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परमाणु क्षेत्र में स्वतंत्रता न खोएं
नागपुर में गत 24 फरवरी से 26 फरवरी तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा सम्पन्न हुई। इसमें हिन्दू हितों की रक्षा तथा सामाजिक समरसता हेतु बल एवं आग्रहपूर्वक सक्रिय होने का आह्वान किया गया। प्रतिनिधि सभा की रपट और सरकार्यवाह श्री मोहनराव भागवत का विस्तृत प्रतिवेदन पिछले अंक में प्रकाशित किया गया था। पहला प्रस्ताव तकनीकी था जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संविधान में संशोधन से सम्बंधित था। अब कार्यकारी मण्डल में 5 के स्थान पर 21 सदस्य हो सकेंगे। यहां प्रस्तुत हैं अ.भा. प्रतिनिधि सभा द्वारा पारित शेष दो प्रस्तावों के सम्पादित अंश-
जुलाई, 2005 में हमारे प्रधानमंत्री तथा संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति द्वारा भारत-अमरीका नागरिक आणविक समझौते पर किए गए हस्ताक्षर भारत के राष्ट्रीय हितों के लिए घातक हैं। इस प्रकार के विभिन्न समझौतों पर अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा चिन्ता व्यक्त करती है। ऐसी संभावना प्रतीत होती है कि यह समझौता भारत की आणविक क्षमता को हतोत्साहित करने के लिए तैयार किया गया है और इससे नागरिक एवं सुरक्षा-दोनों दृष्टियों से हमारे सभी भावी प्रयत्न सतत् रूप से अमरीका पर अवलम्बित हो जाएंगे। इस समझौते में भविष्य में भारत द्वारा किए जाने वाले सभी प्रकार के आणविक परीक्षणों को प्रतिबंधित करने वाला प्रावधान सर्वाधिक असंगत एवं अनुचित है, क्योंकि आणविक परीक्षण हमारे भावी अनुसंधान के लिए नितान्त आवश्यक हैं। इसी प्रकार बहु प्रतीक्षित अणु शक्तिसम्पन्न राष्ट्र का दर्जा प्राप्त करने का मुद्दा भी केवल दिखावा बनकर रह गया है। जब तक आधिकारिक रूप से यह दर्जा हमें प्राप्त नहीं होता, अपने आणविक
प्रतिष्ठानों को निरीक्षण हेतु अन्तरराष्ट्रीय अणु-ऊर्जा निकाय के अधिकारियों के लिए खोलना हमारे लिए जोखिम भरा निर्णय होगा। किसी गैर-आणविक देश के लिए ये निरीक्षण अधिकाधिक कठोर होते हैं।
प्रस्ताव क्र.-2
राष्ट्रीय हितों के विपरीत है भारत-अमरीका आणविक समझौता
प्रतिनिधि सभा मानती है कि हमारे आणविक कार्यक्रमों को नागरिक एवं सैन्य कार्यक्रमों के रूप में विभाजित करने के गम्भीर परिणाम होंगे। अनेक वैज्ञानिकों ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित किया है कि भारत के पास जो भी आणविक सुविधाएं हैं वे प्राथमिक तौर पर नागरिक सुविधाएं हैं, लेकिन हम उनका सुरक्षा सम्बंधी उपयोग करने के लिए स्वतंत्र हैं। यदि हम अपने आणविक कार्यक्रमों को इस प्रकार विभाजित करेंगे तो हम अपने तीन-चौथाई कार्यक्रमों एवं वैज्ञानिकों को अन्तरराष्ट्रीय अणु-ऊर्जा निकाय के नियंत्रण में ला देंगे, जो हमारे राष्ट्रीय हितों के विपरीत होगा।
