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पाठकीय

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May 8, 2007, 12:00 am IST
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दिंनाक: 08 May 2007 00:00:00

नेपाली टी.वी. चैनल को दिए साक्षात्कार में कामरेड चंद्र प्रकाश गजुरेल ने माना-हां! हमने राजतंत्र की हिमायत की थीमाओवादी कम्युनिस्टों की तीव्र भारत-विरोधी मानसिकता का प्रकटीकरण14हजार निर्दोष नेपालियों की नृशंस हत्या, 56 हजार से अधिक निरीह नागरिकों का अंग-भंग, 3 लाख परिवारों का अपने घरों से पलायन, दसियों हजार नाबालिग बच्चों द्वारा पेट भरने के लिए भिक्षाटन, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) द्वारा पिछले 10 वर्षों से चलाए गए “जनयुद्ध” का यही परिणाम है। “जनयुद्ध” के ये पैरोकार फिलहाल लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल हो गए हैं। नवगठित नेपाली मंत्रिमंडल में माओवादी भी मंत्री बन गए हैं। इसके पूर्व संयुक्त राष्ट्र संघ की देख-रेख में 34 हजार माओवादी लड़ाकुओं को विभिन्न शिविरों में रखा गया है। इधर संविधान सभा के चुनावों की तारीख का जनता और नेता बेसब्राी से इंतजार कर रहे हैं, उधर माओवादी नेता गाहे-बगाहे कोईराला सरकार के विपरीत अपनी नीति और नीयत को लेकर दुराग्रह प्रकट करने से भी बाज नहीं आ रहे हैं। माओवादी नेता प्रचंड ने पिछले दिनों कुछ ऐसे ही वक्तव्य दिए। एक और प्रमुख माओवादी नेता कामरेड सी.पी. गजुरेल ने पिछले दिनों नेपाल में एक टी.वी. चैनल पर दिए साक्षात्कार में अनेक आपत्तिजनक बातें कहीं। कामरेड सी.पी. गुजरेल नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के विदेश मामलों के प्रभारी भी हैं। प्रस्तुत है उस साक्षात्कार के मुख्य अंश।प्रस्तुति : काठमांडू से रामाशीषआपके “जनयुद्ध” में भारत की क्या भूमिका थी?भारत ने “जनयुद्ध” के खिलाफ नेपाल के शासक वर्ग को सहयोग किया। भारत ने तो “जनयुद्ध” को दबाया ही। यहां के शासक वर्ग को हथियार ज्यादातर भारत ने ही दिए।लेकिन आपके अध्यक्ष सहित अधिकांश माओवादी नेताओं को तो शरण भारत में ही मिली।भारत में हम वहां के साठ-सत्तर लाख नेपालियों के बीच शरण लेकर रहे। भारत सरकार ने हमें कभी संरक्षण नहीं दिया।नेपाल के प्रति भारत की रणनीति को आप किस रूप में देखते हैं?भारत ने जब देखा कि आम जनता राजतंत्र के विरुद्ध है तो उसने अपनी नीति बदल दी।आप किस आधार पर ऐसा कहते हैं?पिछले वर्ष 5 नवम्बर को समझौते के पूर्व भारत सरकार ने ही इसके संकेत दिए। जैसे नेपाल को दी जाने वाली हथियारों की आपूर्ति उसने रोक दी। इस कारण राजा ज्ञानेन्द्र भारत से चिढ़ गए और उन्होंने चीन से हथियारों की सहायता ली। भारत-नेपाल के बीच यह संधि है कि बिना भारत से पूर्व अनुमति के किसी तीसरे देश से नेपाल हथियारों की सहायता नहीं ले सकता। राजा ने इसके विपरीत बर्ताव किया। भारत ने इससे नेपाल में राजतंत्र के बारे में निर्णय ले लिया। यही कारण है कि भारत में स्थान विशेष पर भारत सरकार की जानकारी में सात पार्टियों के गठबंधन और हम लोगों के बीच समझौता हुआ और 12 सूत्रीय सहमति बनी।