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नया अध्यायपरमाणु संधि में यह मिला भारत को- भारत के 22 में से 14 नागरिक परमाणु संयंत्र आई.ए.ई.ए. की निगरानी में- भविष्य के सैन्य व नागरिक परमाणु संयंत्रों का निर्धारण करने की भारत को छूट- नागरिक परमाणु संयंत्रों के लिए निर्बाध र्इंधन आपूर्ति होगी- संयंत्रों के विभाजन का खाका 2014 तक बनेगा- भारत को, एक अर्थ में, परमाणु शस्त्र सम्पन्न राष्ट्र की मान्यता- नए नागरिक परमाणु रिएक्टर आई.ए.ई.ए. के रक्षाकवच के अंतर्गत- भारत परमाणु सम्पन्न देशों के समूह में जुड़ानए माहौल में बदलें वे भी-जगमोहन, पूर्व केन्द्रीय मंत्रीवर्तमान विश्व में जब देशों की एक दूसरे पर परस्पर निर्भरता बढ़ रही है। अमरीका, जो कि आज निर्विवाद रूप से दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है, के नेतृत्व में शक्तिशाली विकसित देशों के समूह के कारण विकासशील देशों की सभ्यता के स्वरूप में हो रहे परिवर्तन प्रभावित हो रहे हैं। अमरीका का सकल घरेलू उत्पाद रूस से तीस गुना अधिक है। वह अपनी सेना पर इतना ज्यादा पैसा खर्च करता है जितना कि छह देश-रूस, चीन, जापान, ब्रिाटेन, फ्रांस और जर्मनी-मिलकर खर्च करते हैं। मोटे तौर पर उसके निर्णयों से यह तय होता है कि भूमंडलीकरण के मौजूदा ढांचे में अंर्तनिर्हित अन्याय समाप्त होगा या नहीं, क्या मौजूदा गरीब तबके को नई सामाजिक और आर्थिक क्षमताएं प्राप्त करने में मदद मिलेगी अथवा नहीं और क्या दुनिया के वातावरण की गुणवत्ता में आ रही कमी में सुधार होगा अथवा उसमें और अधिक गिरावट आएगी।अमरीका के नजरिए में सुधार आए बिना, मौजूदा परिस्थितियों में सुधार नहीं होगा। क्या भारत इस इच्छित सुधार को लाने में एक अर्थपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है? मेरे विचार में, भारत यह कार्य कर सकता है। उसके पास प्राचीन भारतीय व्यवहार की कुलीनता है, कर्मयोगी के सिद्धांतों, निस्पृहता और सभी जीवित पदार्थों में परस्पर संबंध में उसके विश्वास पर आधारित वैश्विक स्तर के एक नए ढांचे के निर्माण की क्षमता है। आधुनिक काल के महान चिंतकों में से एक आर्नोल्ड टायनबी की निगाह में ऐसे ही जीवन मूल्य थे जब उन्होंने कहा था कि केवल भारतीय मूल्यों पर चलकर ही मानवजाति का कल्याण संभव है। टायनबी ने इसी बात को रेखांकित करते हुए कहा, “यहां हमारे पास एक दृष्टिकोण और भावना है जो कि मानव जाति को मिलकर एक परिवार के रूप में विकसित होने की बात को संभव बना सकती है।”सन् 1915 में राष्ट्रपति वुडरोविल्सन ने विदेशी मूल के अमरीकी नागरिकों को राज्यनिष्ठा की शपथ दिलवाने के बाद अपने भाषण में निम्नलिखित महत्वपूर्ण टिप्पणियां की थीं-आपने एक बड़े उद्देश्य, महान सिद्धांतों और मानव जाति की एक महान आशा को लेकर राज्यनिष्ठा की शपथ ली है। मेरा आपको एक महत्वपूर्ण सुझाव यह होगा कि आप न केवल सबसे पहले अमरीका के बारे में सोचें बल्कि सबसे पहले मानवता के बारे में विचार करें।रॉल्फ डब्ल्यू इमर्सन, वाल्ट विटमैन और हेनरी डेविड थोरो जैसे अमरीकी कवियों, दार्शनिकों और महापुरुषों से प्राचीन भारत के सभ्यतामूलक मूल्यों के गुणों के कारण सम्मानजनक प्रत्युत्तर मिला था। इस वजह से भारत अमरीका को सबसे पहले मानवता के बारे में सोचने और एक संतुलित, समान और न्यायिक विश्व व्यवस्था कायम करने की दिशा में ईमानदारी से कार्य करने की बात याद दिलाने की सबसे उपयुक्त स्थिति में है।न्यूयार्क के नजदीक ऐलिस द्वीप पर स्टेच्यु आफ लिबर्टी के नीचे ऐमा लाजारूस की प्रसिद्ध कविता “द न्यू कोलोसस” अंकित है। इस कविता का भाव है- “हमारे समुद्र के तट पर खड़ी इस विशाल प्रतिमा के हाथ में जो मशाल है वह दुनिया भर का अभिनंदन करती है। वह कहती है, ” थके, गरीब, असहाय लोगों को मेरे पास लाओ, मैं स्वर्ण द्वार के निकट यह मशाल लिए खड़ी हूं।”