अ.भा.प्रतिनिधि सभा अपेक्षा करती है कि सरकार को अपने ही देश में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थोरियम भण्डार की तरफ ध्यान देना चाहिए, जिसका आणविक र्इंधन के रूप में उपयोग किया जाना सम्भव है। इससे नागरिक एवं सैन्य आणविक कार्यक्रमों की पहल की हमारी स्वतंत्रता अबाधित रहेगी। प्रतिनिधि सभा भारत के उन प्रतिभा सम्पन्न वैज्ञानिकों एवं विदेश नीति के विशेषज्ञों का अभिनंदन करती है जो राष्ट्रीय हितों के प्रतिकूल इस समझौते के खिलाफ दृढ़तापूर्वक खड़े हुए तथा जिन्होंने इसके विरुद्ध व्यापक जनमत को जागृत करते हुए सरकार को चेताया। प्रतिनिधि सभा सरकार का आवाहन करती है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के इस अतिसंवेदनशील मुद्दे पर वह सावधानीपूर्वक एवं पारदर्शिता से ही आगे बढ़े। वैज्ञानिकों, रक्षा विशेषज्ञों, सेना प्रमुखों तथा विदेश नीति के विशेषज्ञों के साथ विस्तृत चर्चा करते हुए एक दीर्घकालीन आणविक नीति अपनानी चाहिए जो हर प्रकार के विदेशी दबाव से मुक्त हो। द
प्रस्ताव क्र. 3
सच्चर समिति भंग करो
सन् 2004 में जबसे संप्रग सरकार सत्ता में आई है, तबसे ही कांग्रेसी राजनीति की पहचान बन चुकी “मुस्लिम तुष्टीकरण” की गतिविधियां व्यापक रूप से पुनरुज्जीवित हो गई हैं। हज यात्रा अनुदान में वृद्धि, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को सरकार द्वारा प्रदत्त अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा नकारने के बाद येन-केन-प्रकारेण फिर से वह दर्जा देने का प्रयास, 15 सूत्रीय अल्पसंख्यक कल्याण कार्यक्रम इत्यादि सभी बातें संप्रग सरकार द्वारा मुस्लिम वोट बैंक पर नजर रखते हुए उन्हें लुभाने के निरन्तर प्रयासों की झलक हैं। अल्पसंख्यकों के लिए विशेष मंत्रालय का गठन अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक विभेद को कम करने के बजाय उसे वैधानिकता देने का प्रयास है। ये सारी बातें स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं कि यह सरकार घोर सांप्रदायिक होने के साथ-साथ न्यायपालिका के प्रति अनादर का भाव रखने वाली तथा राष्ट्रहित की उपेक्षा करने वाली है।
प्रतिनिधि सभा फिर से दोहराती है कि भारत की जनता एक राष्ट्र, एक महान संस्कृति व सभ्यता के उत्तराधिकारी हैं। केवल मजहब बदलने से कोई भी राष्ट्रीय जन अल्पसंख्यक नहीं हो जाता। हमारी न्यायपालिका ने भी इस तथ्य का अनुमोदन किया है।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असम के विवादित आई.एम.डी.टी. एक्ट को निरस्त करने के ऐतिहासिक निर्णय की अनदेखी करते हुए विदेशी नागरिक अधिनियम में संशोधन करने के केन्द्र सरकार के गर्हित प्रयासों की प्रतिनिधि सभा कड़ी भत्र्सना करती है। प्रस्तावित संशोधन के एक प्रावधान के अनुसार, केवल असम में किसी भी व्यक्ति के देशी-विदेशी होने के संदर्भ में प्राथमिक प्रमाण देने का दायित्व राज्य पुलिस पर रहेगा, जबकि शेष भारत में यह दायित्व संबंधित व्यक्ति पर होता है। दूसरे शब्दों में संप्रग सरकार ने पिछले दरवाजे से आई.एम.डी.टी. एक्ट के प्रावधान को ही विदेशी नागरिक अधिनियम में सम्मिलित करने का प्रयास किया है।
