सारा भारत एक स्वर, एक प्रण से बोला- रामसेतुं रक्षतु
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सारा भारत एक स्वर, एक प्रण से बोला- रामसेतुं रक्षतु

by
Aug 4, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Aug 2007 00:00:00

रामसेतु विध्वंस की संप्रग की योजना के संदर्भ में पूज्य सरसंघचालक, नरेन्द्र मोदी, वसुंधरा राजे, मे.जन. (से.नि.) खण्डूरी, शिवराज सिंह चौहान, भगत सिंह कोश्यारी, एल.गणेशन तथा अमरीकी षड्यंत्र का पर्दाफाश करने वाले विद्वान कल्याण रमन से तरुण विजय की बातचीत और विश्लेषण। पूज्य स्वामी सत्यमित्रानंद जी, पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती “मुनि जी”, बाल आपटे, नरेन्द्र कोहली एवं डा. महेश शर्मा से बातचीत की जितेन्द्र तिवारी ने और डा. रमन सिंह से विचार लिए आलोक गोस्वामी ने। ये सभी विचार यहां प्रस्तुत हैं। -सं.राजनीति से ऊपर उठकर सब हिन्दू एकजुट हों-स्वामी सत्यमित्रानंद जी, संस्थापक, भारत माता मंदिर (हरिद्वार)हिन्दुओं की संगठित शक्ति के अभाव के कारण ही अब तक राम जन्मभूमि पर मंदिर का निर्माण नहीं हो पाया और अब रामसेतु तोड़ने की योजना बन रही है। समझना होगा कि प्रजातंत्र में जनता की शक्ति का ही मूल्य होता है। इसलिए हिन्दुओं पर होने वाले आघात के लिए हम दूसरों को दोष देने की अपेक्षा अपने स्वार्थों का परित्याग कर हिन्दू संगठन में अपनी पूर्ण शक्ति झोंकने का प्रयत्न करें। और जब कोई हिन्दू संगठन या संस्था अपने हितों के संरक्षण की बात करे तो उसमें दूसरे लोग अपनी शक्ति के प्रदर्शन का प्रयत्न न करें। जब जनतंत्र में शक्ति राजसत्ता के हाथ में है और उसके लिए हिन्दू एकजुट हों।रा.स्व.संघ जैसे हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों को भी समझना होगा कि “वन्देमातरम् की जय” बोलने वाले राजनीतिक दल तो साथ हैं ही, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी आदि सभी दलों के उन प्रतिनिधियों की खोज करनी होगी जिन्हें हिन्दुओं की भावनाओं पर होने वाले आघातों से पीड़ा होती है। ऐसे लोगों से कहना चाहिए कि भले ही राजनीतिक दृष्टि से आपका चिंतन भिन्न हो, पर हिन्दू आस्थाओं और भावनाओं पर होने वाले कुठाराघात के विरुद्ध आपका स्वर एवं शक्ति हमारे साथ होनी चाहिए। यदि हम बार-बार उनसे ऐसा कहें तो सफलता मिलेगी तथा एक और नया मार्ग खुलेगा।जहां तक हिन्दू समाज की उदासीनता अथवा सोए हुए हिन्दू समाज को जगाने का प्रश्न है तो उसी कार्य में रा.स्व.संघ पिछले 80 वर्ष से लगा है। अभी श्री गुरुजी जन्म शताब्दी वर्ष में बहुत जागृति आई। देशभर में 6 हजार से अधिक हिन्दू सम्मेलनों में 2 करोड़ से अधिक लोग सहभागी हुए। पर हिन्दू समाज का स्वभाव बन गया है कि वह अपनी आस्था और प्रतीकों के प्रति कुछ समय तक चेतना में रहता है फिर सुप्तावस्था में चला जाता है। इसलिए ऐसे प्रयत्न होने चाहिए कि हिन्दुओं के शौर्य में निरन्तरता बनी रहे। इसके लिए देश की हिन्दू संस्थाओं के अनुभवी महापुरुषों को मिलकर विचार करना चाहिए और विद्वान साधु, संतों, महात्माओं का सहयोग भी लें।यह बात सही है कि वर्तमान में अनेक चुनौतियां हैं पर यदि देश की प्राचीनता, ऐतिहासिकता का कोई महत्व नहीं होता है तो आखिर वर्तमान संतति उसके लिए बलिदान क्यों दे? क्यों देश को बचाने के लिए युद्ध लड़े जाते हैं, बलिदान दिए जाते हैं? प्रत्येक देश के कुछ आदर्श, प्रतीक, पुरातत्व होता है और उस देश के वासी उसका रक्षण करते हैं।। । ।