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हर किसी ने देखना चाहाहिन्दू भारतहर वर्ष की भांति इस वर्ष भी नई दिल्ली में दुनिया के विभिन्न देशों में बसे प्रवासी भारतीयों और भारतवंशियों का समागम हुआ। अटल जी की राजग सरकार ने विदेशी धरती पर बसे भारतवंशियों के सम्मान और उनके योगदान की सराहना का जो वार्षिक उत्सव आरंभ किया था उसे मनमोहन सिंह सरकार ने जारी रखा है। इस वर्ष 7 जनवरी को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सिंगापुर के उपप्रधानमंत्री प्रो. एस. जयकुमार ने प्रवासी भारतीय सम्मेलन का शुभारंभ किया। तीन दिवसीय समारोह के उद्घाटन अवसर पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रवासी भारतीयों द्वारा भारत की प्रगति में दिये गये उनके योगदान की मुक्त कंठ से सराहना की और भविष्य में भी इसी प्रकार के सहयोग की कामना की। इस अवसर पर जहां प्रवासी भारतीयों की सहभागिता वाले अनेक कार्यक्रम हुए वहीं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र ने भी 5-9 जनवरी तक विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों, संगोष्ठियों, प्रदर्शनियों और फिल्म प्रदर्शनों का आयोजन किया।हालांकि इस वर्ष भी 15 प्रवासी भारतीयों को प्रवासी भारतीय सम्मान अर्पित किये गये परंतु इस बार अनुभव कुछ खटास भरा रहा। सम्मानित नामों के चयन को लेकर अनेक लोगों ने शिकायत तो की परंतु उस पर सरकार की ओर से कोई ध्यान नहीं दिया गया। इससे इस बात का भी अंदाजा लगा कि नामों के चयन में कहीं कुछ अनुचित हुआ था। अमरीका में भारत के राजदूत श्री रोनेन सेन तो, पता चला कि, काफी खिन्न थे। उनकी खिन्नता का कारण था कि सम्मान के लिए जिस प्रक्रिया से नामों का चयन किया जाता रहा है उसकी इस बार अनदेखी की गयी। जिन 15 लोगों को सम्मान दिया गया वे कहीं न कहीं नामों का चयन करने वाले मंत्रालय के प्रभारी मंत्री वायलार रवि के निकट के और केरल से संबंधित थे। वायलार रवि भी केरल से ही हैं। अमरीका के प्रवासी भारतीयों और भारतवंशियों को तो इन नामों से बिल्कुल भी संतुष्टि नहीं थी। उनकी शिकायत थी कि अमरीका में भारतीय राजदूत श्री रोनेन सेन ने जिन प्रवासी भारतीयों के नामों की संस्तुति की थी उनको सिरे से नजरअंदाज कर दिया गया। इस बार सिर्फ सागरपारीय भारतीय मामलों के मंत्री वायलार रवि की ही चली, जिन्होंने चयन प्रक्रिया की तमाम आवश्यकताओं को कथित रूप से दरकिनार कर दिया था और चयन के लिए निर्धारित बैठकों को जान-बूझकर स्थगित किया था। उन्होंने सम्मेलन के उद्घाटन के दिन तक सम्मानित होने वाले लोगों की सूची किसी के सामने आने नहीं दी। हालांकि एक प्रवासी भारतीय को किसी प्रकार जब सूची की प्रति मिली तो वह भौंचक्का रहा गया क्योंकि राजदूत रोनेन सेन ने भारत-अमरीकी परमाणु संधि के लिए भारत का पक्ष दमदारी के साथ रखने वाले जिन लोगों के नाम सम्मान के लिए भेजे थे उनमें से एक का भी नाम उस सूची में नहीं था। रोनेन सेन द्वारा भेजे नामों में प्रमुख थे इंडियाना के डा. भरत बाराई, टैक्सास के अशोक मागो, इलिनोयस के रघु नायक, न्यूयार्क के नवीन मेहता और नार्थ कैरोलिना के स्वदेश चटर्जी। हालांकि मंत्रालय की ओर से इन लोगों से नई दिल्ली में उनकी उपलब्धता संबंधी बात तो की गयी पर उसके आगे कुछ नहीं हुआ। वायलार रवि ने अपने से नाम तय करके सीधे राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर के लिए भेज दिये थे। चयन समिति के अध्यक्ष उपराष्ट्रपति श्री भैरोंसिंह शेखावत सहित अन्य सदस्यों तक को चयनित नामों की जानकारी नहीं दी गयी।परंतु इन खट्टे अनुभवों से इतर प्रवासी भारतीयों ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र में पांच दिवसीय रंगारंग कार्यक्रमों का आनंद उठाया। चित्र प्रदर्शनियां, फिल्म प्रदर्शन, व्याख्यान, सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए। भारत में प्रवासी भारतीयों के मूल गांवों और शहरों की खोज का इस बार अनूठा प्रयास किया गया और प्रवासी भारतीय भी इससे बेहद आकर्षित दिखे। संगोष्ठियों में उन्होंने अपने-अपने देशों की स्थितियों की चर्चा की और भारत से अपने जुड़ाव को भी गर्व के साथ प्रस्तुत किया। फिल्म प्रदर्शनों में उन फिल्मों को प्रदर्शित किया गया जो प्रवासी भारतीयों द्वारा बनायी गयी थीं। इन कार्यक्रमों में दिल्ली में स्थित विभिन्न देशों के राजदूत भी उपस्थित थे। भारत के शास्त्रीय नृत्यों की प्रस्तुति ने खूब समां बांधा।कुल मिलाकर प्रवासी भारतीय उत्सव तो मना पर जिस चीज की भारतवंशियों को आतुरता से तलाश थी वह उन्हें ढूंढे नहीं मिली और मिली भी तो उतनी नहीं जितनी उनकी कल्पना थी। हिन्दुस्थान में न हिन्दी से मेल-जोल हो पाया और न हिन्दू-भारत से। अंग्रेजियत का बोलबाला अधिक रहा और सरकारी अफसरों की अंग्रेजी बोलने की खास अदा को देख-देखकर वे दांतों तले अंगुली दबाते रहे। कुछ ने तो उनसे हिन्दी में बोलने की कोशिश की पर जवाब अंग्रेजी में पाया तो ठगे से रह गये। प्रतिनिधि15
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