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नवभारत टाइम्स और फिदा हुसैन में फर्क क्या?
हिन्दू संगठनों को दब्बू और कमजोर मानकर सेकुलर फैशन परस्त हिन्दू अखबार व्यापारियों ने पहले हिन्दी पर अंग्रेजी लादकर भाषा प्रदूषित की, अब हिन्दू देवी-देवताओं का कार्टून बनाकर मजाक उड़ाने लगे, क्योंकि वे जानते हैं कि इनके लिए हिन्दुओं में से कोई “याकूब” कत्ल का फतवा और कातिल को इनाम घोषित नहीं करेगा। इसलिए इनकी सेकुलर बहादुरी सिर्फ और सिर्फ हिन्दुओं के तिरस्कार में ही दिखती है। गत 1 मार्च को केन्द्रीय वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम एवं उनकी धर्मपत्नी को भगवान विष्णु एवं लक्ष्मी के रूप में चित्रित करते हुए भगवान के शेषशायी रूप के “नवभारत टाइम्स” के आवरण पृष्ठ पर किये गये चित्रांकन को जिस किसी ने भी देखा, हैरान रह गया। चित्र में भगवान शेषनाग के विभिन्न फनों को वामपंथी नेताओं क्रमश: सीताराम येचुरी, ए.बी.वर्धन एवं प्रकाश कारत के रूप में दिखाया गया तो वहीं भगवान विष्णु की नाभि से निकले ब्राह्म कमल पर ब्राह्मा जी के रूप में उद्योगपति श्री नारायण मूर्ति, श्री मुकेश अम्बानी और सुनील मित्तल को चित्रित किया गया। इस चित्र को छापकर आखिर नवभारत टाइम्स क्या संदेश देना चाहता है? इस प्रश्न पर हमने न केवल देश के कुछ ख्यातलब्ध साहित्यकारों से बातचीत की वरन् टाइम्स समूह की अध्यक्ष श्रीमती इन्दू जैन और नवभारत टाइम्स के सम्पादक श्री मधुसूदन आनन्द से भी बात की। पांचजन्य ने जब इस चित्रांकन पर श्री मधुसूदन आनन्द की प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने यही कहा कि “आपको इस पर जो भी आपत्ति है, वह लिखकर भेजें, मैं इस पर कोई बात नहीं करना चाहता।” प्रस्तुत हैं इस चित्रांकन पर श्रीमती इंदू जैन व देश के वरिष्ठ साहित्यकारों की संक्षिप्त टिप्पणियां -सं.
प्रस्तुति : आलोक गोस्वामी एवं राकेश उपाध्याय
टाइम्स आफ इंडिया प्रकाशन समूह की अध्यक्ष इंदू जैन कहती हैं-
हिन्दू तो अब “रिवोल्ट” भी नहीं करते
नवभारत में जो छपा वह ठीक नहीं है, मैं बात करती हूं
टाइम्स समाचार पत्र समूह की अध्यक्ष श्रीमती इंदू जैन ने गत 2 मार्च की शाम को पाञ्चजन्य से इस संदर्भ में बातचीत में कहा कि उन्होंने नवभारत का वह अंक देखा नहीं है। पहले वह अंक देखेंगी तब कुछ बता पाएंगी। उन्होंने कहा, “मैं वह अखबार मंगाकर देखूंगी जिसकी आप चर्चा कर रहे हैं। वैसे मैं मानती हूं कि अन्य मत-पंथों (के आस्था केन्द्रों) पर, अल्लाह पर कुछ होता है तो ये सबको ठीक बताते हैं, विचार प्रकट करते हैं। हमारे यहां हिन्दू ऐसे (सहिष्णु) हो गए जो रिवोल्ट भी नहीं करते। किसी देवी-देवता का इस तरह दुरूपयोग हो, यह मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है। उस चित्र में शायद वे यह दिखाना चाह रहे हैं कि कितनी मुश्किल आएं हमारे विष्णु नाग पर विराजमान होकर ध्यानस्थ हो सकते हैं। इनका अर्थ शायद यही होगा कि वे (वित्तमंत्री) नाग की शैय्या पर विराजमान हैं, कांटों का ताज पहने हैं आदि। आपके अनुसार लोग इसे अरुचिकर बता रहे हैं। ठीक है, अच्छा हुआ आपने बताया, मैं बात करती हूं।”
नवभारत टाइम्स से यह उम्मीद न थी
-डा. महीप सिंह
साहित्यकार
देवी-देवताओं को अपमानित करता कोई कार्टून छापना मेरी दृष्टि में अनुचित है। पिछले दिनों डेनमार्क के एक पत्र में मोहम्मद साहब का जो कार्टून छपा, उस पर पूरे विश्व में विवाद चल रहा है। अपने देश में मकबूल फिदा हुसैन ने माता सरस्वती का नग्न चित्र बनाया था जिसका विरोध भी हुआ और उन्होंने माफी भी मांगी। हाल ही में उन्होंने भारत माता का नग्न चित्र बनाया, पुन: विरोध हुआ, उन्होंने पुन: क्षमा मांगी। अब नवभारत टाइम्स में श्री चिदम्बरम को भगवान विष्णु के शेषशायी रूप में चित्रित करना भी उसी भांति निन्दनीय है। मैं तो मानता हूं कि इसका विरोध होना चाहिए। भारत