हिन्दू आस्था का सम्मान करें, नया मार्ग तलाशें-स्वामी चिदानंद सरस्वती “मुनि जी”, मुख्य अधिष्ठाता, परमार्थ आश्रम, ऋषिकेशरामसेतु निश्चित रूप से हिन्दू आस्था का प्रश्न है। हिन्दू धर्म, भारतीय संस्कृति में विश्वास रखने वाले प्रत्येक प्राणी के मन में ऐसी खबर से पीड़ा स्वाभाविक है। विज्ञान के क्षेत्र में बहुत प्रगति हो रही है, उसमें ऐसे तरीके निकाले जाने चाहिए जिससे हमारी संस्कृति और आस्थाओं पर चोट न हो और देश की प्रगति का आयाम भी न रुके। हिन्दू धर्म की तो विशेषता ही है कि वह लोगों के बीच समन्वय का सेतु बनाता है पर हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक श्रीराम द्वारा निर्मित सेतु ही जब तोड़ा जाएगा तो उससे जो क्षति होगी उस की पूर्ति कोई नहीं कर पाएगा। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह ऐसा रास्ता निकाले कि हिन्दू भावनाओं का सेतु भी न टूटे और देश के विकास का मार्ग भी अवरुद्ध न हो।अयोध्या से लेकर रामसेतु तक हिन्दू भावनाओं पर की जा रही चोट का एक प्रमुख कारण है समाज का भौतिकवादी हो जाना। जब समाज भौतिकवादी हो जाता है तो उसकी आस्था के प्रश्न गौण हो जाते हैं। आज हिन्दुओं के तीर्थस्थल- वृंदावन, गोवर्धन, वाराणसी, हरिद्वार, पुरी, अयोध्या, बद्रीनाथ आदि की स्थिति क्या है? यहां तक हरि की पैड़ी के पास गंगाजी में गंदे नाले का जल छोड़ा जा रहा है और हिन्दू लोग ही ऐसा कर रहे हैं। गंगा हमारे धर्म, संस्कृति और आस्था की जीवन रेखा है, जब हम स्वयं ही उसका संरक्षण नहीं कर रहे हैं, उसे प्रदूषित करने में सहभागी हैं तो फिर अन्य मान्यताओं और विचारधारा के लोगों में इसके प्रति सम्मान का भाव कैसे उत्पन्न होगा? जब हिन्दू स्वयं अपने प्रतीकों, पवित्र स्थलों की पवित्रता के प्रति जागरुकता का भाव नहीं रखेंगे तो बाकी लोग उन पर कुठाराघात करेंगे ही।जहां तक राजनीतिक कारणों से हिन्दू भावनाओं की उपेक्षा का प्रश्न है तो वह सबके सामने है। पर समझना होगा कि राजनीतिक रूप से चुने हुए देशभर में कुल कितने लोग हैं। लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के कुल मिलाकर 10-15 हजार प्रतिनिधि होंगे। उनके अपने स्वार्थ और मजबूरियां होंगी। पर उनके अलावा देश में सवा सौ करोड़ से अधिक लोग हैं, वे क्या कर रहे हैं?हमारी मान्यता है कि यह वही सेतु है जो प्रभु श्री राम के नेतृत्व में उनके भक्तों ने निर्मित किया था। नासा द्वारा उपग्रह से खींचे गए चित्र से भी लोगों में यह जागृति आई कि यह वही सेतु है जो लंका पर चढ़ाई के समय श्रीराम ने बनाया। इस कारण से हम सबकी उसके प्रति आस्था है।। । ।उठो हिन्दुओ, इस संकट में एकता दिखाओ!!-कुप्.सी. सुदर्शन, सरसंघचालक, रा.स्व.संघश्रीराम सेतु हमारे सांस्कृतिक अधिष्ठान का अविभाज्य अंग है। सवाल उठता है कि भारत सरकार ने उसे अमान्य कैसे किया? उसे तोड़ने के पीछे उसकी मंशा क्या है? जब से संप्रग का शासन आया है, हिन्दू मान्यताओं और प्रतीकों पर हमले अभूतपूर्व ढंग से बढ़े हैं। राम सेतु को तोड़े जाने का सुरक्षा विशेषज्ञ भी विरोध कर रहे हैं क्योंकि उससे इस क्षेत्र में विदेशी नौकाओं का आवागमन तो बढ़ेगा ही, अमरीकी दखल का भी विस्तार होगा। अमरीकी दखल के कारण ही जल्दबाजी में राम सेतु तोड़े जाने का कार्य प्रारंभ किया गया और प्रधानमंत्री कार्यालय से इस परियोजना के संदर्भ में 16 प्रश्न पूछे गए लेकिन उनमें से किसी एक का भी इस परियोजना के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार संस्था तूतीकोरिन बंदरगाह न्यास ने ठीक प्रकार से जवाब नहीं दिया। परियोजना के बारे में न तो पर्यावरण अनुसंधान संस्थान (नेरी, नागपुर) से पूछा गया, न ही सुरक्षा विशेषज्ञों से, न ही सागरीय मामलों के विशेषज्ञों से पूछा गया। 