हालांकि शक्ति की अपनी समस्याएं हैं। एक बार ताकत का अहसास होने के बाद उसके नशे से उबरना कठिन है। ज्यादातर इसके असर से ताकत रखने वाले की दृष्टि धुंधली हो जाती है और वह अपना आधार खो देता है। अगर भारत अपने स्वयं के महान मूल्यों को दोबारा अपनाता है तो वह अमरीका को नए सिरे से अपने संतुलन को प्राप्त करने और राष्ट्रपति वुडरोविल्सन के मानवजाति को एक करने के विश्वास और एमा लाजारूस के हाथ में मशाल लिए एक शक्तिशाली महिला की भूमिका निभाने वाले विचार, जिसके सौम्य नेत्र एक वैश्विक व्यवस्था कायम करने में महत्वपूर्ण होंगे, को हकीकत में उतारने की दिशा में बढ़ने के लिए प्रेरित करने की स्थिति में होगा।यहां छह दशक पहले वेंडल विल्की के कथन, जिसे अमरीकी जनता और अमरीकी राष्ट्रपति से व्यापक समर्थन मिला था, का स्मरण करना समीचीन होगा- “हमारी सोच विश्वव्यापी होनी चाहिए। हमें इतिहास में सबसे चुनौतीपूर्ण अवसर मिला है। हमें दुनियाभर के पुरुषों और महिलाओं के लिए रहने लायक एक नया विकासोन्नमुख और अनुप्राणित समाज बनाने में मदद करने का अवसर मिला है।” ऐसे समस्त विचारों की पुनरावृत्ति किए जाने की आवश्यकता है। और ऐसी स्थिति में, भारत को अमरीका को उसकी आत्मा के भीतर किसी कोने में सुप्त बीज विचारों को जागृत करने में अवश्य मदद करनी चाहिए, उन्हें नए सिरे से व्यवस्थित करके पुन: केन्द्र में स्थापित करना चाहिए, जिससे इन बीज विचारों से दुनियाभर में न्यायप्रियता का फैलाव हो।अमरीका के भारतीयअमरीका की प्रगति में भारतवंशियों का विशेष योगदान है, यह बात अब तथ्यों के आधार पर सिद्ध हो चुकी है। अमरीका की प्रसिद्ध माइक्रोसाफ्ट कम्प्यूटर साफ्टवेयर कम्पनी में भारतीय शोधकर्ताओं का दिमाग लगा है। अमरीका में अनेक भारतीय अभियंताओं, कम्प्यूटर विशेषज्ञों ने अपनी विशेष पहचान बनाई है। एक अनुमान के अनुसार, वहां बसे भारतीय सबसे अधिक शिक्षित समुदाय हैं जिसमें 64 प्रतिशत के पास कालेज उपाधि है तो 12.5 प्रतिशत के पास व्यावसायिक उपाधियां हैं। इस वक्त अमरीका में कुल 16,78,765 भारतीय मूल के लोग निवास कर रहे हैं।अब तक भारत आए अमरीकी राष्ट्रपतिआइसनहावर से बुश तकजार्ज बुश भारत की यात्रा पर आने वाले पांचवें अमरीकी राष्ट्रपति हैं। उनसे पहले आने वाले चार अमरीकी राष्ट्रपति थे- आइसनहावर, जो 1959 में भारत आए थे, रिचर्ड निक्सन 1969 में, जिमी कार्टर 1978 में भारत आए थे और 2000 में बिल Ïक्लटन।1959 में दिल्ली आए आइसनहावर ने कहा था- हमको, जो स्वतंत्र देश हैं, एक दूसरे को बेहतर रूप में जानना चाहिए, एक दूसरे पर अधिक भरोसा करना चाहिए; एक दूसरे का समर्थन करना चाहिए। 1978 में दिल्ली आए जिमी कार्टर का कहना था- “हम आपके साथ लोकतंत्र का साझा अनुभव रखते हैं, और इससे हम शक्ति भी प्राप्त करते हैं।” सन् 2000 में बिल Ïक्लटन की यात्रा में अमरीका ने विशेष दिलचस्पी ली थी। Ïक्लटन ने दोस्ताना सम्बंधों पर कहा था कि जरूरी नहीं कि दोस्त हर मुद्दे पर सहमत हों, उन्हें एक दूसरे के प्रति ईमानदारी रखते हुए सम्बंध बनाने चाहिए।अमरीका में भारतीय छात्रहर वर्ष करीब 80 हजार भारतीय छात्र अमरीका में अध्ययन के लिए जाते हैं। दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले वहां जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या सबसे अधिक है। अमरीका के सबसे प्रसिद्ध येल विश्वविद्यालय का नाम ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधिकारी के रूप में 27 साल भारत में रहे इलिहू येल के नाम पर है। येल मद्रास के गवर्नर भी रहे थे।8
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