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चर्चा सत्र

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Jan 4, 2007, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Jan 2007 00:00:00

राष्ट्रीय सुरक्षा और बढ़ती नक्सली हिंसा-1जहर बुझे नक्सली इरादों को परास्त करना है-जगमोहन, पूर्व केन्द्रीय मंत्रीपिछले दिनों नक्सली हिंसा के दौरान देश में घटी चार बड़ी घटनाओं ने हमारी आंतरिक सुरक्षा की पोल खोल दी है। गत 15 मार्च को नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में पुलिस शिविर पर हमला करके 56 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी। इस हमले में राकेट लांचर, डेटोनेटर और पेट्रोल बम का भारी मात्रा में इस्तेमाल किया गया था। इतने बड़े हमले से स्पष्ट होता है कि यह सुनियोजित था और इसके लिए नक्सलियों को सैनिक प्रशिक्षण दिया गया था। कुछ दिन पूर्व झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसद सुनील महतो की दिन-दहाड़े हत्या कर दी गई थी। नक्सलियों द्वारा इसी साल जनवरी-फरवरी के दौरान एक महीने तक झारखंड-बिहार सीमा पर “स्वतंत्र जोन” में एक पार्टी सम्मेलन भी आयोजित किया गया था। साथ ही तीन माह पहले बोकारो जिले में एक बारूदी सुरंग विस्फोट में 13 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी।इस तरह की त्रासदपूर्ण घटनाएं तब तक होती रहेंगी जब तक सरकार की नीतियों में वर्तमान नक्सली आंदोलन के ताने-बाने और समर्थन देने वाली ताकतों को ठीक से नहीं समझ लिया जाता। इस समय नक्सवादी 1960 के दशक के मुकाबले संगठनात्मक रूप से ज्यादा मजबूत हैं और उनका नेतृत्व भी बेहतर है। गौरतलब है कि वर्ष 1960 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी इलाके में नक्सलवाद की शुरुआत हुई थी। उस जमाने में नक्सलवादी माओवादी विचारधारा से ओत प्रोत थे। उनका मानना था कि सत्ता का मार्ग बंदूक के मुख से शुरू होता है। उन्होंने हिंसा का सहारा लेकर सभी बड़े-छोटे जमींदारो और पूंजीपतियों से क्षुद्रों और मजदूरों को मुक्त कराया। उस समय चारू मजूमदार जैसे तेज व ओजस्वी नेता नक्सलियों का नेतृत्व करते थे। चारू मजूमदार द्वारा सामंतवाद के खिलाफ शुरू किया गया यह आंदोलन पूरे भारत में फैल गया, लेकिन उनके तानाशाही व्यवहार से जल्द ही उनके सहयोगियों में फूट पड़ गई और वे अलग हो गए। वर्ष 1972 में चारू मजूमदार की मौत के बाद यह आंदोलन एक तरह से खत्म हो गया।फिलहाल स्थिति भिन्न है। राजनीतिक और सामरिक दृष्टि से नक्सल आंदोलन में बदलाव आ चुका है। वर्ष 1990 से नक्सली पुन: धीरे-धीरे ताकतवर हुए हैं। सितम्बर 2004 में उस समय नक्सल आंदोलन में एक परिवर्तन देखा गया जब माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर व पीपुल्स वार ग्रुप पुन: एक हो गए और सी.पी.