सरकार को ऐसी निषेधाज्ञा तुरंत लागू करनी चाहिए कि धार्मिक प्रतीक, महापुरुष, देवी-देवताओं के व्यंगात्मक चित्रण, जो लोगों की धार्मिक भावनाओं पर चोट करते हैं, बनाए और छापे न जा सकें। फिर भी यदि कोई ऐसा करे तो उसे दण्डित करना चाहिए। जहां तक टाइम्स पत्र समूह की बात है तो इसे जैन समाज से जुड़े साहू शांति प्रसाद जैन, श्रीमती रमा जैन जैसे प्रतिष्ठित लोगों और उनके पारिवारिक सदस्यों ने स्थापित किया है अत: नवभारत टाइम्स से यह उम्मीद नहीं थी। व्यवसायिक मानसिकता के कारण नवभारत टाइम्स ने अनावश्यक चित्रांकन कर अनुचित कार्य किया है।
भावनाएं आहत हुई हैं तो अदालत जाना चाहिए
-डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी
विधिवेत्ता एवं साहित्यकार
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार सभी को है लेकिन इसकी एक मर्यादा भी है। किसी की परम्पराओं, आस्था का तिरस्कार या उसकी अवमानना का अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी को नहीं दिया जा सकता। टिश्यू पेपर पर, जूते पर, कहीं-कहीं अन्त:वस्त्रों पर देवी-देवताओं का चित्र छापना सर्वथा अनुचित है। ऐसा करने वाले लोग असंवेदशील हैं। नवभारत टाइम्स में शेषशायी भगवान विष्णु के रूप में वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम का जो चित्रण हुआ है। ऐसे चित्रांकन से बचा जाना चाहिए था। मैं इसे अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य का अमर्यादित प्रयोग एवं अभिरुचि का क्षय मानता हूं। इससे हमारी धार्मिक भावनाओं का अपमान हुआ है, ऐसा मुझे नहीं लगता। परन्तु फिर भी ऐसे चित्रांकन से यदि किसी की भावनाओं को ठेस लगी है तो वह देश के ईश निंदा कानून के अन्तर्गत न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है।
भावनाएं आहत करने वाली सामग्री न छापें
– चन्द्रकान्ता
उपन्यासकार
हिन्दू देवी-देवताओं का उपहास पूर्ण चित्रण शर्मनाक है। इसका विरोध होना चाहिए। अखबारों की सीमा वहीं तक है, जहां तक किसी की आस्था पर आघात न हो। अखबारों के सम्पादकीय विभाग की यह जिम्मेदारी होती है कि वे यह सुनिश्चित करें कि उनके पत्र में कोई सामग्री ऐसी तो नहीं जा रही है जिससे उनके पाठकों को तकलीफ हो।
संपादक क्षमा मांगे
-कमल किशोर गोयनका
साहित्यकार
यह कार्टून निरर्थक है। वित्त मंत्री चिदम्बरम को भगवान विष्णु बनाने का निहितार्थ क्या है? क्या सम्पादक इसे तर्कसंगत ठहरा सकते हैं? किसी और पंथ के प्रतीक या महापुरुष को चिदम्बरम क्यों नहीं बनाया उन्होंने? हिन्दू आस्था के साथ नवभारत टाइम्स के सम्पादक ने खिलवाड़ किया है। उनको तत्काल क्षमा मांगते हुए इस चित्र को छापने पर खेद वक्तव्य प्रकाशित करना चाहिए। यदि वे ऐसा न करे तो फिर लोकतांत्रिक तरीकों से विरोध का अधिकार सभी को है।
उधर “द टेलीग्राफ” ने स्वामी विवेकानंद का मजाक उड़ाया
वासुदेव पाल
आनन्द बाजार समूह के अंग्रेजी दैनिक “द टेलीग्राफ” ने गत 1 मार्च को अपने कोलकाता संस्करण के मुखपृष्ठ पर स्वामी विवेकानन्द के वेष में भारत के वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम का चेहरा दिखाया। इस पर प. बंगाल गणमुक्ति परिषद् के अध्यक्ष श्री सुनन्द सान्याल ने कहा कि ऐसी हरकत गैर जिम्मेदाराना पत्रकारिता दर्शाती है। गणमुक्ति परिषद के पूर्व अध्यक्ष मनीन्द्र चन्द्र कलेज, भारत के पूर्व केन्द्रीय कैबिनेट सचिव विभूति नंदी, प्रसिद्ध साहित्यकार तथा कोलकाता विश्वविद्यालय के पूर्व डिप्टी रजिस्ट्रार डा. दिनेशचंद्र सिंह सहित अनेक लोगों ने कड़े शब्दों में निन्दा की है।
कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राधेश्याम ब्राह्मचारी एवं पश्चिम बंगाल के जाने माने संत श्री देवानन्द ब्राह्चारी ने कहा कि इस कृत्य के लिए “द टेलीग्राफ” पर मानहानि का मामला दर्ज किया जाना चाहिए।
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