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मत मारो मोर को
मेनका गांधी, सांसद, लोकसभा
संग्राम शास्त्री, मौजपुर, अलवर
एवं हुकम चन्द चौधरी, सपोटरा, करौली (राजस्थान)
मोर घटते जा रहे हैं। इनका संरक्षण कैसे किया जा सकता है?
मोर केवल अपने पंखों के लिए मारे जा रहे हैं। इस देश में हर हफ्ते करीब एक लाख मोर पंख बिकते हैं। वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 बनाने वालों ने गलती की। उन्होंने सोचा कि मोर के पंख अपने आप गिर जाते हैं तो उन्होंने उसकी ब्रिाकी की छूट दे दी। लेकिन मोर अपने पंख केवल अगस्त-सितम्बर में गिराते हैं और वह भी एक-एक करके। अब जो मोर पंख बेचते हैं वे तो इंतजार करने से रहे। इसलिए हजारों में मोर मारे जा रहे हैं।
मोर पंख को पहचानने का एक तरीका है कि यदि पंख को जमीन से उठाया गया हो तो वह पूरा होगा। यदि मोर को मारकर पंख प्राप्त किया गया होगा तो उसकी डंडी पर खून का निशान होगा। इसलिए बेचने वाले डंडी को नीचे से काट देते हैं। मैं कोशिश कर रही हूं कि सरकार मोर पंख बेचने पर रोक लगा दे। परन्तु यह तभी कारगर होगा, जब लोग मोर पंख का उपयोग करना बन्द कर दें।
प्रभुदयाल कुमावत, करड़, सीकर (राजस्थान)
बर्ड फ्लू के नाम पर 8 लाख मुर्गियों को जलाया जा चुका है। इस निर्मम हत्या पर क्या कार्रवाई हो सकती है?
बर्ड फ्लू केवल एक अफवाह है। यह मनुष्य के लिए बिल्कुल भी नुकसानदायक नहीं है। बर्ड फ्लू हवा से फैलता है और केवल उन्हीं मुर्गियों पर असर करता है जो कि बीमार हों और जिन्हें क्रूरतापूर्वक रखा गया हो। आपने देखा होगा कि मुर्गियों को एक साथ ठूंस-ठूंस कर रखा जाता है। उन्हें मरी हुई मुर्गियों का मांस चारे और भूसे में मिलाकर खिलाया जाता है। उनकी चोंच भी काट दी जाती है ताकि वे एक-दूसरे को हानि न पहुंचा सकें। मुर्गियों को अपने पंख फड़फड़ाने की भी जगह नहीं मिलती। इस बीमारी को रोका जा सकता है, बशर्ते मुर्गियों को कायदे से रखा जाए और उनकी लगातार देख-रेख हो।
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“सरोकार” स्तम्भ / द्वारा, सम्पादक, पाञ्चजन्य
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