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कल्याण का संस्कार अंकभारतीय मूल्यों का दर्शनसमीक्षकपुस्तक का नाम कल्याण (संस्कार अंक)सम्पादक राधेश्याम खेमकामूल्य 130रु.(सजिल्द 150 रु.)पृष्ठ 472प्रकाशक गीता प्रेस, गोरखपुरपता “कल्याण” कार्यालय,पत्रालय-गीता प्रेस,जनपद-गोरखपुर (उ.प्र.)पिन-273005कल्याण भारतीय मनीषा की श्रेष्ठतम पत्रिका कही जा सकती है जिसे परमश्रद्धेय जयदयाल जी गोयन्दका और श्री भाई जी (हनुमान प्रसाद पोद्दार) प्रभृति भगवद्भक्त विद्वानों का आशीर्वाद मिला है। समय-समय पर इसके वार्षिक विशेषांक भारतीय अध्यात्म, दर्शन एवं चिन्तन के विभिन्न पहलुओं को स्पर्श करने वाले मानक सन्दर्भ ग्रन्थ के नाते प्रतिष्ठित हुए हैं। इस वर्ष कल्याण का “संस्कार अंक” हिन्दू जीवन मूल्यों एवं उनसे जुड़े संस्कारों पर केन्द्रित है। इसके प्रारम्भ में ही श्रीमद्भागवत से भारत वर्ष की महिमा का जो उद्धरण दिया गया है वह हर भारतीय को गौरव से आनंदित करने वाला है। हिन्दू चिन्तन के अनेक शीर्षस्थ विद्वानों ने इसमें संस्कारों से सम्बंधित गहन चिन्तन युक्त लेख लिखे हैं। तेरह सुन्दर पूर्ण पृष्ठ के रंगीन चित्र भी हैं, जिनमें वेद माता गायत्री, महर्षि सान्दीपनि द्वारा कृष्ण-सुदामा को दीक्षान्त उपदेश वाले चित्र विशेष दृष्टव्य हैं। इस अंक में महर्षि व्यास द्वारा प्रतिपादित षोडश संस्कारों की विशद् व्याख्या भी है। ये षोडश संस्कार क्या हैं, क्यों आवश्यक हैं और किस प्रकार संपन्न किए जाते हैं? जैसे अनेक प्रश्नों का समाधान खोजकर कल्याण के 80वें वर्ष पर गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित विशेषांक “संस्कार अंक” में सहेजने का प्रयास किया गया है। इस विशेषांक में संस्कार विषय पर धर्म गुरुओं एवं विद्वानों के विस्तृत लेखों को भी स्थान दिया गया है, जिससे पाठक को विषय को समझने एवं पूर्व इतिहास को जानने में सहायता मिलती है। 472 पृष्ठों वाले इस अंक का मूल्य 130 रुपए (सजिल्द 150 रुपए) रखा गया है। इतने कम मूल्य में इतना वृहद् ग्रन्थ महानगरों के व्यावसायिक प्रकाशकों की आंखें खोलने वाला सिद्ध होना चाहिए।भारतीय गाय-विज्ञान के सन्दर्भ मेंएक सार्थक पहलसमीक्षकपुस्तक का नाम भारतीय गाय-विज्ञान के संदर्भ मेंलेखक डा. शांति स्वरूप गुप्तामूल्य 250 रुपएपृष्ठ 200प्रकाशक वरुण प्रकाशन28/ 64,गली नं. 15,दिल्ली-110032गाय की वेदों, पुराणों में गायी गई महिमा और वैज्ञानिक दृष्टि से उसके महत्व को रेखांकित करने वाली पुस्तक लिखकर आगरा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. शांति स्वरूप गुप्ता ने एक बड़ी कमी को पूरा किया है। डा. शान्ति स्वरूप गुप्ता द्वारा लिखित इस पुस्तक में भारतीय गाय का जन्म, उसके महत्व एवं गाय के प्रति हमारे कत्र्तव्यों पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। यही नहीं पुस्तक में लंबे समय तक बहस का मुद्दा बने “क्या आर्य गो-मांस खाते थे?” जैसे विषय को भी स्पष्ट करने की कोशिश की गई है। पुस्तक की प्रस्तावना में पूर्व मानव संसाधन मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी ने जो लिखा है वह पुस्तक का सर्वश्रेष्ठ परिचय है- “डा. शांति स्वरूप गुप्ता ने गाय से प्राप्त वस्तुओं के बढ़ते उपयोगों की भी विस्तृत जानकारी दी है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि वैज्ञानिक खाद तथा विदेशी कीटनाशक दवाइयों की तुलना में गाय के गोबर तथा मूत्र से उत्तम, सस्ती और अधिक लाभप्रद खाद तथा कीटनाशक दवाइयां बनाई जा सकती हैं। उन्होंने प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि दूध, दही, मट्ठा, घी, गोबर तथा मूत्र अनेक रोगों की अचूक दवाइयां उपलब्ध कराने में सक्षम हैं, जैसे- मलेरिया, पीलिया, चर्म रोग, क्षय-रोग, ह्मदय-रोग गुर्दे का रोग, सर्प-दंश आदि। उन्होंने स्पष्ट किया है कि गोमाता से प्राप्त पदार्थों से अनेक व्यापारिक वस्तुओं का निर्माण किया जा रहा है, जैसे-साबुन, धूप-बत्ती, कीटनाशक दवाइयां, शीत तथा ताप अवरोधक प्लास्टर आदि। इसके अतिरिक्त लेखक ने अन्य उपयोगी उपलब्धियों की भी व्याख्या की है, जैसे-रेगिस्तान को पीछे धकेलने की क्षमता, समुद्र में बिखरे तेल को इकट्ठा करने की क्षमता, पानी के जहाजों की मरम्मत, शहरों के कचरे को शीघ्र तथा सस्ते ढंग से उपयोगी बनाने की विशेष क्षमता आदि।22
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