लेकिन आप लोगों ने ही “भारतीय विस्तारवाद मुर्दाबाद” का नारा लगाया था। नेपाली जनता इसे कैसे भूल सकती है?नीति हमेशा स्थाई नहीं होती। घटनाएं नीतियों में परिवर्तन को बाध्य कर देती हैं।क्या “भारतीय विस्तारवाद” बन्द हो गया?भारत के साथ निकट संबंध होने का अर्थ सभी विसंगतियों पर भारत के पक्ष का समर्थन नहीं है। विगत में भारत के साथ हुई असमान संधियों के पुनरावलोकन जैसी हमारी मांगों के संदर्भ में हम पहले की तरह बोलते आ रहे हैं। भारत के अधिकारियों के साथ दिल्ली में हुई एक वार्ता में संकेत मिला है कि हमारी बातों के बारे में वे गंभीर है। भारत काफी हद तक हमारे सवालों पर समाधान के लिए तैयार है।लेकिन ऐसी किसी बैठक के बारे में डा. बाबूराम भट्टाराई और पार्टी अध्यक्ष पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड ने तो कुछ बताया नहीं?कोई अधिकारिक भेंट नहीं हुई। सरकार से जुड़े प्रतिनिधियों से व्यक्तिगत बातचीत में जो विचार आए, उसे ही हम बता रहे हैं।आखिर भारत का इसमें क्या स्वार्थ है?भारत जानता है कि नेपाल में अशान्ति या विद्रोह का सीधा असर भारत पर पड़ता है।कहीं नेपाली माओवादियों और भारतीय माओवादियों के बीच जो निकटता है, उसे तोड़ने की यह चाल तो नहीं है?एक बात तय है कि नेपाल के माओवादी जिस प्रक्रिया से आगे बढ़े हैं, भारत के माओवादियों को उससे सीख लेनी चाहिए।आपके अध्यक्ष प्रचण्ड बार-बार कह रहे हैं कि तराई में हो रहे आंदोलन में भारत का हाथ है?भारत की राजनीति का एक हिस्सा जो हिन्दू “फंडामेंटलिस्ट” विचारों से प्रेरित है, वे लोग यहां बहुसंख्यक हिन्दुओं की भावनाओं को भड़का रहे हैं। भारत सरकार का इसमें हाथ नहीं है।आपके एक सैनिक कमांडर पासांग ने हाल ही में आरोप लगाया है कि नेपाल का सिक्किमीकरण हो रहा है?यह एक गंभीर मामला है, हम भारत सरकार के सामने यह विषय उठा रहे हैं। दक्षिण नेपाल के गौर में भारतीय गुण्डों-हत्यारों ने जो किया है, उसी कारण हमें आशंका हुई है। हाल ही में ब्रिटेन के एक डेमोक्रेटिक सांसद से मेरी भेंट हुई तो उन्होंने मुझसे पूछा था कि वे हमें किस प्रकार सहयोग कर सकते हैं। हमने उनसे यही कहा कि भारत अपने गुण्डे भेजकर, हत्यारे भेजकर नेपाल की राजनीति में हस्तक्षेप न करे, भारत नेपाली राजनीति में घुसपैठ न करे, आप इसके प्रति हमें आश्वस्त करें।क्या आपको भय है कि भारत नेपाल का सिक्किमीकरण करा सकता है?यह भय तो विगत में रहा ही है। भारत सिक्किम में खेली गई भूमिका को नेपाल में विभिन्न प्रकार से फैलाता रहा है। नेपाली जनता यह जानती है।ऐसा डर नेपाली जनता में है?जो तराई में हो रहा है, उससे यह डर समाप्त होता तो नहीं दिखता।नेपाल में रणनीतिक रूप में किसका भू-राजनीतिक स्वार्थ बड़ा है, अमरीका का या भारत का?