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अघोरी बाबा कीनाराम का चमत्कारिक व्यक्तित्वजिनके शाप से शाहजहां को हुई जेल और चेत सिंह भटका दर-दरवचनेश त्रिपाठी “साहित्येन्दु”काशी के प्रसिद्ध अघोराचार्य बाबा कीनाराम के जीवन की घटनाओं का वर्णन प्रसिद्ध लेखक काजिम रिजवी ने किया है, जो तत्कालीन मुगल बादशाह शाहजहां से सम्बंधित हैं।अघोरी सम्प्रदाय के बाबा कीनाराम वि.सं. 1658 के भाद्रमास में कृष्ण पक्ष की अघोर चतुर्दशी को सूर्योदय काल में ग्राम रामगढ़, चंदौली (वाराणसी) में जन्मे थे। उनके पिता रघुवंशी क्षत्रिय श्री अंकवर सिंह थे। महात्मा दत्तात्रेय से बाबा कीनाराम ने दक्षिण भारत में दीक्षा ली थी। उन्होंने 16 वर्ष की आयु में ही गृह त्याग दिया था। 421 वर्ष पूर्व उनके द्वारा प्रज्ज्वलित की गई धूनी आज भी काशी के क्रीं कुण्ड स्थल पर जल रही है। बाबा के बैठने का तख्त भी यहां यथावत है। यहीं बाबा का समाधि स्थल भी है। लोलार्क छठ पर प्रतिवर्ष यहां विशाल मेला लगता है। क्रीं कुण्ड के रोग-निवारक कई चमत्कार विख्यात हैं। कहा जाता है कि बाबा ने सं. 1856 वि. में 178 वर्ष की आयु में समाधि ली थी।काजिम ने लिखा है कि बाबा कीनाराम के आशीर्वाद से ही शाहजहां ने कंधार के किले पर कब्जा किया था। कंधार का किला उस समय में अत्यंत सैन्य महत्व रखता था, लेकिन जहांगीर की वृद्धावस्था का लाभ उठाकर उस किले पर फारस के शासक अब्बास ने धोखे से कब्जा जमा लिया। युद्ध भी हुआ लेकिन मुगल सफल न हुए। जब शाहजहां शासक बना तो वह कंधार किले पर कब्जा करने पहुंच गया। उस समय बाबा कीनाराम कंधार की यात्रा पर थे।शाहजहां को जब इस बात की जानकारी मिली तो वह बाबा की सेवा में तत्काल पहुंच गया और उनसे युद्ध में विजयी होने की दुआ मांगी। बाबा ने प्रसन्न होकर शाहजहां को आशीर्वाद दिया, “जा, यह किला बिना लड़ाई के ही तुझे मिल जाएगा।” और हुआ भी यही, अब्बास ने बिना युद्ध किए ही कंधार किले से अपना अधिकार छोड़कर शाहजहां को सौंप दिया। तब शाहजहां ने उसी किले में बाबा कीनाराम को सादर आमंत्रित किया। वहां से लौटकर अपने दरबार से शाही हुक्म दिया, “काशी के हरिश्चन्द्र घाट और मणिकर्णिका घाट के श्मशानों पर जिस मृतक का अंतिम संस्कार होगा, उस पर 5 लकड़ियां और 5 पैसे की वसूली का हक बाबा कीनाराम के क्रीं कुण्ड आश्रम को रहेगा। साथ ही बनारस जिले के हर गांव से एक-एक रुपए की वसूली का हक भी उन्हें ही रहेगा।कालान्तर में जब शाहजहां बाबा कीनाराम से मिला तो वह पूरी तरह से विलासी हो गया था और अय्याशी में रंगा हुआ था। वह अपनी बेगम के नाम पर आगरा में ताजमहल बनवा रहा था, जिसमें अधिक धन व्यय हो रहा था। बाबा ने जब उसे उसके विलासी जीवन और महल बनवाने में धन के अपव्यय पर टोका तो उसने बाबा का अपमान करते हुए उद्दण्डता दिखाई। बादशाह के इस व्यवहार से क्रोधित होकर बाबा कीनाराम ने उसे शाप दिया, “तुमने आज साधु की अवज्ञा की है। तुम बीबी के गुलाम हो। तुम्हें अपने इस विलासी जीवन और घमण्ड का फल भोगना पड़ेगा। तुम्हारी अपनी ही औलाद तुम्हें कैद में डालेगी और दु:खी करेगी। तुम अपनी करनी का फल भोगोगे।”इतिहास साक्षी है कि शाहजहां को उसके बेटे औरंगजेब ने कैद में डाल दिया और उसका शेष जीवन वहीं व्यतीत हुआ। बाबा कीनाराम का शाप सच सिद्ध हुआ।। । ।काशी के राजा बलवंत सिंह नि:संतान थे इसलिए चेत सिंह को राजगद्दी दी गई। मतान्ध होकर उसने राजदरबार में बाबा कीनाराम का अपमान किया तो बाबा ने शाप दिया, “राजसत्ता के मद में चूर होकर तूने साधु का अपमान किया है, जा तेरा राज-पाट छिन जाएगा और तू दर-दर की ठोकर खाएगा। तुझे किला छोड़ना पड़ेगा और नि:संतान ही मरेगा।” कुछ ही दिन बाद चेत सिंह जब वारेन हेÏस्टग्स की चापलूसी में लगा था तब एक अंग्रेज ने उसकी पगड़ी पर लात मार दी। चेत सिंह को गिरफ्तार करना चाहा तो वह फरार हो गया और फिर दर-दर भटकता फिरा। अंत तक नि:संतान ही रहा।उधर शाप के भय से आकुल चेत सिंह के दीवान बक्शी सदानन्द ने बाबा के पैर पकड़ कर क्षमायाचना की और आशीर्वाद मांगा तो बाबा ने कहा, “अब काशी पर म्लेच्छ (अंग्रेज) कब्जा करेंगे।राज परिवार उन्हें के आधीन रहेगा। जब विदेशी शासक चले जाएंगे तब दिल्ली में इस देश के लोगों का राज्य शुरू होगा तब स्थिति बदलेगी और तेरे घर की स्थिति भी बदलेगी। जा बक्शी, तू घर जा। जब तक तेरे वंशजों के नाम से “आनन्द” शब्द जुड़ा रहेगा तब तक तेरा वंश चलेगा।” यह बात भी सत्य सिद्ध हुई। इन्हीं के वंशज डा. सम्पूर्णानन्द उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। आज भी उनके परिवार में “आनन्द” शब्द प्रचलित है।14
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