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स्वामी विवेकानंद के पूज्य पवहारी बाबावचनेश त्रिपाठी “साहित्येन्दु”पवहारी बाबा का जन्म जिला बनारस के एक ग्राम में हुआ था। बचपन में ही वे अपने चाचा के पास गाजीपुर चले आए थे इसलिए लोग उनका जन्म 1880 में प्रेमापुर (जिला-जौनपुर) में हुआ मानते हैं।उनकी दयालुता और सज्जनता के बारे में अनेक घटनाएं प्रसिद्ध हैं, जैसे-एक बार बाबा के आश्रम में चोर घुस आया और सामान चोरी करके गठरी बनाकर भागने का मौका देखने लगा। तभी बाबा की दृष्टि चोर पर पड़ी। चोर ने जान गया कि बाबा ने देख लिया है। इस स्थिति में चोर को कुछ न सूझा और वह गठरी छोड़कर भाग गया। उसके पीछे-पीछे बाबा भी गठरी लेकर दौड़ने लगे। काफी दूर दौड़ने के बाद बाबा ने चोर को रोक लिया। उन्होंने गठरी चोर के पैरों में रख दी और हाथ जोड़कर प्रणाम किया। अपने सजल नेत्रों से क्षमा-याचना करते हुए बाबा ने कहा, “मैंने तुम्हारे कार्य में बाधा डाली, क्षमा करना। यह सामान तुम्हारा ही है, तुम ले लो।”यह घटना स्वामी विवेकानन्द द्वारा वर्णित है।इसी प्रकार एक बार काले नाग ने पवहारी बाबा को उनके आश्रम में काट लिया। परिणामस्वरूप वे कई घंटे तक बेहोश रहे। मित्रों ने सोचा कि उनकी मृत्यु हो गई है। लेकिन बाद में सचेत हो गए तो मित्रों ने इस घटना के बारे में जानकारी ली। तब भगवान राम के उपासक बाबा ने कहा, “वह नाग तो भगवान राम का दूत था।” एक बार तो वे कई महीनों तक गुफा में ही रहे। इस काल में उन्होंने न कुछ खाया न पीया। लोगों ने सोचा कि बाबा तो परलोक सिधार गए। लेकिन वे जीवित निकल आए। तभी से लोग उन्हें पवहारी (हवा पर जीवित रहने वाला) बाबा कहने लगे।इस घटना की वास्तविकता यह थी कि बाबा चुपके से गंगा जी में तैरकर दूसरे किनारे चले गए थे और सारी रात साधनालीन रहकर सूर्योदय पूर्व ही लौट आए थे। दरिद्र नारायण की सेवा से उनका लगाव था। उनके गुरु जिस प्रकार काशी के पास एक गुफा में रहते थे उसी प्रकार बाबा भी जमीन में गुफा बनाकर उसमें घंटों ध्यानमग्न रहते।गाजीपुर के एक सरकारी अधिकारी रायबहादुर गगन चन्द्र ने स्वामी विवेकानन्द को इन बाबा से मिलवाया था। उसके बाद स्वामी विवेकानन्द बहुत समय तक बाबा की सेवा करते रहे। बाबा ने एक बार स्वामी विवेकानन्द से कहा था, “भगवान उन अकिंचनों का धन है जिन्होंने सब वस्तुएं त्याग दी हैं।” स्वामी विवेकानन्द उन्हें इस भाव की प्रत्यक्ष उपलब्धि मानते थे। अपने जीवन के अंतिम दिनों में वे एक मुट्ठी नीम के कड़ुवे पत्ते या मिर्चें खाकर गुफा में समाधिस्थ रहते थे। अंत में उन्होंने अपने शरीर को अग्नि को समर्पित कर दिया था। गुफा से बाहर जब जले शरीर की दुर्गंध आने लगी, गुफा का दरवाजा तोड़ा तो देखा कि उनका शरीर राख चुका हो है।बाबा पवहारी के बारे में स्वामी विवेकानन्द ने लिखा था, “मैं उस महात्मा का ऋणी हूं। मैंने जिन कुछ श्रेष्ठतम आचार्यों से प्रेम किया है, जिनकी सेवा की है, यह बाबा उनमें से एक हैं। भक्तिपूर्ण अंत:करण से मैं उनकी पवित्र स्मृति को नमन करता हूं।” दतलपटविदेशी निवेश की ऊंची छलांगभारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश बहुत तीव्रता से बढ़ रहा है। वित्त वर्ष 2006-07 के प्रथम चार महीनों में 290 करोड़ डालर का विदेशी पूंजी निवेश भारत में हुआ। पिछले वित्त वर्ष (2005-06) के आरंभिक चार महीनों के 150 करोड़ डालर के मुकाबले यह 92 प्रतिशत अधिक है। भारत में निवेश करने वाले प्रमुख दस देशों में क्रमश: मारीशस, अमरीका, जापान, नीदरलैंड, इंग्लैण्ड, जर्मनी, सिंगापुर, फ्रांस, दक्षिण कोरिया और स्विट्जरलैंड हैं।14
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