चीन और भारत की बीच स्थित होने के कारण अमरीका नेपाल में अपनी कठपुतली सरकार चाहता है ताकि विश्व राजनीति पर वह अपना नियंत्रण मजबूती से रखे।आपका कहना है कि जनयुद्ध अभी जारी है।संघर्ष का रूप बदला है, पहले सशस्त्र था, अब शान्तिपूर्ण है।संविधान निर्माण के बाद तो नेपाल का “पालिटिकल स्टैंड” तय हो जाएगा, फिर जनयुद्ध की गुंजाइश कहां बचती है?हमारी परिकल्पना के अनुरूप लक्ष्य हासिल नहीं हुआ है। वह हो जाएगा तो…कैसे हासिल होगा? प्रचण्ड ने हाल ही में कहा है कि पूर्व महाराजा बीरेन्द्र के साथ मिलकर वे एक रणनीति बनाने की कोशिश कर रहे थे, ऐसे राजनीतिक जोड़-तोड़ के प्रकट होने पर जनता आपके बारे में क्या सोचेगी?नेपाली जनता को हम समझाएंगे। राजा बीरेन्द्र ने अपने दूत हमारे पास भेजे थे।आपने पहल की या राजा ने?शायद उन्होंने ही। संवाद दोनों के बीच शुरू हुआ लेकिन पहला पत्र तो उधर से ही आया। केन्द्रीय पोलित ब्यूरो में उस पर विचार-विमर्श हुआ। हम इसकी पुष्टि करते हैं, छिपाएंगे नहीं।आपके एक नेता रवीन्द्र श्रेष्ठ ने कहा है कि ऐसा दिल्ली के कहने पर किया गया?इसकी जानकारी मुझे नहीं है। लेकिन यह सच है कि उस समय हमने राजतंत्र बनाए रखने पर सहमति व्यक्त की थी। राजा यदि शान्तिपूर्ण तरीके से जनता के लिए राजसत्ता छोड़ देते तो उनका बड़ा त्याग होता।एक क्रांतिकारी पार्टी क्या दिवास्वप्न तो नहीं देख रही थी?इतिहास में ऐसे उदाहरण हैं। राजकुमार नरोत्तम सिंहानुक ने क्या राजसत्ता का त्याग नहीं किया। वहां भी परंपरागत राजतंत्र था। वैसा नेपाल में भी हो सकता था। यह नेपाल राष्ट्र के हित में होता, बिना रक्तपात के राजतंत्र समाप्त हो जाता।नूतन राष्ट्राध्यक्षा पद और संस्था की गरिमा का सम्मान हो – तरुण विजयधर्म संसद में संतों ने किया आह्वान चलो रामेश्वरम् -जितेन्द्र तिवारीमदुरै में रामसेतु रक्षण आंदोलन की विशाल जनसभा रामसेतु टूटने नहीं देंगे – शंकर महादेवनअब विलम्ब का समय नहीं -अशोक सिंहल, अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष, विश्व हिन्दू परिषद्दिल्ली की सड़कों पर संत नहीं तो कौन?13वीं धर्म संसद द्वारा श्रीरामसेतु की रक्षा के लिए पारित प्रस्तावयह तो ठीक नहीं हुआ – प्रतिनिधिभारत-अमरीका परमाणु संधिऐसी भाषा-कैसी भाषा वारंट इशू-रावल होंगे अरेस्टसरोकार कुत्तों के प्रति हिंसा दण्डनीय अपराध – मेनका गांधी, सांसद, लोकसभामंथन राष्ट्रपति चुनाव राष्ट्र हारा, राजनीति जीती – देवेन्द्र स्वरूपदिशादर्शन नूतन राष्ट्राध्यक्षा पद और संस्था की गरिमा का सम्मान हो -तरुण विजयइतिहास दृष्टि 1857 के महासमर की मूल प्रेरणा-4 ब्रिटिश धोखाधड़ी का विरोध – डा. सतीश चन्द्र मित्तलदस्तावेज जब हिन्दी को हिन्दुस्तानी बनाने का दुष्प्रयास विफल हुआ- शिवकुमार गोयलगवाक्ष विश्व हिन्दी-सम्मेलन की फलश्रुति – शिवओम अम्बरपंजाब की चिट्ठी 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सिर्फ घोषित हुई, मगर मचा हड़कम्पआया मुस्लिम जगत में,मानो इक भूकम्प।