध याचिका दायर करने का फैसला किया। डा. स्वामी ने जिरह करते हुए कहा कि केन्द्र की यू.पी.ए. सरकार तथा राज्य की द्रमुक सरकार, दोनों ही राम विरोधी हैं। वे श्रीराम की स्मृति को ध्वस्त करने के लिए जानबूझ कर एक ऐसा रास्ता चुनते हुए रामसेतु का विध्वंस कर रहे हैं जिससे श्रीराम की स्मृति को क्षति पहुंचे और विश्व के करोड़ों राम भक्तों की संवेदनाएं आहत हों। डा. स्वामी ने कहा कि वे सेतुसमुद्रम प्रकल्प के विरोधी नहीं हैं, लेकिन सरकार जानबूझकर सेतुसमुद्रम परियोजना बनाने के लिए वह रास्ता चुन रही है जिस रास्ते से रामसेतु का विध्वंस अनिवार्य हो। इस पर तूतीकोरिन पोर्ट ट्रस्ट के वकील, जो कि द्रमुक के व्यक्ति हैं, श्री मोहन ने कहा कि एडम्स ब्रिज का श्रीराम से कोई सम्बंध नहीं है। श्रीराम तो भगवान थे, जो श्रीलंका से पुष्पक विमान द्वारा अयोध्या आए थे। उनके लिए श्रीलंका जाने के लिए सेतु निर्माण की कोई आवश्यकता ही नहीं थी। इसलिए इस सेतु को श्रीराम की स्मृति से जोड़ा जाना उचित नहीं है और गलत है। डा. स्वामी ने कहा कि श्री मोहन भारतीय आध्यात्मिक परम्परा से अनभिज्ञ हैं। भारतीय आध्यात्मिक परम्परा में मर्यादा पुरुषोत्तम और सम्पूर्ण पुरुषोत्तम अर्थात् सम्पूर्ण अवतार की अवधारणा अलग-अलग है। श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम थे जबकि श्रीकृष्ण सम्पूर्ण पुरुषोत्तम अर्थात् अवतार थे। श्रीराम एक आदर्श पुरुष के नाते जिए। यही कारण रहा कि सीता के वनवास के समय उनकी आंखों में आंसू आए और लक्ष्मण को युद्ध में शक्ति लगने पर जब वे बेहोश हो गए, तो श्रीराम एक मनुष्य की भांति अत्यन्त दुखी हुए। ऐसे ही मर्यादा पुरुषोत्तम अर्थात् पुरुषों में उत्तम मर्यादा का पालन करने वाले श्रीराम को श्रीलंका जाने के लिए पुल निर्माण की आवश्यकता हुई। डा. सुब्राह्मण्यम स्वामी ने कहा कि पूर्वाग्रह भी एक कानूनी पहलू है, जिस पर सर्वोच्च न्यायालय को ध्यान देना चाहिए। यह यू.पी.ए. और द्रमुक का राम विरोधी पूर्वाग्रह है, जिसके कारण से वे श्रीराम सेतु को विस्फोटक लगाकर तोड़ रहे हैं। इस पर न्यायमूर्ति श्री अग्रवाल ने डा. स्वामी से पूछा कि आपके पास क्या प्रमाण है कि इस पुल को विस्फोटक लगाकर तोड़ा जा रहा है? डा. स्वामी ने कहा, “न्यायमूर्ति महोदय, मैं सामान्य व्यक्ति की भांति सर्वोच्च न्यायालय में नहीं आया हूं। मैं केन्द्र में मंत्री रह चुका हूं। मेरे पास सूचनाओं के अपने स्रोत हैं और हमारे व्यक्तियों ने जब श्रीरामसेतु के पास जीवन-यापन कर रहे मछुआरों से पूछा तो उन्होंने बताया कि श्रीरामसेतु में ड्रेजर मशीनों द्वारा बड़े भारी छेद करके उनमें आर.डी.एक्स. भरे जाने की योजना चल रही है और संसद का सत्र पूरा होने के बाद उसमें आर.डी.एक्स. भरकर श्रीरामसेतु को उड़ा दिया जाएगा। मैं एक जिम्मेदार राजनीतिक व्यक्ति के नाते आपके पास यह प्रार्थना लेकर आया हूं कि भारतीय संस्कृति और परम्परा की एक अत्यन्त प्राचीन और सर्वश्रेष्ठ विरासत के चिन्ह को इस पूर्वाग्रही सरकार द्वारा तोड़े जाने से रोका जाए।” डा. स्वामी ने अपनी याचिका में यह भी कहा कि सम्माननीय मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा 19 जून 2007 को अपने आदेश में कहा गया था कि केन्द्र सरकार और केन्द्रीय संस्कृति तथा पर्यटन मंत्रालय शपथपत्र द्वारा रामसेतु के संदर्भ में अपनी स्थिति स्पष्ट करें। परन्तु उन्होंने अभी तक यह शपथपत्र दाखिल नहीं किया है। संस्कृति और पर्यटन मंत्रालय से यह भी कहा गया था कि वह यह बताए कि क्या उन्होंने इस प्रकार के कोई पुरातात्विक तथा अन्य अध्ययन किए हैं जिसके आधार पर इस पुल को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जा सके? लेकिन 3 महीने तक केन्द्र सरकार ने इसका भी कोई जवाब नहीं दिया। डा. स्वामी ने कहा कि वे 26 अगस्त को रामेश्वरम् गए थे जो कि श्रीरामसेतु से कुछ ही मील दूर है। वहां उन्हें यह जानकर अत्यन्त धक्का लगा कि रामसेतु को विस्फोटक लगाकर उड़ाए जाने की तैयारी की जा रही है। इस पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों ने केन्द्र सरकार के वकील श्री गोपालस्वामी से कहा कि क्या वे इस बात का आश्वासन दे सकते हैं कि इस मामले की अगली सुनवाई तक रामसेतु को विस्फोटक लगाकर नहीं तोड़ा जाएगा? इसके जवाब में केन्द्र सरकार के वकील श्री गोपालस्वामी कुछ स्पष्ट नहीं कह सके। अंतत: विद्वान न्यायाधीशों- न्यायमूर्ति अग्रवाल तथा न्यायमूर्ति नवलकर ने आदेश पारित किया कि इस मामले की अगली सुनवाई 14 सितम्बर को होगी और तब तक रामसेतु को किसी भी प्रकार से क्षतिग्रस्त नहीं किया जाए, ऐसा स्थगनादेश जारी किया जाता है।यह एक प्रारंभिक विजय है। डा. स्वामी का कहना है कि भगवान श्रीराम हमारे साथ हैं। हम यदि उचित दिशा में प्रयास करते जाएंगे तो विजय हमारी ही होगी। आज (31 अगस्त, 2007) सर्वोच्च न्यायालय ने जो आदेश पारित किया वह प्राय: सभी के लिए आनन्दमिश्रित आश्चर्य का विषय है। और यह इस बात का भी संकेत है कि अन्याय और अधर्म की शक्तियां अंतत: परास्त होंगी। केवल हमें अपना धैर्य और निरंतर कार्य करते रहने की शक्ति नहीं खोनी चाहिए।22
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