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वीरभद्र की वीरता!- अजय श्रीवास्तवहिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने राज्य में मतांतरण पर अंकुश लगाने के लिए एक व्यापक कानून बनाकर ऐतिहासिक कदम उठाया है। मुख्यमंत्री श्री वीरभद्र सिंह ने इस बारे में पहल की और विशेष रुचि लेकर धर्मशाला में हुए विधानसभा के शीतकालीन सत्र में सर्वसम्मति से “हिमाचल प्रदेश धर्म स्वातंत्र्य विधेयक-2006” पारित कराया। विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने इस मुद्दे पर सरकार का पूरा साथ दिया और मुख्यमंत्री को बधाई भी दी। विभिन्न राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने कांग्रेस सरकार की इस पहल का जोरदार स्वागत किया है। भाजपा की राज्य सरकारों के बाद हिमाचल प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस सरकार ने मतांतरण के खतरों को भांपकर कानून बनाने की जरुरत समझी।अन्तरराष्ट्रीय सीमा से जुड़ा होने के कारण हिमाचल प्रदेश राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील माना जाता रहा है। पिछले कुछ वर्षों में राज्य के दूरदराज के क्षेत्रों तक ईसाई मिशनरियों ने अपनी पैठ बना ली। राज्य की खुफिया एजेंसियां इस बारे में लगातार सरकार को सावधान कर रही थीं। राज्य खुफिया पुलिस के अनुसार केवल वर्ष 2002 में मतान्तरण के 548 मामले सामने आए। इनमें सबसे ज्यादा 450 व्यक्ति शिमला जिले में, 79 किन्नौर में, 10 मंडी में और 4 कुल्लू में मतांतरित कराए गए। इसके बाद ये सिलसिला और जोर पकड़ता चला गया। अनुमान है कि प्रदेश में पिछले तीन वर्षों के दौरान बड़ी संख्या में लोग ईसाई बनाए गए। हालांकि सरकारी एजेंसियां वर्ष 2003 के बाद हुए मतांतरण के आंकड़े देने से कतरा रही हैं क्योंकि यह दौर कांग्रेस सरकार का रहा है।विधानसभा में विधेयक पेश करते हुए मुख्यमंत्री श्री वीरभद्र सिंह दार्शनिक अंदाज में दिखे। उन्होंने सदन में कहा, “समाज के विभिन्न वर्गों से लगातार यह मांग उठ रही थी कि सरकार बलपूर्वक या लोभ-लालच से कराए जा रहे मतांतरण पर अंकुश लगाए। यदि इसे समय रहते नहीं रोका गया तो यह राज्य के विभिन्न नस्लीय व पांथिक समूहों के बीच आपसी विश्वास और सौहार्द को नष्ट कर देगा। इसलिए प्रदेश में बलपूर्वक मतांतरण को रोकने और शांतिपूर्ण वातावरण बनाए रखने के लिए एक कानून बनाने का फैसला किया गया।”श्री वीरभद्र सिंह का कहना था, “देश का संविधान सभी भारतीयों को अपनी इच्छानुसार किसी पंथ-सम्प्रदाय को मानने और उसका प्रचार करने की छूट देता है। लेकिन यदि इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग इस हद तक किया जाए कि यह देश या उसके किसी हिस्से में शांति भंग करने लगे तो सरकार का यह दायित्व है कि वह इस खतरे को समय रहते रोके और भारत की मूल विशेषता- सह अस्तित्व का संरक्षण करे। भारत शुरू से विभिन्न समुदायों व मत-पंथों के बीच शांतिपूर्ण सह अस्तित्व में विश्वास करता आया है।” उन्होंने कहा कि कानून बनाने का एकमात्र उद्देश्य यही है।