30 जून, 2005 को प्रधानमंत्री कार्यालय को तूतीकोरिन बंदरगाह न्यास के अध्यक्ष रघुपति ने टालू किस्म के उत्तर भेजे और 2 जुलाई को प्रधानमंत्री तथा सोनिया गांधी द्रमुक नेताओं के साथ उद्घाटन करने पहुंच गए। ऐसी जल्दबाजी क्या थी? इस परियोजना का हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी विरोध कर रहे हैं, इस कारण परियोजना पर क्रियान्वयन भी शुरू नहीं हो पाया। दो बार उत्खनन के जहाज भेजे गए पर राम सेतु तोड़ने वाले जहाज के ब्लेड दोनों बार टूट गए और तीसरी बार उत्खनन जहाज रामनवमी के दिन भेजे गए।यह भारत के विरुद्ध अमरीकी षड्ंत्र के सामने झुकी कमजोर सरकार का दुष्कर्म है, जिसे रोकना ही होगा। प्रधानमंत्री चाहें तो यह निर्णय ले सकते हैं। आखिरकार देश के प्रधानमंत्री वे हैं कोई और नहीं। यदि उन्होंने इस मार्ग से राम सेतु का तोड़ा जाना नहीं रोका तो देश में एक विराट जनांदोलन खड़ा होगा। हिन्दू समाज एकजुट होकर सामने आएगा।। । ।सभी सीमाओं से परे राम सेतु विश्व मानवता की धरोहर है, इसे बचाने की जिम्मेदारी हर संवेदनशील व्यक्ति पर-नरेन्द्र मोदी, मुख्यमंत्री, गुजरातराम सेतु केवल भारत की महानतम सांस्कृतिक विरासत में से एक नहीं है बल्कि यह विश्व की एक महान विरासत है, जैसे गुजरात में जलमग्न द्वारिका नगर है। इसलिए राम सेतु का विषय न किसी धर्म या मजहब तक सीमित है, न ही किसी विचारधारा या दल तक। द्वारिका के संदर्भ में तो हमने केन्द्र सरकार से अनेक बार कहा है कि समुद्र में डूबे द्वारिका नगर को देखने के लिए आधुनिक तकनीक का उपयोग करते हुए एक विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल बनाया जाए ताकि जल के भीतर द्वारिका के दर्शन किए जा सकें। राम सेतु को तोड़ने के लिए तैयार लोग कल द्वारिका को भी तोड़ सकते हैं।राम सेतु को बचाते हुए दूसरे जलमार्ग का निर्माण किए जाने का विकल्प उपलब्ध है तो क्यों नहीं उसका इस्तेमाल किया जाता? विश्व में जो भी व्यक्ति सांस्कृतिक विरासत के प्रति संवेदनशील होगा वह इस प्रकार की विरासत को तोड़े जाने के प्रति चिंतित और क्रुद्ध होगा ही। ऐसी विरासत यदि भारत में तोड़ी गई तो उससे बढ़कर दुर्भाग्यजनक विषय और क्या हो सकता है। यह विषय केवल रामभक्तों तक ही सीमित नहीं है बल्कि पूरी मानव जाति से जुड़ा है और यह मानवीय सांस्कृतिक इतिहास की गाथा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है इसलिए इसके बारे में विश्व के सभी संस्कृति प्रेमी मनुष्यों का चिंतित होना स्वाभाविक है।मुझे विश्वास है कि विश्व का कोई भी संवेदनशील व्यक्ति राम सेतु को तोड़ने की अनुमति नहीं देगा। इस क्षेत्र में काम करने वाले सभी संस्कृति प्रेमी एवं सांस्कृतिक विरासत के प्रति संवेदनशील व्यक्तियों को एक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन करना चाहिए जो इस मुद्दे पर बारीकी से विचार करे। गुजरात की जनता विश्व समुदाय की राम सेतु के प्रति चिंता और उसके संरक्षण के प्रति अपनी जिम्मेदारी में पूरी तरह से सहभागी होगी।। । ।