धर्म संसद में संतों ने किया आह्वान
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धर्म संसद में संतों ने किया आह्वान

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May 8, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 May 2007 00:00:00

चलो रामेश्वरम्-जितेन्द्र तिवारीएक बार फिर वही ध्वनि वातावरण में गूंज रही है जो 1990 के दशक में अयोध्या आंदोलन के समय सुनी गई थी- याचना नहीं अब रण होगा, संघर्ष महा भीषण होगा। इस उद्घोष के साथ तेरहवीं धर्म संसद में देश के पूज्य संतों-महंतों – महामण्डलेश्वरों ने संकल्प लिया कि वे 26 अगस्त को रामेश्वरम् जाएंगे और अपने भक्तों को भी साथ ले जाएंगे। साथ ही चातुर्मास समाप्त होने के बाद 27 सितम्बर से देशव्यापी आंदोलन शुरू होगा और तब तक चलता रहेगा जब तक कि रामसेतु को तोड़े जाने वाली योजना रद्द नहीं कर दी जाती। “विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीति, बोले राम सकोप तब भय बिनु होय न प्रीति”- रामायण की इस चौपायी का स्मरण करते हुए धर्म संसद ने कहा कि रामसेतु न तोड़े जाने के लिए हमने सभी विकल्पों का प्रयोग किया। राष्ट्रपति व सरकार के पास प्रतिनिधिमण्डल भेजे और न्यायालय में भी गुहार लगाई। पर रामसेतु तोड़ने की केन्द्र सरकार की तैयारी को देखते हुए अब तीव्र आंदोलन ही एकमात्र उपाय है।25 व 26 जुलाई को दिल्ली में रामसेतु रक्षार्थ आयोजित धर्म संसद में देशभर के सभी प्रांतों से लगभग 5 हजार साधु-संत एकत्रित हुए। दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित इस तेरहवीं धर्म संसद के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी ने की। मंच पर उडुपि स्थित पेजावर मठ के प्रमुख जगद्गुरु माध्वाचार्य स्वामी विश्वेशतीर्थ जी, शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानंदजी, परमार्थ आश्रम (हरिद्वार) के प्रमुख पूर्व गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद, वशिष्ठ पीठाधीश्वर (डा.) रामविलास दास वेदान्ती, हिन्दू धर्म आचार्य सभा के महामंत्री स्वामी परमात्मानंद एवं अ.भा. संत समिति के महामंत्री स्वामी हंसदास सहित देश के सभी प्रांतों के प्रमुख संत, महंत और महामण्डलेश्वर उपस्थित थे। धर्म संसद में प्रस्ताविक संबोधन देते हुए विश्व हिन्दू परिषद के अन्तरराष्ट्रीय महामंत्री डा. प्रवीण भाई तोगड़िया ने बताया कि आज प्रात: ही रामसेतु रक्षा मंच की अ.भा. कार्य समिति ने रामसेतु रक्षार्थ कुछ कार्यक्रम तय किए हैं और एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया है। उन्होंने धर्मसंसद में आए समस्त साधु-संतों से इस पर विचार करने की विनती की। डा. तोगड़िया ने बताया कि गत मई माह में दिल्ली में ही आयोजित विराट हिन्दू सम्मेलन के पश्चात रामसेतु रक्षा मंच का गठन किया गया है। देश के 108 प्रमुख संत-महंत- महामण्डलेश्वर, आचार्य, परमाचार्य एवं पूज्य शंकराचार्य सम्मिलित हैं। अब देश भर में जिला स्तर व तहसील स्तर तक रामसेतु रक्षा मंच की इकाइयां गठित की जाएंगी, जो आगामी आंदोलन का संचालन करेंगी।डा. तोगड़िया ने कहा कि हम यह कतई बर्दाश्त नहीं कर सकते कि प्रभु श्रीराम के नेतृत्व में नल और नील द्वारा लाखों वर्ष पूर्व निर्मित उस रामसेतु को तोड़ दिया जाए, जो माता सीता को लंका से वापस लाने के लिए वानर सेना के सहयोग से बना था। हमसे इस सत्यता का प्रमाण मांगा जा रहा है, जो अत्यंत शर्मनाक है। हमने कभी किसी अन्य मतावलम्बी से उसकी श्रद्धा का प्रमाण नहीं मांगा। जबकि रामसेतु की ऐतिहासिकता के प्रमाण हमारे पुराणों और ग्रंथों में भरे पड़े हैं। अब नासा ने भी उपग्रह से खींचे चित्रों से पुष्टि की है कि भारत और श्रीलंका के बीच एक पुल है जो समुद्र के भीतर है, उसे हम देख सकते हैं, छू सकते हैं। इसके बावजूद सरकार इस ऐतिहासिक विरासत को तोड़ देना चाहती है क्योंकि उसका नाम राम से जुड़ा है। यह तुष्टीकरण और सेकुलरवाद की पराकाष्ठा है। डा. तोगड़िया ने संत समाज से निवेदन किया कि संत समाज धर्मसत्ता से ऐसा प्रचण्ड जनजागरण करे कि राज सत्ता को उसके सामने झुकना ही पड़े। धर्म संसद में संत जो भी निर्देश देंगे, विश्व हिन्दू परिषद के कार्यकर्ता तन, मन, धन से उसे पूर्ण करेंगे।