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खान अब्दुल वली खान नहीं रहेसच्चे भारत मित्रप्रतिनिधिसीमान्त गांधी के नाम से विख्यात खान अब्दुल गफ्फार खान के पुत्र एवं आवामी नेशनल पार्टी के नेता खान अब्दुल वली खान का गत 26 जनवरी को पेशावर में निधन हो गया। वे 89 वर्ष के थे तथा पिछले कई महीनों से अस्वस्थ चल रहे थे। निधन से दो दिन पूर्व वे ह्मदयाघात के कारण कोमा में चले गए थे।खान अब्दुल वली खान का जन्म 11 जनवरी, 1917 को चरसद्दा के उत्मांजाई कस्बे में हुआ था। उन्होंने अपना राजनीतिक जीवन सन् 1942 में “खुदाई खिदमतगार” (खुदा का सेवक) आंदोलन से प्रारम्भ किया। आजादी की लड़ाई में भाग लेते हुए वे 1943 में जेल गए। विभाजन से पूर्व वे अ.भा. कांग्रेस कमेटी के सदस्य तथा उत्तर पश्चिम सीमान्त प्रान्त कांग्रेस के संयुक्त सचिव भी थे।देश विभाजन के समय अपने पिता खान अब्दुल गफ्फार खां के साथ वे भी हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए प्रयत्नशील रहे और पाकिस्तान बनने के बाद अपनी भारत-मित्रता के कारण वहां की सरकार की आंखों की किरकिरी बन गए। वे देश विभाजन के विरोधी थे। विभाजन न टाल पाने का दु:ख भी उन्हें जीवनभर सालता रहा। पाकिस्तान बनते ही वली खान को 1948 में पुन: जेल में डाल दिया गया जहां से वे सन् 1954 में रिहा हुए। सन् 1970 में वे पाकिस्तान की राष्ट्रीय असेम्बली के लिए निर्वाचित हुए एवं संयुक्त विपक्ष के नेता बने। 1973 में पाकिस्तान सरकार से मतभेद हो जाने के कारण उन्हें पुन: जेल जाना पड़ा और दिसम्बर 1977 में वे रिहा हुए। सन् 1990 में मौलाना हसन जान से चुनाव में पराजित होने के बाद वली खान ने राजनीति से संन्यास ले लिया। माना जाता है कि राजनीति से उनको अलग करने में इस्लामी कट्टरपंथियों ने बड़ी भूमिका निभाई और सन् 1990 के बाद उत्तर-पश्चिम सीमान्त प्रान्त में कट्टरपंथी तत्व पूरी तरह हावी हो गए। वली खान पाकिस्तान के राजनीतिक परिदृश्य से हमेशा खिन्न रहे। उनका कहना था कि, “उनके जैसे आदमी की पाकिस्तान की राजनीति में कोई जगह नहीं है जहां जनता और राजनीति का भविष्य “मुल्ला” और आई.एस.आई. (पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी) द्वारा निर्धारित हो रहा है।”वली खान के निधन पर दु:ख प्रकट करते हुए पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ने कहा कि खान अब्दुल वली अहमद खान ने मूल्यों पर आधारित जीवन जिया। उनका निधन देश के लिए अपूरणीय क्षति है। जनरल मुर्शरफ के अलावा पाकिस्तान के वरिष्ठ राजनेताओं ने खान अब्दुल वली खान के निधन पर गहरी शोक संवेदना व्यक्त की।28 जनवरी को मरहूम वली खान को सुपुर्द-ए-खाक किए जाने से पूर्व उन की पार्थिव देह अन्तिम दर्शन हेतु जिन्ना पार्क में रखी गयी जहां उन्हें पाकिस्तान के प्रमुख राजनेताओं, अधिकारियों, भारत की ओर से राज्यसभा के उपसभापति के. रहमान खान के नेतृत्व में गए प्रतिनिधिमंडल सहित अनेक लोगों ने श्रद्धासुमन अर्पित किए। भारत के प्रधानमंत्री की ओर से विशेष शोक संदेश लेकर पहुंचे भारतीय प्रतिनिधिमण्डल ने वली खान के चरसद्दा स्थित पैतृक आवास जाकर उनकी शोकाकुल पत्नी एवं पुत्र अफसंदयार वली खान से मिलकर शोक संवेदना व्यक्त की। पेशावर में वली खान को सुपुर्द-ए-खाक (दफनाए) किए जाने के समय अपार भीड़ उमड़ पड़ी। सभी की आंखों में अपने इस पख्तून नेता के बिछुड़ने के गम में आंसू झलक रहे थे।पाञ्चजन्य के साथ खान अब्दुल वली खान का विशेष प्रेम रहा। अनेक अवसरों पर उन्होंने पाञ्चजन्य के साथ अपने विचारों का आदान-प्रदान किया। जब भी पाञ्चजन्य ने उनसे पाकिस्तान के सम्बंध में विचार जानने चाहे, वे सहर्ष तैयार हुए। पाञ्चजन्य परिवार भारत के घनिष्ठ मित्र, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इस योद्धा और पाकिस्तान में लोकतंत्र की स्थापना एवं बहाली के लिए सदा संघर्षरत रहे इस महान नेता को अपनी भावभीनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित करता है।28
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