मरुस्थल के लोग भी राम सेतु के लिए चुप नहीं बैठेंगे-वसुंधरा राजे सिंधिया, मुख्यमंत्री, राजस्थानराजस्थान रेतीला प्रदेश है, जहां रेगिस्तान है और जो चारों ओर से भूमि से घिरा है। यहां के लोग भले ही सागर से बहुत दूर हों लेकिन वे अच्छी तरह से समझते, जानते और पहचानते हैं कि भगवान श्री राम ने लंका से सीता जी को छुड़ाने के लिए समुद्र पर पुल बांधा था, जिसे शताब्दियों और सहस्राब्दियों से हमारी जनता श्री राम सेतु के नाम से जानती है। श्री राम सेतु युगों से हमारे मानस में इतिहास और संस्कृति की भारतीय पहचान के नाते गुंथा हुआ है। अगर उस श्री राम सेतु को क्षतिग्रस्त करने का किसी भी प्रकार का कोई कार्य किया जा रहा है तो मेरी दृष्टि में वह कोई अच्छा विचार नहीं हो सकता। मुझे विश्वास है कि लोगों को सद्बुद्धि आएगी और भारतीय संस्कृति की इस धरोहर को क्षतिग्रस्त नहीं किया जाएगा। यदि ऐसा हुआ तो चाहे केरल के लोग हों या राजस्थान के, वे चुप नहीं बैठेंगे, क्योंकि श्री राम सेतु हमारे मानस में प्रतिष्ठित है।। । ।यदि राम सेतु पर प्रहार नहीं रोका तो हमारी सरकार और जनता जनांदोलन से इसे रोकेगी-शिवराज सिंह चौहान, मुख्यमंत्री, मध्य प्रदेशमैंने 6 महीने पहले भी प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था जिसमें उनसे आग्रह किया था कि वे सेतु समुद्रम परियोजना इस प्रकार से लागू करें जिससे श्री राम सेतु को तनिक भी क्षति न पहुंचे। श्री राम सेतु हमारी आस्था, विश्वास और भारतीय सभ्यता की आधारभूत मान्यताओं में से एक है। यदि इसको किंचित भी क्षतिग्रस्त किया गया तो मध्य प्रदेश की जनता और सरकार उसका विरोध करने के लिए पूरी ताकत से सामने आएगी और मध्य प्रदेश की धरती से एक ऐसा जनांदोलन खड़ा होगा जो हिन्दू आस्था पर इस अभूतपूर्व प्रहार को रोककर ही दम लेगा।। । ।राम सेतु तोड़कर हिन्दू भावनाओं को कुचलना चाहती है संप्रग सरकार-राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय अध्यक्ष, भाजपाभाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने राम सेतु को तोड़े जाने की सरकार की योजना पर गहन चिंता व्यक्त करते हुए 30 मार्च को एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की। उन्होंने कहा कि धनुष्कोटि के निकट सेतु समुद्रम प्रकल्प के अंतर्गत राम सेतु तोड़ने की योजना संप्रग सरकार द्वारा हिन्दू आस्थाओं पर कुठाराघात का ही उदाहरण है। इस संप्रग सरकार ने रामनवमी के ही दिन (27 मार्च को) राम सेतु तोड़ने के लिए एक्वेरियस नामक खनन नौका रवाना की।उन्होंने कहा कि राम सेतु शैल निर्मित प्राचीनतम स्मारक है जो, माना जाता है, श्रीलंका जाने के लिए भगवान राम ने बनवाया था। यह न केवल भारतीय संस्कृति और राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि वैश्विक विरासत है। विदेशी राज के उन काले दिनों में और भारत-शत्रुओं के द्वारा भी कभी किसी ने इसे छूने की हिम्मत नहीं की थी। मगर संप्रग सरकार राष्ट्रीय भावनाओं का अपमान करते हुए इस प्राचीन स्मारक को तोड़ने पर तुली है।धार्मिक और सांस्कृतिक आयामों के साथ ही, लगता है सरकार ने इस प्रकल्प के रणनीतिक पहलुओं को भी नजरअंदाज कर दिया है। इस समय हमारे पास केरल और राम सेतु क्षेत्र में विश्व का सबसे बड़ा थोरियम भण्डार है। खनन और वर्तमान नहर मार्ग को खोलने के बाद न केवल थोरियम का भण्डार नष्ट हो जाएगा बल्कि हम श्रीलंका और भारत के बीच सागरीय सीमा को अंतरराष्ट्रीय सीमा स्वीकारने के शिकंजे में जकड़ जाएंगे, जिसका हम हमेशा से विरोध करते आए हैं। सुरक्षा विशेषज्ञों ने इस प्रकल्प पर जल्दबाजी में किसी अंतरराष्ट्रीय प्रभाव की ओर इशारा किया है। भाजपा खनन कार्य की पूरी तरह जांच करने की मांग करती है।श्री सिंह के अनुसार इस संवेदनशील क्षेत्र में जहाजों का आवागमन बहुत अधिक बढ़ने से राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव पड़ेगा। इस क्षेत्र में सुरक्षा प्रबंधों को बढ़ाना पड़ेगा और इससे प्रकल्प की लागत अनुमान से बहुत अधिक हो जाएगी।