रामसेतु रक्षा मंच के प्रस्ताव का समर्थन करते हुए गंगोत्री के प्रमुख संत स्वामी वियोगानंद जी ने कहा कि यह सरकार सोच समझकर हिन्दू भावनाओं पर आघात कर रही है, हम संतों को इस चुनौती का मुकाबला करना ही होगा। कर्नाटक के प्रमुख संत स्वामी विद्याभास्कर तीर्थ ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के किसी राजा के 4-5 सौ साल पुराने महल को ऐतिहासिक धरोहर कहकर संरक्षित कराने वाला पुरातत्व विभाग रामसेतु के मामले पर मौन साधे हुए है। ऋषिकेश से आए स्वामी रामेश्वर दास वैष्णव ने कहा कि प्रभु श्रीराम ने वनवास के दौरान वन्य जातियों को सुसंस्कृत बनाया, एकजुट किया और उन्हीं की मदद से पुल बनाकर रावण को मार गिराया। हमें उनके कृत्यों से प्रेरणा लेनी चाहिए।रामसेतु रक्षा मंत्र के प्रस्ताव का अनुमोदन करते हुए तमिलनाडु के प्रमुख संत स्वामी मारुदचला अडिगलार ने कहा कि वे इस आंदोलन को सफल बनाने के लिए हर संभव प्रयत्न करेंगे क्योंकि रामसेतु जिस राज्य की सीमा में आता है वे उसके प्रतिनिधि हैं। पर रामसेतु किसी राज्य या सत्ता का नहीं, करोड़ों रामभक्तों का है। पेजावर पीठाधीश्वर मध्वाचार्य स्वामी विश्वेशतीर्थ जी ने श्रीराम सेतु को धर्म सेतु की संज्ञा देते हुए उपस्थित संतों से संकल्प कराया- “रामसेतु रक्षा, मम् दीक्षा”। उन्होंने कहा कि संत समाज का कर्तव्य है कि धर्म की रक्षा के लिए सेतु की रक्षा करें। सेतु रक्षा के संकल्प को भंग करने वाला रामद्रोही होगा, राष्ट्रद्रोही होगा। शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानंद जी ने कहा कि केवल प्रस्ताव और संकल्प से नहीं, जन दबाव से यह सरकार झुकेगी। इस देश में औद्योगिक और आर्थिक क्रांति के बाद अब आध्यात्मिक क्रांति की आवश्यकता है। जूना अखाड़ा की प्रमुख साध्वी नैसर्गिका जी ने कहा कि राम हमारी सनातन संस्कृति के मेरुदण्ड हैं। रामसेतु को तोड़ना भारत के सांस्कृतिक मेरुदण्ड को तोड़ने के समान होगा।पूर्व गृह राज्य मंत्री स्वामी चिन्मयानंद जी ने कहा कि रामसेतु की रक्षा के साथ राम मंदिर के निर्माण का संकल्प भी पूरा होगा। हिन्दुओं के आराध्य श्रीराम अयोध्या में ही जन्मे थे, श्रीराम एक वास्तविकता थे, इसके साक्ष्यों से हमारे ग्रंथ भरे हुए हैं, पर उनके होने के एकमात्र भौतिक साक्ष्य को यह सरकार नष्ट कर देना चाहती है।वात्सल्य ग्राम (वृन्दावन) की दीदी मां साध्वी ऋतम्भरा ने कहा कि यह समय उन कारसेवकों के रक्त का ऋण उतारने का है जिन्होंने अपना बलिदान देकर राम जन्मभूमि पर स्थित गुलामी के कलंक को धो डाला था। उन्होंने कहा कि समाज तो संतों की प्रतीक्षा कर रहा है, अब संतों को ही तय करना है कि वे केवल करुणा का संदेश न दें बल्कि अस्मिता पर होते आघात को देखकर अपना रौद्र रूप भी दिखाएं। जयपुर के आचार्य धर्मेन्द्र ने तो संत शक्ति को झिंझोड़ते हुए कहा कि यदि हम सबके रहते हमारे आस्था के प्रतीक राम का सेतु टूट जाएगा तो हम किसलिए जीवित रहेंगे। तब हम आत्मदाह करें या रामेश्वरम् जाकर रामसेतु की रक्षा करते हुए जल समाधि ले लें। उन्होंने कहा कि जो हिन्दू समाज हमारे प्रति श्रद्धा प्रकट करता है, खुद भूखा रह कर भी हमें घी की चुपड़ी रोटी खिलाता है, उसकी रक्षा के लिए हमारा धर्म है कि हम अपनी बोटी-बोटी तक नुचवा डालें।