मुख्यमंत्री श्री वीरभद्र सिंह द्वारा विधानसभा में रखे गए विधेयक में संशोधनों के लिए विपक्षी दल भाजपा के नेता प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने कुछ सुझाव दिए। मुख्यमंत्री ने बिना किसी हिचक के उन पर सहमति जताई और विधेयक कुछ संशोधनों के साथ पारित हो गया। यह एक ऐतिहासिक अवसर था जब भाजपा विधायक दल के नेता और अन्य सदस्यों ने मुख्यमंत्री की खुलकर प्रशंसा की। प्रो. धूमल ने कहा, “मैं मुख्यमंत्री श्री वीरभद्र सिंह और कांग्रेस सरकार को बधाई देना चाहता हूं कि वे ऐसा विधेयक लाए। यह एक ऐतिहासिक कानून होगा।”हिमाचल में मतांतरण का मुद्दा पिछले कुछ समय से समाज के विभिन्न वर्ग जोर-शोर से उठा रहे थे। चंबा, कुल्लू और ऊ‚ना जिलों में मतांतरण की घटनाएं सभी दैनिक समाचार पत्रों में प्रमुखता से छपीं। राष्ट्रवादी संगठनों के साथ भाजपा और कांग्रेस के कुछ नेताओं ने भी मतांतरण की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताई।गत वर्ष विधानसभा के मानसून सत्र में भाजपा के श्री जयराम ठाकुर ने यह मामला उठाया और आरोप लगाया कि सरकार इस मुद्दे पर जनता को गुमराह कर रही है। उन्होंने तब कई जिलों में चल रहे मतांतरण षडंत्र का उल्लेख किया था। भाजपा के ही डा. राजीव बिंदल का कहना था कि ईसाई मिशनरियों ने अनेक नेपाली हिन्दुओं को मतांतरित किया है और उनके माध्यम से अपना अभियान तेज कर रहे हैं। तब मुख्यमंत्री श्री वीरभद्र सिंह ने कहा था, “संविधान के दायरे में हिमाचल प्रदेश सरकार यह देखेगी कि यदि कोई बलपूर्वक या प्रलोभन द्वारा मत परिवर्तन कराता है तो दोषियों के विरुद्ध क्या कार्रवाई की जाए।” उन्होंने यह भी कहा था कि “राज्य सरकार अन्य राज्यों में विद्यमान कानूनों और समाज की इस संबंध में भावना का अध्ययन कर रही है। यदि सरकार आवश्यक समझेगी तो इस बारे में विधेयक लाने पर विचार करेगी।” और मुख्यमंत्री ने एक वर्ष के भीतर ही बड़ी ईमानदारी से अपने आश्वासन को पूरा कर दिखाया।ईसाई मिशनरी पिछले कुछ वर्षों से हिमाचल प्रदेश के प्रमुख शहरों के साथ-साथ दूर-दराज के गांवों में सेवा और शिक्षा की आड़ में मतांतरण का कुचक्र चला रहे हैं। एक दशक पहले शिमला में बस स्टैंड के समीप डाउन-डेल फागली नामक स्थान पर ईसाई मिशनरियों ने एक गैरसरकारी संगठन “ओजानम सोसाइटी” के नाम पर सरकार से कई बीघा जमीन पट्टे पर ले ली, उद्देश्य बताया- कुष्ठ रोगियों के लिए आश्रम बनाना। लेकिन जल्दी ही वहां बसे कुष्ठ रोगियों व अन्य गरीब लोगों को मतांतरित करने के प्रयास शुरू कर दिए। शंकर नामक एक विकलांग को मतांतरित भी कर दिया गया। इसका व्यापक विरोध हुआ और अखबारों ने ये मामला प्रमुखता से उठाया। हाल ही में कांग्रेस सरकार ने इस विवादास्पद संस्था को दी गई जमीन का पट्टा रद्द कर दिया है।सीमावर्ती किन्नौर व लाहौल स्पीति जैसे जनजातीय बहुल जिलों में हिन्दुओं के साथ-साथ बौद्ध मतावलंबी भी बड़ी संख्या में ईसाई बनाए गए हैं। चंबा जिले के एक छात्रावास में रह रही लड़कियों को सैर-सपाटे के बहाने ले जाकर धोखे से ईसाई बनाए जाने की घटना भी सुर्खियों में रही। ये सभी बालिकाएं बाद में राष्ट्रवादी संगठनों के प्रयासों से हिन्दू धर्म में वापस आ गईं। हाल ही में कुल्लू जिले में नशा मुक्ति केन्द्र की आड़ में मिशनरियों द्वारा मतांतरण कराए जाने का स्थानीय लोगों ने कड़ा प्रतिकार किया। बाद में पुलिस ने मामला दर्ज कर दो ईसाई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया। कई अन्य स्थानों पर भी ऐसी घटनाएं प्रकाश में आईं। बाद में बहुत से मतांतरित लोग स्वधर्म में लौट भी आए।7
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