प्रतिनिधि सभा यह चेतावनी देती है कि बंगलादेशी घुसपैठियों को तात्कालिक चुनावी स्वार्थ के लिए सुरक्षा प्रदान करने का यह प्रयास देश की एकात्मता को अपूरणीय क्षति पहुंचाएगा, क्योंकि इसके कारण विदेशी विघटनकारी तत्वों को बड़ी संख्या में घुसपैठ कर सरलतापूर्वक नागरिकता प्राप्त करने और उसके आधार पर विधायक व सांसद तक बनने का मार्ग प्रशस्त होगा। यह सभा भारत की समस्त जनता का, विशेषकर असम की जनता का आह्वान करती है कि ऐसे प्रयासों के पीछे की शक्तियों को परास्त करने के लिए हरसंभव प्रयास करे।
प्रतिनिधि सभा इस तथ्य को रेखांकित करना चाहती है कि तुष्टीकरण की नीतियां उन वर्गों में कट्टरपंथियों का बल बढ़ाने का ही कार्य कर रही हैं। डेनमार्क-व्यग्य चित्र की घटना के बाद भारत में कई स्थानों पर हुई हिंसात्मक घटनाओं में तीव्र वृद्धि इसी तथ्य की ओर इंगित कर रही है। उत्तर प्रदेश सरकार के एक मंत्री द्वारा खुलेआम हत्या को प्रोत्साहन देकर उसके लिए 51 करोड़ रुपए की राशि की घोषणा करने के बाद भी अपने पद पर बने रहना शर्मनाक है। संप्रग नेताओं ने कट्टरपंथियों के अनुनय के प्रयास में ऐसे भड़काऊ वक्तव्यों को “स्वाभाविक प्रतिक्रिया” कहकर न्यायोचित ही नहीं ठहराया, वरन् उन्हें यह भी उचित लगा कि वे भारतीय मुस्लिमों की ओर से डेन्मार्क सरकार से इस संबंध में अपना विरोध दर्ज करवाएं। देश के सामने ऐसा कोई प्रसंग नहीं है जब इन नेताओं ने पवित्र राष्ट्रीय मानबिंदुओं, देवी-देवताओं तथा संत-महंतों के बारे में हिन्दुओं की भावनाओं को देश में या विदेश में आहत किए जाने पर ऐसा कुछ किया हो।
प्रतिनिधि सभा का मानना है कि मुसलमानों की स्थिति के बारे में सरकार को सलाह देने के लिए न्यायमूर्ति (से.नि.) राजेन्द्र सच्चर समिति की नियुक्ति तुष्टीकरण नीति की पराकाष्ठा है। अन्य बातों के साथ मुस्लिमबहुल राज्य, क्षेत्र, जिले और प्रखंडों की पहचान करने का कार्य इस समिति को सौंपा गया है। चूंकि 1947 के विभाजन का आधार भी ठीक यही था, इसलिए प्रश्न उठता है कि क्या यह सरकार देश को एक और विभाजन की ओर धकेलना चाहती है? यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस समिति ने भारत की सशस्त्र सेना में मजहब के आधार पर मुसलमानों की अलग गणना करने जैसे अत्यंत खतरनाक कदम उठाए थे। यह सभा सभी देशवासियों को, जिनमें भूतपूर्व एवं वर्तमान सेना अधिकारी भी सम्मिलित हैं, को इस बात की बधाई देती है कि इस खतरनाक कदम के संबंध में उनके द्वारा अपनाई गई दृढ़ भूमिका के कारण शासन को उसे निरस्त करना पड़ा।
प्रतिनिधि सभा मांग करती है कि भारत की एकता, अखण्डता और सच्ची पंथनिरपेक्षता के लिए संकट उत्पन्न करने वाली सच्चर समिति को अविलंब भंग किया जाए तथा यह सभा जनता का आवाहन करती है कि वह सारे देश में अल्पसंख्यकों को मजहब के आधार पर आरक्षण देने समेत तुष्टीकरण के समस्त प्रयासों का कड़ाई से विरोध करे।
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