26 जुलाई, 2007 की प्रात: इस 13वीं धर्म संसद के दूसरे सत्र की अध्यक्षता तमिलनाडु के प्रमुख संत स्वामी मारुदचला अडिगलार ने की। सभा के प्रारंभ में जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद जी सरस्वती ने आशीर्वचन दिया। उन्होंने कहा कि आज जब देश चारों तरफ से आतंकवाद से जूझ रहा है तब यह सरकार उस पुल को तोड़ना चाहती है जिस पर चलकर श्रीराम लंका तक गये थे और उस समय के आतंकवादी रावण को मार गिराया था। उन्होंने कहा कि जो लाखों वर्ष तक समुद्र के थपेड़ों और उसके खारे पानी से नहीं टूटा, उसे सरकार एक ऐसी समुद्री नहर बनाने के लिए तोड़ देना चाहती है जिससे होकर छोटे पानी के जहाज ही जा सकेंगे। इस सेतु समुद्रम परियोजना का विरोध वैज्ञानिक भी कर रहे हैं क्योंकि इस पुल के टूट जाने से थोरियम का वह भण्डार भी बिखर जाएगा जो भविष्य में हमारी ऊर्जा का एक बहुत बड़ा रुाोत है। पर यह सरकार अमरीकी दबाव में देश के हितों को गिरवी रख रही है। हम सभी संतों का यह परम कर्तव्य है कि हम अपने देश, धर्म और उसके स्वाभिमान की रक्षा के लिए गांव-गांव, गली-गली जाएं, जन जागरण करें और इस अधार्मिक-अराष्ट्रीय कृत्य को हर हाल में रोकें।इसी सत्र में डा. प्रवीण भाई तोगड़िया ने धर्म संसद द्वारा लिये गए निर्णयों और कार्यक्रमों की घोषणा की। (देखें पृष्ठ 11 पर) अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी हंसदास जी ने 26 अगस्त को “चलो रामेश्वरम्” की घोषणा करते हुए कार्यक्रमों की रूपरेखा प्रस्तुत की। श्रीराम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्यगोपाल दास जी ने कहा कि यह केन्द्र सरकार अंधी और बहरी है जो न रामसेतु को देख रही है और न ही संतों की बात सुन रही है। हम सब संत केवल धार्मिक अनुष्ठान ही न करते रहें बल्कि अपने संपूर्ण भारतीय समाज का जागरण कर ऐसी हुंकार भरें कि सेकुलरवाद के मद में चूर यह सरकार या तो हमारे मान बिन्दुओं का सम्मान करे या जाए।धर्म संसद द्वारा पारित प्रस्तावों और कार्यक्रमों को उपस्थित संपूर्ण संत समाज ने ॐ की ध्वनि से पारित किया। धर्म संसद में प्रत्येक प्रांत के प्रमुख संत ने इस प्रस्ताव पर अपने प्रांत की ओर से समर्थन व्यक्त किया। इनमें प्रमुख थे- हिमाचल प्रदेश के स्वामी सूरजराज जी, वृन्दावन के स्वामी फूलडोल दास महाराज, साध्वी शिवा सरस्वती जी, राष्ट्रीय सिख संगत के संरक्षक सरदार चिरंजीव सिंह, मुम्बई के महामण्डलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानंद जी, पूर्व आंध्र के स्वामी शिवानंद जी, निर्मोही अखाड़ा के प्रमुख स्वामी रामाश्रय दास जी, पंजाब के स्वामी गंगादास जी, सच्चा आश्रम के प्रमुख स्वामी गोपाल दास जी, जम्मू-कश्मीर के स्वामी देशराज जी, इन्दौर के स्वामी लक्ष्मण दास जी, दिगम्बर अखाड़ा (अयोध्या) के महंत सुरेश दास जी, कबीर आश्रम (छत्तीसगढ़) की साध्वी चंद्रकला जी, दक्षिण आंध्र के स्वामी संग्राम राम जी, कोटा राजस्थान के महामण्डलेश्वर स्वामी रामानंद जी, अयोध्या के स्वामी कन्हैया दास जी, बांसवाड़ा (राजस्थान) के स्वामी हीरागिरी जी, षड्दर्शन साधु समाज (हरिद्वार) के प्रमुख स्वामी देवानंद जी महाराज, स्वामी सुरेश दास जी (दिल्ली), महामण्डलेश्वर नारायण गिरी जी (गाजियाबाद), अ.भा. रामचरित मानस प्रचार समिति के अध्यक्ष स्वामी वेदपाठी जी, जैन संत सुशील मूनि जी के प्रतिनिधि कस्तूर मुनि जी, स्वामी कौशलेन्द्र प्रपन्नाचार्य “फलाहारी बाबा” (राजस्थान), जैन साध्वी साधना जी, स्वामी तेजसानंद गिरी (पश्चिम बंगाल), सुशील गुरुजी (महाराष्ट्र), स्वामी अवध बिहारी शरण जी (अयोध्या), भारत माता मंदिर (बंगलौर) के स्वामी रंगराजन जी।9

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