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प्रतीक्षा में है अमरीका- तरुण विजयकूटनीति किसी की भलाई के लिए किया जाने वाला कोई धर्मादा कार्य नहीं बल्कि अपने अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए की जाने वाली ऐसे शालीन प्रक्रिया है कि जिससे वह भी फायदे की मानसिकता में रहे जिसे असल में घाटा हुआ हो। कोई देश किसी की भलाई के लिए काम नहीं करता बल्कि सिर्फ वही कदम उठाता है कि जिससे उसका अपना हित सधता हो। अमरीका को चाहिए भारत का बाजार और चीन के क्षेत्रीय प्रभुत्व को बांधने वाला भारत का साथ। वह भारत की बढ़ती विकास दर से भी इसलिए चिंतित है क्योंकि आने वाले दस वर्षों में भारत व चीन की ऊर्जा खपत बहुत अधिक बढ़ जाएगी और उस स्थिति में अमरीका को मध्यपूर्व से मिलने वाले तेल की आपूर्ति में कठिनाई हो सकती है। इसलिए भारत मध्य पूर्व के देशों से तेल कम ले और अपने यहां परमाणु ऊर्जा पैदा कर काम चलाए, इसमें जहां भारत का लाभ है वहीं अमरीकी स्वार्थ भी है। अमरीका अपना भला कर रहा है, बदले में यदि भारत को भी कुछ मिलता है तो वह उसका उप-लाभ है।अमरीकी राष्ट्रपति बुश की भारत यात्रा को भी इसी नजरिए से आंकना होगा। भारत के साथ परमाणु संधि के अंतिम प्रारूप को सील बंद कर दिया गया है। उसकी बारीकियों के बारे में संसद में प्रधानमंत्री के वक्तव्य के बाद ही अंदाजा लगाया जा सकता है और यह वक्तव्य सोमवार (6 मार्च) को होगा। अभी दोनों पक्ष इस समझौते को अपने-अपने लिए फायदेमंद कह रहे हैं। भारत की प्रेस ने इस समझौते तथा बुश यात्रा की कलम तोड़ प्रशंसा की है। इस कोलाहल में से वास्तविक लाभालाभ के बिन्दु निकालना कठिन है। अखबारों पर नजर दौड़ाएं तो ऐसा लगता है कि सब सन्तुष्ट हो चुके हैं और हमारे गले यह उतारने की कोशिश है कि भारत के लिए इससे बढ़िया बात हो नहीं सकती थी। जहां किसी बात की अतिशय प्रशंसा होने लगे वहां शक पैदा होने जरूरी हैं। पहले देखा जाए कि अमरीकी सरकार के अधिकारी इस समझौते को किस नजर से देख रहे हैं?1. राष्ट्रपति बुश ने भारत से हुए परमाणु सहयोग समझौते को ऐतिहासिक बताया। नागरिक परमाणु समझौते के फलस्वरूप भारत की ऊर्जा आवश्यकताएं घरेलू परमाणु ऊर्जा से पूरी हो सकेगी और उसे तेल आपूर्ति के लिए मध्य पूर्वी इस्लामी देशों पर कम निर्भर रहना होगा।2. भारत इस बात पर सहमत हो गया है कि वह अन्तरराष्ट्रीय परमाणु अप्रसार की मुख्यधारा में आने के लिए मध्य कदम उठाएगा और अपने नागरिक परमाणु कार्यक्रम अन्तरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अधिकरण (आई.ए.ई.ए.) के सुरक्षा चौखटे में रखेगा एवं परमाणु आपूर्ति समूह (न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप) (एन.एस.जी.) और प्रक्षेपास्त्र तकनालाजी नियंत्रण अभिकरण (मिसाइल टेक्नालाजी कंट्रोल रीजीम-एम.टी.सी.आर.) द्वारा निर्देशित मार्गदर्शक नियमों का पालन करेगा।