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प्रिय बन्धुओ, सप्रेम जय श्रीराम।गत 26 मार्च को हमारे संस्थान के पूर्व अध्यक्ष श्री सत्यनारायण बंसल जी की धर्मपत्नी श्रीमती सत्यवती देवी का 77 वर्ष की आयु में देहांत हो गया। वे काफी समय से अस्वस्थ थीं और दिल्ली के अग्रसेन चिकित्सालय में उनका इलाज चल रहा था। सत्यनारायण जी स्वभाव से भले ही विरक्त हैं लेकिन जिन सहधर्मिणी के साथ उन्होंने दाम्पत्य जीवन के 62 बसंत देखे उनके इस तरह अचानक साथ छोड़ जाने के बाद जो रीतापन आता है उसकी कसक सिर्फ वही समझ सकते हैं। सत्यनारायण जी जब 18 के थे और वे 15 कीं तब 1947 में उनका विवाह हुआ था। दोनों ही खास दिल्ली के रहने वाले। वे दिल्ली के और दिल्ली उनकी, ऐसा ही संबंध रहा है। वही पुरानी खानदानी सांस्कृतिक गहराइयों में रचा बसा जीवन और व्यवहार। जीवन की धूप छांव में उन्होंने सत्यवती देवी जी के साथ इतने दशक साथ बिताए। सन् “48 से आपातकाल तक विभिन्न राष्ट्रीय आंदोलनों तथा संघ पर प्रतिबंध के काल में कुल मिलाकर वे तीन साल से अधिक जेल में रहे। पीछे से सारी घर-गृहस्थी उनकी सहधर्मिणी ने ही संभाली। सत्यनारायण जी की आत्मीयता, निर्हेतुक स्नेह और व्यापार में रहते हुए भी सांघिक व्यवहार यानी स्वयं नुकसान आमंत्रित करने की कीमत पर भी संगठन बनाए रखने की भावना बहुत याद आती है। वे 80 के हो गए हैं। देखना बहुत कम हो गया है-ठीक से पहचान नहीं पाते। इस कारण दो वर्ष से वे स्वयं को दिल्ली प्रांत संघचालक के दायित्व से मुक्त करने का आग्रह कर रहे थे। अब वे निवर्तमान संघचालक हैं। भारत प्रकाशन के वे लगातार 50 वर्ष तक निदेशक रहे, विशेषकर स्वर्ण जयंती उत्सवों में उनकी अग्रणी भूमिका रही। समय और अवसर ने साथ दिया तो उनके कुछ संस्मरण जरुर लिखूंगा। पाञ्चजन्य परिवार की ओर से उनकी सहधर्मिणी, जिन्हें हम सब आदर से माताजी कहते थे, को हार्दिक श्रद्धाञ्जलि अर्पित है। शोक संवेदनाएं इस पते पर भेजी जा सकती हैं-श्री सत्यनारायण बंसल7/9, पूर्वी पंजाबी बाग, नई दिल्लीसुविख्यात कला एवं फिल्म समीक्षक सुब्बुडु जी नहीं रहे। उनका पूरा नाम पी.वी. सुब्राह्ममण्यम था। देश में बहुत कम ऐसे आलोचक हुए हैं जिन्होंने चाटुकारिता और दरबारगिरी के सर्वव्यापी माहौल में निर्भीकता और निर्मल नैपुण्य के साथ संगीत, नृत्य और फिल्मों की समीक्षाएं लिखीं। वे 90 वर्ष के थे। स्वयं शास्त्रीय कलाओं के ज्ञाता और संगीतकार भी थे। उनकी समीक्षाओं में कला की गहराई और उनके शास्त्रीय ज्ञान का व्यापक फलक पाठक को समीक्ष्य विषय की जानकारी तो देता ही था, साथ ही उसकी पृष्ठभूमि का रसास्वादन कराकर आनंदित और ज्ञान समृद्ध करता था। उन्हें हमारी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित है।शेष अगली बार।आपका अपना,त. वि.6
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