इस स्मारक को ढहाने के पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में भी सरकार ने नहीं सोचा है। विश्व विख्यात सुनामी विशेषज्ञ प्रो. टाड मूर्ति ने कहा है कि इसी राम सेतु ने सुनामी से केरल की रक्षा की थी।श्री सिंह ने भारत सरकार से अपील की है कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत और हिन्दू धार्मिक आस्थाओं के प्रतीक इस राम सेतु से कोई छेड़छाड़ न की जाए। उन्होंने कहा कि भाजपा सेतु समुद्रम प्रकल्प के विरुद्ध नहीं है बल्कि यह चाहती है कि सरकार वैज्ञानिकों द्वारा सुझाए उन वैकल्पिक मार्गों पर विचार करे जिनसे राम सेतु को तोड़ने की जरूरत न हो।। । ।आस्था से जुड़े सेतु पर कोई समझौता नहीं-डा. रमन सिंह, मुख्यमंत्री, छत्तीसगढ़देश में इस वक्त दो ऐसे ज्वलंत मुद्दे हैं जिन पर केन्द्र सरकार का रवैया बहुत ही नकारात्मक दिख रहा है। पहला विषय है जम्मू-कश्मीर से कुछ सेकुलर राजनीतिक दलों की मांग पर सेना की वापसी का और दूसरा है रामसेतु का।जम्मू-कश्मीर का प्रश्न तो सीधे-सीधे देश की सुरक्षा से जुड़ा है। पाकिस्तान का रवैया भी ठीक नहीं है। पहले विभाजन और फिर उस क्षेत्र को विशेष दर्जा देने से जो नुकसान हो चुका है, उससे भी बड़ा नुकसान सेना को वहां से हटाए जाने से हो सकता है। यह सर्वथा अनुचित है। इस विषय को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखना चाहिए।दूसरे, रामसेतु तो करोड़ों-करोड़ लोगों की भावनाओं से जुड़ा विषय है। इसको तोड़ने की चेष्टा किसी तरह स्वीकार्य नहीं है। इस मुद्दे पर तो पूरे देश में जन-जागरण होना चाहिए। छत्तीसगढ़वासियों की भावनाएं देशवासियों से पूरी तरह जुड़ी हैं। देश में कहीं-किसी भाग में संकट हो तो छत्तीसगढ़ भी उसको महसूस करता है और उसके निदान में पूरा सहयोग देता है। दुनिया में सभी अपनी प्राचीन संस्कृति और धरोहर को संजोने का प्रयास करते हैं और यहां हम अपनी संस्कृति से जुड़ी एक स्मृति को तोड़ना चाहते हैं! अपनी प्राचीन विरासत से मुंह मोड़ लेना चाहते हैं? निश्चित रूप से यह सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से उचित नहीं है। इसका विरोध सभी क्षेत्रों में होगा।केन्द्र सरकार के ढाई साल के शासन में विदेश नीति, आंतरिक सुरक्षा नीति, जम्मू-कश्मीर, पोटा जैसे कानून समाप्त करने के निर्णय आदि पक्ष-विपक्ष के बीच आम सहमति के आधार पर नहीं किए गए। बातचीत की प्रक्रिया समाप्त हो गई है। भाजपा या अन्य राजनीतिक दलों के साथ इन विषयों पर बातचीत से समाधान निकालना चाहिए। पर सरकार जिस तरह से आगे बढ़ रही है वह कांग्रेस के लिए ही नहीं, देश के लिए भी खतरनाक है।। । ।रामसेतु तोड़ा तो जबरदस्त आक्रोश प्रकट होगा-मे.जन. (से.नि.) भुवन चन्द्र खण्डूरी, मुख्यमंत्री, उत्तराखंडसेतु समुद्रम प्रकल्प के अंतर्गत वर्तमान जलमार्ग के कारण हमारी आस्था, विश्वास और सांस्कृतिक विरासत का अविभाज्य अंग राम सेतु तोड़ा जा रहा है। राम सेतु हमारी ऐतिहासिक धरोहर है। हमारी पौराणिक मान्यताओं में यह शामिल है। विश्व के करोड़ों हिन्दुओं की ही नहीं बल्कि सभी संस्कृतिनिष्ठ व्यक्तियों की आस्था इससे जुड़ी है। हर वर्ष दशहरे पर राम-रावण युद्ध का स्मरण करते हुए दुनिया भर में रामलीलाएं होती हैं। यहां तक कि मुस्लिम देश मलेशिया और इंडोनेशिया में भी रामलीलाओं का आयोजन होता है, जिसमें राम सेतु निर्माण का प्रसंग महत्वपूर्ण ढंग से सामने लाया जाता है। यह राम सेतु विश्व भर के रामभक्तों की आस्था का हजारों वर्षों से चला आ रहा अंग है। इसके अतिरिक्त राम सेतु तोड़ने में अमरीकी स्वार्थ की भी दखल दिख रही है। पर हम अमरीकी स्वार्थ को ही क्यों दोष दें, हमारे देश के अपने लोगों का निहित स्वार्थ भी इसमें शामिल है जो और भी अधिक दुर्भाग्यजनक है।धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के अलावा राम सेतु तोड़ा जाना पर्यावरण की दृष्टि से भी अत्यंत नुकसानदेह साबित होगा। इसमें न केवल सागर तल की चट्टानों और दुर्लभ वनस्पतियों का क्षरण होगा बल्कि सुनामी जैसे तूफानों से बचाव का प्रकृति प्रदत्त रक्षा कवच भी टूट जाएगा। इन दोनों मुद्दों के अलावा वर्तमान योजना के अनुसार जलमार्ग से भारत के सागर तटों की सुरक्षा को भी बहुत बड़ा खतरा हो जाएगा। अभी तक यह क्षेत्र अन्तरराष्ट्रीय नौकाओं के लिए खुला नहीं है। नया जल मार्ग अन्तरराष्ट्रीय नौकाओं को भी इस रास्ते से गुजरने की अनुमति देगा। मुझे यह भी समझ में नहीं आता कि बिना सुरक्षात्मक, पर्यावरणीय एवं आस्थामूलक प्रश्नों पर विचार किए इस जलमार्ग पर तुरंत काम करने की जल्दबाजी क्यों दिखाई गई? क्यों वस्तुपरक अध्ययन और शंका निवारण किए बिना इसका उद्घाटन कर दिया गया? यदि राम सेतु को तोड़ा गया और यह जलमार्ग बदला नहीं गया तो पूरे देश में आक्रोश की लहर उठेगी और उत्तराखंड की देवभूमि के आस्थावान नागरिक राम सेतु तोड़े जाने के विरोध में अभूतपूर्व आंदोलन करेंगे।। । ।सरकार को हिन्दू भावनाओं की परवाह ही नहीं है!-बाल आपटे, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, भाजपाअयोध्या से लेकर रामसेतु तक हिन्दू भावनाओं पर आघात हो रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण है सेकुलरवाद के नाम पर हिन्दुओं की भावनाओं के प्रति संवेदनहीनता। और इसी में से उपजा है अल्पसंख्यकवाद के नाम पर मुस्लिमों का तुष्टीकरण। इसी कड़ी में एक नया आयाम जुड़ा है सेतु समुद्रम परियोजना के नाम पर रामसेतु का तोड़ा जाना।यह बात उचित ही है कि भारत के तटीय क्षेत्रों के निकट से होकर एक समुद्री मार्ग गुजरे, यह देश की सुरक्षा, व्यापार और आर्थिक दृष्टि से उपयोगी होगा। लेकिन इस मार्ग की दृष्टि से जो सर्वेक्षण हुए हैं, उनमें जो अन्तिम मार्ग बताया गया वह निर्माण की दृष्टि से खर्च में कम तथा अधिक उपयोगी है और वह मार्ग राम सेतु को हानि नहीं पहुंचाता है। पर बाकी मार्गों को छोड़कर रामसेतु को खंडित करने वाले मार्ग का चुनाव यह दर्शाता है कि सरकार को हिन्दू भावनाओं की परवाह ही नहीं है। निश्चित रूप से सम्पूर्ण हिन्दू समाज के लिए राम सेतु का विषय अत्यंत संवेदनशील तथा उनकी आस्था एवं मान्यता की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है।इस बीच उत्तर प्रदेश में चुनाव है, वहां अयोध्या में श्रीराम की जन्मभूमि है। संभव है कि राम सेतु का मुद्दा वहां प्रभावी हो। उत्तर प्रदेश में चुनावों की दृष्टि से भाजपा आशा, उत्साह और सरकार बनाने के अनुकूल वातावरण महसूस कर रही है। राज्य में मुख्य रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा, तुष्टीकरण, महंगाई, किसानों की समस्याएं आदि चुनावी मुद्दे रहेंगे। जहां तक जातिगत समीकरणों की बात है तो हमारा पहले भी यह अनुभव रहा है कि राष्ट्रीयता के आह्वान पर लोग अपनी जाति से ऊपर उठकर देश का विचार करते हैं।। । ।देवभूमि उत्तराखंड के लोग असुरों को परास्त करेंगे-भगत सिंह कोश्यारी, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष, उत्तराखंडश्रीराम सेतु, बद्री- केदार और कुमाऊं के वीर एवं धार्मिक नागरिकों के लिए उतना ही पवित्र है जितना उनके घर-आंगन में बना मंदिर। देवभूमि उत्तराखंड के चप्पे-चप्पे पर श्रीराम भक्ति के चिन्ह मौजूद हैं। यह भूमि गंगा और यमुना का पावन उद्गम स्थल है तो पांडवों का स्वर्गारोहण भी यहीं से हुआ। यहां वीरों और ऋषियों ने तप कर असुरों के संहार की शक्ति और नीति प्राप्त की थी। यदि पुन: असुर शक्ति श्री राम सेतु को तोड़ने के लिए सक्रिय होती है तो उत्तराखंड के नागरिकों की देवशक्ति उसे परास्त करने में पीछे नहीं रहेगी। राम सेतु रक्षा अभियान में उत्तराखंड का बच्चा-बच्चा सहयोग देगा।। । ।