नई दिल्ली के मौर्य शेरेटन होटल में राजनीतिक मामलों के विदेश राज्यमंत्री निक बन्र्स ने अपनी पत्रकार वार्ता में कहा- (1) हमारे रिश्तों में पिछले 30 वर्षों की मूल बाधाएं अब हट गई हैं और अब दोनों देश नागरिक परमाणु ऊर्जा सहयोग की दिशा में बहुत ऊंचे स्तर तक बढ़ सकते हैं। भारत ने अपने नागरिक परमाणु संयंत्र अन्तरराष्ट्रीय निरीक्षण के लिए खोलना स्वीकार किया है और हमने माना है कि अब पश्चिमी तथा अमरीकी कम्पनियां भारत के परमाणु प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में पूंजी निवेश करने के लिए स्वतंत्र होंगी।(2) अभी तक भारत के परमाणु कार्यक्रम पर न तो हम असर डाल सकते थे और न ही उसकी पारदर्शी जानकारी प्राप्त कर सकते थे। अब हम ऐसा कर सकेंगे।(3) एक अरब से अधिक लोगों वाले देश के भावी विकास के लिए नागरिक परमाणु ऊर्जा इस समस्या का पूरा समाधान नहीं करेगी लेकिन समाधान का एक बड़ा हिस्सा बनेगी।(4) आठ महीनों की चर्चाओं के बाद हम इस समझदारी पर पहुंचे हैं। 18 जुलाई 2005 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व्हाइट हाउस आए थे और यह मूल समझौता हुआ था कि हम इस दिशा में आगे बढ़ेंगे। आठ महीनों के बाद हमने आज सुबह चर्चाओं को निर्णायक रूप दिया।(5) इस समझौते के फलस्वरूप भारत के अधिकांश परमाणु ऊर्जा रिएक्टर और उससे सम्बद्ध परमाणु सुविधाएं स्थाई रूप से-हमेशा के लिए आई.ए.ई.ए. की सुरक्षा निगरानी में रहेंगी। 1974 में भारतीय परमाणु कार्यक्रम प्रारंभ हुआ था तब से वह कार्यक्रम किसी भी प्रकार के अन्तरराष्ट्रीय निरीक्षण से परे रहा है। अब भारत के अधिकांश परमाणु कार्यक्रम अन्तरराष्ट्रीय निगरानी में आ जाएंगे।(6) भारत ने पिछले 30 वर्षों में सबसे पहली बार परमाणु अप्रसार की जिम्मेदारियों को स्वीकार किया है। उसने एक नया राष्ट्रीय निर्यात नियंत्रण (नेशनल एक्सपोर्ट कंट्रोल ला) पारित किया है जो उसकी वैधानिक आवश्यकताओं को अन्तरराष्ट्रीय स्वीकृत मानदण्डों के दायरे में ले आएगा। भारत ने अपनी परमाणु प्रौद्योगिकी किसी को भी स्थानांतरित न करने की प्रतिबद्धता जाहिर की है और स्वयं ही अपने पर लागू किए गए परमाणु परीक्षण प्रतिबंध को जारी रखने और परमाणु परीक्षण सम्बंधी सामग्री (विखण्ड्य) में कटौती की संधि पर अमरीका के साथ काम करना मंजूर किया है। ये सभी उपलब्धियां पिछले 30 सालों में संभव नहीं हो पाई थीं।(7) इस पहल के लिए भारत से अपेक्षित था कि वह परमाणु कार्यक्रम की नागरिक और सैन्य सुविधाओं को अलग-अलग कर दे इस सम्बंध में भारत की योजना आज सुबह अमरीका ने स्वीकार की है। अब इस समझौते को लागू करने के लिए राष्ट्रपति बुश अमरीकी कांग्रेस से परमाणु ऊर्जा अधिनियम 1954 तथा उसके 1978 में संशोधन में परिवर्तन के लिए कहेंगे। दूसरे, भारत अमरीका सहित आई.ए.ई.ए.और एन.एस.जी. के पास अन्तरराष्ट्रीय व्यवहार में परिवर्तन के लिए जाएगा। इसके बाद बाकी देश भी भारत से नागरिक परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में व्यापार शुरू कर देंगे।