मानो इक भूकम्प, मुंबई करवट लेगाइनको भी हो माफी, यह अभियान चलेगाकह “प्रशांत” हैं सत्ता में अफजल के “प्यारे”आतंकी खुश हैं, जमा हैं सेकुलर सारे-प्रशांतअदालत की सुनेगी यह सरकार?आवरण कथा के अन्तर्गत श्री आलोक गोस्वामी की रपट “रामसेतु को न छुएं” अच्छी लगी। मद्रास उच्च न्यायालय का यह निर्णय उन सेकुलरों के लिए चेतावनी है जो भारतीय संस्कृति और उसके गौरवपूर्ण इतिहास को जानबूझकर नष्ट करने पर तुले हैं। नासा द्वारा लिए गए चित्रों ने यह सिद्ध कर दिया है कि यह वही सेतु है जिसे श्रीराम ने हनुमान, सुग्रीव, नल और नील जैसे पराक्रमियों की सहायता से लंका पहुंचने के लिए बनवाया था। परन्तु केन्द्र सरकार ने रामसेतु के सच को भी उसी प्रकार असमंजस का विषय बना लिया है जिस प्रकार अयोध्या में खुदाई में राम मंदिर का सच साबित हो जाने के बाद भी उसे नकारने की बेशर्मी दिखाई थी।-रमेश चन्द्र गुप्तानेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)रामसेतु के सन्दर्भ में मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय से हिन्दुओं का न्यायतंत्र पर विश्वास और दृढ़ हुआ है। यह निर्णय उन सेकुलर नेताओं को भी करारा तमाचा है, जो रामसेतु के अस्तित्व पर ही प्रश्न उठाते हैं। न्यायालय का यह तर्क बहुत ही सटीक लगा कि क्या विकास के नाम पर ताजमहल को भी तोड़ा जा सकता है? ऐसा निर्णय देने वाले दोनों न्यायाधीशों न्यायमूर्ति शाह एवं न्यायमूर्ति ज्योतिमणि को ह्मदय से साधुवाद!-मोहन सुथारकांकरोली, राजसमंद (राजस्थान)नन्दीग्राम के स्वाभिमानीबंगाल की चिट्ठी के अन्तर्गत श्री बासुदेब पाल की रपट “नन्दीग्रामवासियों ने लौटाया बुखारी को” से ज्ञात होता है कि नन्दीग्राम के लोग स्वाभिमानी हैं। घटना के तीन महीने बाद बुखारी का नन्दीग्राम जाने के पीछे क्या उद्देश्य हो सकता है, यह हर उस व्यक्ति को पता है जो बुखारी को अच्छी तरह जानता है। ये वही बुखारी हैं, जो गर्व से कहते हैं, “हां, वे आई.एस.आई. के एजेन्ट हैं। हिम्मत है तो कोई उन्हें गिरफ्तार करके दिखाए।” वे भारतीय न्याय व्यवस्था और भारत सरकार के प्रति भी उल्टी-सीधी बातें कहते रहते हैं। अच्छा हुआ नन्दीग्राम के मुसलमान उनके झांसे में नहीं आए। उन्होंने सराहनीय कार्य किया है।-प्रदीप सिंह राठौरमेडिकल कालेज, कानपुर (उ.प्र.)फतवे पर रोकधर्म-मुक्त मानववादी मंच ने “समान नागरिक संहिता लागू करो, शरियत हटाओ, काजी- मुफ्तियों के फतवों पर रोक लगाओ” की मांग कर राष्ट्रीय एकता हेतु अच्छा प्रयास किया है। इस मंच में जितनी जरुरत मुसलमानों की भागीदारी की है उससे कहीं अधिक हिन्दुओं की है। मंच के महासचिव श्री मुजफ्फर हुसैन बधाई के पात्र हैं। जिन मुद्दों पर सेकुलर चर्चा तक नहीं करते, उन पर श्री हुसैन ने बेबाक चर्चा प्रारंभ कर उन्हें चुनौती दी है।