रामसेतु का मुद्दा राजस्थान को भी आंदोलित करेगा-डा. महेश शर्मा, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष, राजस्थानराष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय जितने भी विषय हैं, वे राजस्थान को भी उतना ही प्रभावित करते हैं जितना कि राष्ट्र के अन्य भागों को, बल्कि उससे कुछ अधिक ही। क्योंकि राजस्थान भारतीय संस्कृति और हिन्दुत्व का सबसे प्रखर और बड़ा गढ़ है। राजस्थान में प्रादेशिकता से अधिक राष्ट्रीयता है। राजस्थान के लिए रामसेतु को तोड़े जाने का मुद्दा बहुत गंभीर है। रामसेतु को बचाने के लिए हस्ताक्षर अभियान हुआ था, उसमें यहां के लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। राजस्थान के निवासी धर्म, संस्कृति एवं उसके प्रतीकों की रक्षा के लिए सदैव संकल्पबद्ध एवं अग्रणी रहे हैं। धर्म एवं संस्कृति की रक्षा के लिए इस भूमि के वीर पुत्रों ने सदैव अपना शौर्य प्रगट किया है और सर्वस्व न्योछावर किया है।राजस्थान वैसे भी अब विकास की दौड़ में बहुत आगे है। पिछले साढ़े तीन वर्ष में राजस्थान का विकास अप्रतिम है। साठ साल का विकास एक ओर और साढ़े तीन साल का विकास एक ओर। भाजपा ने राजस्थान की सत्ता जब संभाली थी उस समय कांग्रेस की सरकार यही कहती थी कि राज्य का खजाना खाली है। उनके पास कर्मचारियों के वेतन तक का पैसा नहीं था। पर वसुन्धरा राजे जी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार का बहुत कुशलता भरा प्रबंधन रहा। राज्य में प्राथमिक कक्षाओं के बाद बहुत सारे छात्र पढ़ाई छोड़ देते थे, इसका एक बड़ा कारण गरीबी होता था। आज 12वीं तक के बच्चों की सम्पूर्ण पाठ पुस्तकें राज्य सरकार नि:शुल्क वितरित करती है। साईकिल से स्कूल जाने वाली बालिकाओं को राज्य सरकार साईकिल उपलब्ध कराती है। इन सब कारणों से सरकार की संवेदनशील छवि सबके सामने आई है।जहां तक सरकार और संगठन के बीच तालमेल की बात है तो मेरा मानना है कि जो कार्यकर्ता पार्टी में काम करते हैं और जो सरकार में काम करते हैं वे दोनों मिलाकर संगठन होते हैं। इस दृष्टि से राजस्थान में संगठन पूरी तरह से एकजुट और सुदृढ़ है।। । ।अमरीकी दबाव में रामसेतु तोड़ने की जल्दी-एल. गणेशन, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष, तमिलनाडुयह दुर्भाग्य की बात है कि भगवान राम के जन्मदिन पर संप्रग सरकार ने राम सेतु में खनन करने के लिए एक्वेरियस नामक उत्खनन नौका रवाना की। जैसे ही यह समाचार फैला, रामेश्वरम और चेन्नै में जनता ने स्वत:स्फूत्र्त विरोध किया। हमें यह भी पता चला है कि इस नौका पर सवार अनेक हिन्दू नाविकों ने नौका में ही राम सेतु तोड़े जाने का विरोध किया। उनको नौका से भी अब उतरने नहीं दिया जा रहा है। राजग सरकार के समय भी सेतु समुद्रम परियोजना पर विचार चल रहा था। लेकिन इस परियोजना की सम्पूर्ण सर्वेक्षण रपट आने से पहले ही सरकार चली गई। बाद में संप्रग सरकार ने अमरीकी दबाव में इस परियोजना को जल्दबाजी में स्वीकृत किया। इस पूरे मामले में जहाजरानी मंत्री टी.आर.