आई. (माओवादी) नाम से एक नए संगठन की स्थापना की। ध्यान रहे कि ये दोनों संगठन नक्सल प्रभावित लगभग 90 प्रतिशत भू-भाग पर अपनी पकड़ बनाए हुए थे। साथ ही इन नक्सलियों ने पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी नाम से एक सैनिक दस्ते का भी गठन कर लिया है। इन दोनों संगठनों के एकजुट होने से पूर्व इनके बीच कई बार हिंसक झड़पें हो चुकी हैं और दोनों संगठनों के कई कार्यकर्ता मारे जा चुके हैं। नक्सलियों में इस समय को भारतीय क्रांतिकारी इतिहास के काले पन्ने के नाम से जाना जाता है।सी.पी.आई (माओवादी) का मुख्य उद्देश्य नए समाजवादी आंदोलन की शुरुआत करना है। नक्सलियों की नई सामरिक नीति से स्पष्ट होता है कि अब नक्सली आंदोलन का लक्ष्य केवल जमीन पर कब्जा, फसल को लूटना न होकर पूरे राज्य पर अपना कब्जा जमाना है। ये नक्सली राज्य में अपनी शक्ति को मजबूत करने के लिए केवल क्रांतिकारी गतिविधियों पर ही अपना ध्यान केन्द्रित कर चुके हैं। साथ ही, राज्य पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए चुनाव और प्रजातांत्रिक प्रक्रिया को नक्सली गलत मानते हैं और इस प्रक्रिया को सिरे से खारिज करते हैं। नक्सलियों का मुख्य उद्देश्य सामंतवाद, साम्राज्यवाद, नौकरशाही और पूंजीवाद के खिलाफ आवाज उठाना है। अपने इस आंदोलन के लिए अब नक्सली ताकतवर और तेज तर्रार महिलाओं का भी एक मजबूत दस्ता बनाना चाहते हैं। इसके अलावा वे इस आंदोलन को पूरे देश में फैलाना चाहते हैं।विभिन्न नक्सली संगठनों के एकजुट होने और नए सिरे से नक्सल नेताओं के आत्मविश्वास से परिपूर्ण होने के बाद अब वे पूर्व में आपसी संघर्ष में हुए नुकसान की भरपाई करना चाहते हैं। इन सभी कारणों के अलावा कुछ अन्य कारण भी हैं जिनके परिणामस्वरूप नक्सलवाद फैलता जा रहा है।वर्ष 1991 में शुरू की गई नई आर्थिक नीति से ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले गरीब लोगों के जीवन स्तर पर गहरा प्रभाव पड़ा है और इससे वैश्वीकरण व बाजारवाद को बढ़ावा मिला है। इतना ही नहीं इस नीति से उपनिवेशवाद को भी बढ़ावा मिला है। गौरतलब है कि वर्षों से जमींदार, नौकरशाह व घूसखोर व्यापारी नक्सलियों के दुश्मन रहे हैं। वैश्वीकरण के बाद इन लोगों की संपन्नता में और वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप नक्सलियों में इन लोगों के खिलाफ और ज्यादा आक्रोश बढ़ गया है। इसके चलते उन्होंने अपने आंदोलन में गरीब तबके के युवाओं को शामिल किया हैं। साथ ही पंचायत राज से भी नक्सली खुश नहीं है। नक्सलियों का मानना है कि पंचायत राज से अच्छे किसानों को ही लाभ मिला है।नक्सली आंदोलन के ताकतवर होने का तीसरा मुख्य कारण नक्सलियों द्वारा गुरिल्ला युद्ध प्रणाली अपनाना है। अब नक्सली देशी हथियारों के बल पर छापामार लड़ाई नहीं कर रहे हैं। नक्सली ए.के-47, ग्रेनेड, राकेट लांचर और बारूदी सुरंग जैसे खतरनाक हथियारों का उपयोग कर रहे हैं। वर्तमान में नक्सलियों के दलों में 25 हजार युवक हैं, जो कि अच्छी तरह से प्रशिक्षित हैं। इन्हीं कारणों से नक्सलवाद दिनोंदिन मजबूत होता जा रहा है।