-क्षत्रिय देवलालअड्डी बंगला, झुमरी तलैया, कोडरमा (झारखण्ड)संविधान समय के अनुरूप बनेमंथन में श्री देवेन्द्र स्वरूप ने अपने आलेख “राष्ट्रपति पद- संविधान बनाम जनमत” में संविधान का अच्छा विश्लेषण किया है। संविधान में कई बातों पर लीपापोती की गई है। इस कारण जातिवाद और प्रान्तवाद कम होने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है। शुरू में आरक्षण केवल 10 वर्ष के लिए दिया गया था, किन्तु हर 10 वर्ष बाद उसकी अवधि बढ़ा दी जाती है। विकृत राजनीतिक सोच के कारण आगे भी यह अवधि बढ़ती रहेगी।-शिव शम्भू कृष्ण417/205, निवाजगंज, लखनऊ (उ.प्र.)कुछ मुस्कुराने की बात करेंपाञ्चजन्य में पहले एक स्तम्भ छपता था- “जिन्दगी मुस्कुराई”। लगता है कि जब से यह स्तम्भ बन्द हुआ है तब से पाञ्चजन्य को मुस्कुराना अच्छा नहीं लगता। पाञ्चजन्य में इतने गंभीर लेख होते हैं कि हम जैसे पाठकों को कई बार अनेक चीजें समझ नहीं आतीं। अच्छा हो कि हर स्तर के पाठकों के लिए कुछ न कुछ पाञ्चजन्य में आता रहे। कुछ अंक पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के सर्वेक्षण दल से श्री तरुण विजय की बातचीत पर आधारित एक रपट छापी गई थी। इसमें बंगलादेशी घुसपैठ को लेकर चिन्ता जताई गई थी। काश, सरकार में बैठने वाले लोगों को यह चिन्ता सताए तो इसका हल हो सकता है।-देवेन्द्र पाल11/220 बी, सिनेमा रोड, बटाला (पंजाब)पुरस्कृत पत्रविभाजनकारी सोचआजादी के 60 वर्ष बाद संविधान की भावना के विपरीत “अल्पसंख्यक” शब्द को परिभाषित करने के लिए सरकार संविधान में संशोधन हेतु एक विधेयक लाने की तैयारी में है। प्रस्तावित 103वें संविधान संशोधन विधेयक में नई परिभाषा के तहत विभिन्न राज्यों में जिस पंथ के लोग कम संख्या में होंगे उन्हें वहां अल्पसंख्यक माना जायेगा। विधेयक को मंत्रिमंडल की स्वीकृति मई में ही मिल चुकी है। इसको लेकर देश में एक बहस शुरू हो गयी है। विभिन्न संगठनों, आयोगों ने विधेयक का पुरजोर विरोध करते हुए कहा है कि इससे लोगों में राष्ट्रीयता की भावना नहीं, बहुराष्ट्रीयता की भावना पैदा हो सकती है, जो संविधान की भावना के विपरीत होग्ाी। पूरा देश अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक दो खेमों में बंट जायेगा। इससे विभाजन की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलेगा। इस नई परिभाषा के दायरे में पंजाब में सिख, जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम, सिक्किम, नागालैण्ड एवं मिजोरम में ईसाई अल्पसंख्यकों की सूची में नहीं होंगे, बल्कि धार्मिक आधार पर हिन्दू अल्पसंख्यक होंगे। जाहिर है कि जिस पंथ के लोग एक राज्य में बहुसंख्यक होंगे वही दूसरे राज्य में अल्पसंख्यक हो सकते हैं। ऐसे में अल्पसंख्यक होने के नाते उन्हें मिलने वाली सुविधाओं को लेकर हर राज्य में एक नया विवाद पैदा हो सकता है।-महेन्द्र अग्रवालअनपरा, सोनभद्र (उ.प्र.)हर सप्ताह एक चुटीले, ह्मदयग्राही पत्र पर 100 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा। -सं.3

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