बालू तथा तूतीकोरिन बंदरगाह न्यास के अध्यक्ष रघुपति की भूमिका अत्यंत संदिग्ध है। विडम्बना यह है कि इस परियोजना के अध्यक्ष का नाम रघुपति है और वह स्वयं रघुनाथ की स्मृति से जुड़े प्राचीन सेतु को तोड़ने के षडंत्र में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। उनके और टी.आर. बालू के इस पूरे कार्य में व्यापारिक हितों की सीबीआई से जांच कराई जानी चाहिए।। । ।राम नाम के बैरी हैं ये!!-नरेन्द्र कोहली, वरिष्ठ साहित्यकारहिन्दुओं की आस्थाओं एवं उसके प्रतीकों पर होने वाले आघातों का एक बड़ा कारण राजनीतिक स्वार्थ प्रतीत होता है। जहां तक राम सेतु का प्रश्न है, तो हमारी मान्यता है कि वह प्रभु राम द्वारा बनाया गया सेतु ही है। हालांकि नासा ने जब समुद्र में डूबे इस सेतु के चित्र को प्रकाशित किया तब यह भी टिप्पणी की कि यह मानव निर्मित नहीं है। यदि इसे मान भी लिया जाए तो नासा द्वारा आंकी गई 16 लाख वर्ष पुरानी धरोहर को तोड़ने का क्या अर्थ है? यदि आप इस पर गर्व नहीं कर सकते। नई तकनीकी का प्रयोग कर उसे समुद्र की सतह पर नहीं ला सकते, तो क्या उसका संरक्षण भी नहीं कर सकते हैं? राम सेतु केवल हिन्दुओं और भारत के लिए ही नहीं बल्कि विश्व के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर है। पर चूंकि उसके साथ राम का नाम जुड़ा है, सिर्फ इसलिए उसे तोड़ने की कुचेष्टा की जा रही है ताकि कुछ राजनीतिक लाभ अर्जित किया जा सके।यह बात सही है कि जबसे यह सरकार आई है तब से हिन्दुओं की आस्थाओं और भावनाओं पर आघात बढ़ते ही जा रहे हैं। क्योंकि सोनिया गांधी का इस देश और उसकी भावनाओं के साथ कोई जुड़ाव नहीं है। और मनमोहन सिंह शायद स्वयं को इस देश में दुर्भाग्य से पैदा हुआ मानते हैं जैसे पं. नेहरू मानते थे, अथवा वे सोनिया गांधी की दासता के अधीन हैं। पर वे इस देश का इतना अहित कर रहे हैं कि इतिहास उन्हें कभी क्षमा नहीं करेगा।इसके साथ ही निराशा होती है हिन्दू समाज की प्रतिक्रिया देखकर। इसमें इतना आलस्य और अपने प्रतीकों के प्रति बड़ी उपेक्षा का भाव दिखता है। रामसेतु के बारे में अधिकांश लोगों को जानकारी ही नहीं है। पता नहीं कब यह हिन्दू समाज जागेगा और अपनी आस्थाओं के प्रति एकजुट होकर सजग होगा।जो लोग वर्तमान चुनौतियों के बीच प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर रामसेतु के संरक्षण के प्रश्न को अनुचित बताते हैं वे या तो अज्ञानी और अबोध हैं अथवा मूर्ख। वर्तमान चुनौतियां और वर्तमान प्रतीकों का संरक्षण अपने स्थान पर उचित है, पर जब आप 17 लाख वर्ष पुरानी अपनी धरोहर का संरक्षण करते हैं तो अपनी उन सब मान्यताओं-परम्पराओं का संरक्षण कर रहे होते हैं जो हमारी संस्कृति का आधार हैं। आखिर वे राम, उनकी कथा ही तो है जो लाखों वर्षों से अनवरत चली आ रही है और सभी प्रकार के आघातों के बावजूद हिन्दू संस्कृति को बनाए हुए है। ऐसे प्रश्न वही लोग उठाते हैं जो राम की बात आते ही, रोटी की बात करने लगते हैं। रोटी भी तो तभी मिलेगी जब आप स्वतंत्र हों। और रोटी मिलने के बाद भी सम्मान चाहिए कि नहीं? समझ नहीं आता कि डायनासोर नामक एक अनदेखे जानवर की छोटी-छोटी हड्डियों को संभाल कर रखा जा रहा है, 500 साल पुराने ताजमहल को बचाने के लिए कारखानों को हटाया जा रहा है, कुतुबमीनार बचाने के लिए मेट्रो रेल का रास्ता बदला जा रहा है तो इतनी प्राचीन मानवता की धरोहर के प्रति यह उपेक्षा भाव क्यों है? सिर्फ इसलिए कि उसके साथ राम का नाम जुड़ा है? मेरी दृष्टि में रामसेतु को बचाना राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण से कम महत्वपूर्ण नहीं है। इसके लिए जितना भी तीव्र आंदोलन आवश्यक हो, करना चाहिए।8

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