इस वक्तव्य के बाद जब निक बन्र्स से पत्रकारों ने प्रश्न पूछे, तो उनके उत्तर में उन्होंने जो कहा वह महत्वपूर्ण है।थ् यह समझौता भारत के अधिकांश नागरिक परमाणु संयंत्रों पर लागू होगा लेकिन भारत स्वाभाविक रूप से अपने सामरिक कार्यक्रम को जारी रख सकेगा और यह समझौता उस सामरिक कार्यक्रम पर न असर करता है, न असर करेगा।थ् एक पत्रकार ने प्रश्न किया कि अभी तक अमरीका समझौते में फास्ट ब्राीडर रिएक्टर भी शामिल करने की मांग करता रहा है परन्तु अब तुरंत इन रिएक्टरों को समझौते के अन्तर्गत नहीं लाया जा रहा है?इसके उत्तर में निक बन्र्स ने कहा कि भारत ने कभी भी अपनी परमाणु प्रौद्योगिकी किसी दूसरे को स्थानांतरित नहीं की है। अगर भारत वैसा देश होता तो हम उसके साथ यह समझौता ही नहीं करते। दूसरी बात यह है कि भारत के पास बहुत सीमित रिएक्टर क्षमता है- एक प्रोटोटाइप ब्राीडर रिएक्टर है और दो टेस्ट रिएक्टर हैं। वह इससे भी बड़ी क्षमता के रिएक्टर बनाना चाहता है और उसने यह वचन दिया है कि भविष्य के सभी नागरिक ब्राीडर रिएक्टर सुरक्षा निगरानी में लाएगा।थ् एक पत्रकार ने पूछा कि जनरल मुशर्रफ ने कहा है कि अगर भारत को यह सब अमरीका से मिल रहा है, तो पाकिस्तान को भी मिलना चाहिए?इसके उत्तर में निक बन्र्स ने कहा कि हमने हमेशा इस समझौते को केवल भारत के लिए ही विशिष्ट समझौते के रूप में लिया है। पाकिस्तान के साथ हमारी दोस्ती के बावजूद यह कहना होगा कि वहां परमाणु प्रसार की कई गंभीर किस्म की घटनाएं पिछले सालों में हुई हैं और इसलिए पाकिस्तान के साथ ऐसा समझौता नामुमकिन है।निक बन्र्स ने एक और महत्वपूर्ण बात कही कि यद्यपि अमरीका ने औपचारिक रूप से अभी भारत को परमाणु हथियार देश के रूप में मान्यता नहीं दी है लेकिन हम भारत में परमाणु शक्ति की आवश्यकता को मान्य करते हैं।सुरक्षा के क्षेत्र में नौसैनिक सहयोग, आतंकवादी विरोधी कार्यवाहियों में सहयोग, भारत को आवश्यक सैन्य सामग्री की आपूर्ति, प्रौद्योगिकी और निर्माण की क्षमताएं स्थानांतरित करने में सहयोग, आदि मुद्दे भी समझौते के फलस्वरूप सामने आए हैं।थ् समझौते के बाद बुश ने अपनी पत्रकार वार्ता में अंत में कहा कि अमरीका भारत के आम खाने की प्रतीक्षा कर रहा है।कुल मिलाकर अगर अमरीका की भारत के बाजार पर नजर है और वह भारत के 100 करोड़ लोगों को अमरीकी उद्योगों तथा आर्थिक स्थिति के लिए लाभप्रद अवसर मान रहा है तो भारत भी आज के वैश्विक परिदृश्य में अमरीकी साथ का महत्व समझते हुए कदम आगे बढ़ा रहा है। भारत को अपनी क्षमताओं, कमजोरियों और चुनौतियों का भान है। उस चौखटे में अमरीका से मुंह मोड़कर स्वयं अकेले खड़े होने की स्थिति आज अपनी है या नहीं, मुख्य प्रश्न यह है। ऐसी स्थिति में अमरीकी साथ की कीमत कुछ तो चुकानी ही होगी लेकिन यह सरकार जो कीमत चुकाने को तैयार है वह बहुत महंगी दिखती है।11
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