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भगत सिंह के बलिदान दिवस पर कार्यशाला एवं हुसैनीवाला में पुष्पाञ्जलि अर्पण समारोहभगत सिंह ने केवल राष्ट्र की भक्ति की!!देश के जाने माने इतिहासकार डा. सतीश मित्तल का मानना है कि महात्मा गांधी के विपरीत शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह को अधिक प्रतिकूल व कठिन परिस्थतियों में काम करना पड़ा था। उन्होंने तथ्यों के आधार पर इस बात का दावा भी किया कि भगत सिंह न तो नास्तिक थे और न ही उनका कम्युनिज्म से कोई लेना-देना था। उन्होंने कहा कि कुछ वामपंथी देशवासियों के प्रेरणापुंज व राष्ट्रनायक भगत सिंह को “ब्रांड” बनाकर दुनिया भर में दम तोड़ चुके माक्र्सवाद की “मार्केटिंग” कर रहे हैं। भगत सिंह जन्म शताब्दी समारोह समिति (पंजाब) द्वारा भगत सिंह के शहीदी दिवस (23 मार्च) पर फिरोजपुर में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया था। इसमें देश भर के विद्वानों, इतिहासकारों, साहित्यकारों, शिक्षाविदों, साधु-संतों व राजनेताओं ने भाग लिया व मार्गदर्शन किया।इस कार्यशाला के मुख्य वक्ता थे कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के प्रोफेसर, इंडियन काउंसिल फार हिस्टोरिकल रिसर्च के पूर्व सदस्य और वर्तमान में इतिहास संकलन समिति के उपाध्यक्ष डा. सतीश मित्तल। उन्होंने 1907 से 1931 तक स्वतंत्रता संग्राम के उस कालखंड को दो भागों में विभाजित किया जिसमें महात्मा गांधी व भगत सिंह का उद्भव हुआ। उन्होंने इस कालखंड को 1919 के जालियावाला बाग कांड से विभाजित किया और कहा कि इस कांड से गांधी जी का स्वतंत्रता संग्राम में प्रादुर्भाव हुआ। उनके संघर्ष व आंदोलन के लिए देशभर में वातावरण तैयार हो चुका था। देश 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की अद्र्धशताब्दी मना रहा था, आर्य समाज आंदोलन भी बढ़ रहा था। पंजाब में कूका आंदोलन के चलते लोगों के सीने में अंग्रेजों के खिलाफ नफरत की ज्वाला धधक रही थी। गदर आंदोलन उठ रहा था। इन परिस्थितियों में गांधी जी के लिए लोगों को एकजुट करना आसान हुआ। लेकिन जिन हालातों में भगत सिंह का उत्कर्ष हुआ उस समय विभिन्न कारणों से देश में निराशा का दौर चल रहा था। भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारी विचारों व संघर्ष से देशवासियों को इस दौर से निकाला और दोबारा खड़ा किया। श्री मित्तल ने इस घटना को कोरी गप्प बताया जिसमें कहा जाता है कि एक बार भगत सिंह जेल में कार्ल माक्र्स की किताब पढ़ रहे थे और किसी के बुलाए जाने पर उन्होंने कहा कि एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल रहा है। उन्होंने प्रश्न किया कि बाल गंगाधर तिलक, लाला हरदयाल, सचिन्द्र नाथ सान्याल सहित अनेक देशभक्तों ने समय-समय पर समाजवाद, माक्र्सवाद, लेनिनवाद का जिक्र किया, क्या इस आधार पर उक्त नेताओं को भी माक्र्सवादी कहा जा सकता है? भगत सिंह न तो किसी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य थे और न ही किसी वामपंथी नेता से उनके कोई संबंध रहे। उनके प्रेरणास्रोत मदन लाल धींगरा व करतार सिंह सराभा थे, जिनकी फोटो वे अपनी जेब में रखते थे। श्री मित्तल कहा कि भगत सिंह पक्के आस्तिक थे और उनके कई पत्रों पर ओम शब्द अंकित देखा गया है। वे नियमित रूप से गायत्री मंत्र का पाठ करते थे।गुरुनानक देव विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष एवं भारत सरकार की हिन्दी सलाहकार समिति के सदस्य श्री हरमिंदर सिंह बेदी ने बताया कि भगत सिंह हिन्दी भाषा के अच्छे साहित्यकार थे, उनकी अधिकांश पुस्तकें हिन्दी भाषा में लिखी गई थीं। वे क्षेत्रीय भाषाओं के प्रबल समर्थक थे। जेल में रहते हुए उन्होंने गीता के श्लोकों का हिन्दी में अनुवाद किया और उनके परिजनों के मिले सामान में गीता, लोकमान्य तिलक द्वारा लिखी गई गीता रहस्य भी था। उन पर चल रहे मुकदमों में एक मामला यह भी था कि उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर की एक प्रतिबंधित पुस्तक का पुनप्र्रकाशन करवाया था। उन पर आर्य संस्कृति का अमिट प्रभाव था और उनके दादा को खुद स्वामी दयानंद ने आर्य समाज में दीक्षित किया था।देश के विख्यात पत्रकार व इतिहासकार श्री देवेन्द्र स्वरूप ने कहा कि भगत सिंह ने आवेश में आकर फांसी के फंदे को नहीं चूमा बल्कि जनजागरण की भावना से मृत्यु का वरण किया। वे चाहते तो बम का धमाका कर भाग सकते थे परंतु उन्होंने किसी को मारने के लिए नहीं बल्कि सो रहे देश को जगाने के लिए और बहरी अंग्रेजी हुकूमत को सचेत करने के लिए ऐसा किया था। स्वदेशी जागरण मंच के संचालक श्री कश्मीरी लाल ने कहा कि तुष्टीकरण का रोग नया नहीं है बल्कि कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने स्वामी श्रद्धानंद जी के हत्यारे अब्दुल बशीर को बचाने के लिए भी वही कुछ किया था जो आज अफजल गुरु को बचाने के लिए कर रहे हैं। इस अवसर पर ब्राह्मचारी स्वामी सूर्यदेव जी, स्वामी विनय मुनि जी, स्वामी कुलदीप साहू जी, स्वामी सहज प्रकाश जी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत संघचालक श्री बृजभूषण सिंह बेदी, पंजाब की स्वास्थ्य मंत्री श्रीमती लक्ष्मीकांता चावला, सिंचाई मंत्री श्री जनमेजा सिंह सेखों, फिरोजपुर के विधायक श्री सुखपाल सिंह नन्नू, फाजिल्का के विधायक सुरजीत कुमार ज्याणी, प्रज्ञा प्रवाह के राष्ट्रीय संयोजक श्री राजेन्द्र चड्ढा सहित अनेक वरिष्ठ जन उपस्थित थे। कार्यक्रम के बाद सभी ने हुसैनीवाला जाकर शहीद भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव के समाधि स्थल पर पुष्पाञ्जली अर्पित की और लोगों से उनके जीवन दर्शन पर चलने का आह्वान किया। यहां पाञ्चजन्य के नवीनतम अंक “मेरा रंग दे बसंती चोला” का विमोचन भी किया गया। -राकेश सैन15
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