पिछले दिनों घटित नक्सली घटनाएं पूर्ववर्ती घटनाओं के अपेक्षा अत्यधिक गंभीर हैं। इसका स्पष्ट उदाहरण 13 नवम्बर, 2005 में बिहार के जहानाबाद में रात के समय घटी एक घटना है, जिसमें लगभग एक हजार नक्सलियों ने पूर्व नियोजित ढंग से जेल पर हमला किया था, हालांकि जहानाबाद पटना से मात्र 50 किलोमीटर दूर है। इस दौरान नक्सलियों ने कई घंटों तक शहर पर अपना कब्जा जमाए रखा। इन लोगों ने 340 कैदियों को जेल से छुड़ा लिया। इन कैदियों में नक्सलियों के कई कामरेड और उनका नेता अजय कानू भी शामिल था। इस हमले के दौरान नक्सलियों ने रणवीर सेना के दो नेताओं की हत्या भी कर दी। ये दोनों नेता उसी जेल में बंद थे। इन नक्सलियों को जहानाबाद के ग्रामीण क्षेत्र के लोगों का समर्थन प्राप्त था। इसलिए हमले के दौरान उन्हें किसी तरह की कोई भी परेशानी नहीं हुई। इन लोगों ने जेल के अलावा पुलिस लाइन और जिला प्रशासन के कई दफ्तरों पर हमला कर उन्हें भारी नुकसान पहुंचाया। वर्ष 2004 के प्रारंभ में 6 फरवरी को दो सौ नक्सली कोरापुट (उड़ीसा) जिले के शस्त्रागार पर हमला करके लगभग 500 हथियार लूटकर ले गए। कर्नाटक के एक पुलिस स्टेशन पर 11 फरवरी, 2005 को लगभग 250 पुरुषों और 50 महिलाओं ने हमला करके छह पुलिसवालों की हत्या कर दी और दस राइफलें लूट लीं। इस तरह बिहार के मधुबनी जिले में लगभग 300 नक्सलियों ने एक पुलिस चौकी और एक राष्ट्रीय बैंक पर हमला करके पांच पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी तथा हथियार और धन लूट लिया। एक अन्य घटना में नक्सलियों ने झारखंड के गिरिडीह जिले में होमगार्ड ट्रेनिंग सेंटर पर हमला करके लगभग 200 हथियार लूट लिए। नक्सलियों 3 तीन दिसम्बर, 2006 में एक बारूरी सुरंग विस्फोट करके स्पेशल पुलिस फोर्स के 14 जवानों की हत्या कर दी गई। नक्सलियों ने इस तरह की और भी कई हिंसक घटनाएं की हैं। गौरतलब है कि नक्सलियों की नई नीति के तहत पुलिस के खिलाफ उठाए जा रहे हथियार को इस रूप में दर्शाए जाने की कोशिश की जा रही है कि जिन लोगों के साथ अन्याय और अत्याचार किया गया है वही नक्सली बन रहे हैं। साथ ही नक्सलवाद के खिलाफ आवाज उठाने वाले सलवा जुडुम के सदस्यों में दहशत फैलाने का प्रयास भी किया जा रहा है।इन दिनों नक्सली आंदोलन में आई तेजी कोई आश्चर्य की बात नहीं है। जहां सितम्बर, 2004 में देश के 13 राज्यों के 156 जिले नक्सलवाद से प्रभावित थे, वहीं फरवरी, 2005 में देश के 15 राज्यों के 170 जिले नक्सलवाद की चपेट में आ चुके हैं। खुफिया विभाग के अनुसार देश के लगभग 40 प्रतिशत भू-भाग भौगोलिक क्षेत्र और कुल जनसंख्या की लगभग 35 प्रतिशत आबादी नक्सलवाद से प्रभावित है। इसके अलावा नक्सलवाद का साम्राज्य उत्तरी बिहार के जंगली भागों से लेकर झारखण्ड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक तक फैल चुका है।नक्सलवाद का मुख्य उद्देश्य भारत के मध्य समग्र क्रांति क्षेत्र स्थापित करना और फिर इसके माध्यम से नक्सली आंदोलन को शहरों तक फैलाकर राज्य की सामरिक क्षमता के लिए चुनौती पैदा करना है। नक्सलियों का लक्ष्य माओवादी राज्य की स्थापना करना है, भले ही इसके लिए अनगिनत हड्डियों को तोड़ना पड़े या कितना ही खून बहाना पड़े, इससे नक्सली नेताओं को कोई लेना-देना नहीं है।6

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