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माणिक चंद्र वाजपेयीराष्ट्रनिष्ठ पत्रकारिता के आदर्शमाणिक चंद्र वाजपेयी उपाख्य मामा जी7 अक्तूबर, 1919-27 दिसम्बर, 2005राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक एवं दैनिक स्वदेश के प्रधान सम्पादक श्री माणिक चंद्र वाजपेयी उपाख्य मामाजी का गत 27 दिसम्बर को ग्वालियर में देहावसान हो गया। वे 86 वर्ष के थे। मामाजी लम्बे समय से अस्वस्थ थे। 28 दिसम्बर को ग्वालियर में उनके अंतिम संस्कार के समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, भा.ज.पा. एवं दूसरे राजनीतिक दलों के वरिष्ठ पदाधिकारी, समाजसेवी संगठनों के कार्यकर्ता, पत्रकार जगत के वरिष्ठजन उपस्थित थे। अंतिम संस्कार से पूर्व स्व. मामा जी की पार्थिव देह के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में स्वयंसेवक व समाजसेवी पहुंचे। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं राज्य सरकार के कई मंत्रियों ने मामाजी के निधन की खबर मिलते ही 27 दिसम्बर को ग्वालियर आकर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किए। मामाजी की पार्थिव देह को उनके भतीजे रवीन्द्र वाजपेयी ने मुखाग्नि दी।7 अक्तूबर, 1919 को आगरा जिले के बटेश्वर गांव में श्रीश्रीदत्त वाजपेयी के घर जन्मे माणिक चंद्र वाजपेयी की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर में ही हुई। उन्होंने मिडिल बोर्ड में ग्वालियर राज्य में पहला स्थान प्राप्त किया था। स्मृति शेष मामा जीराजमाता विजयाराजे सिंधिया के साथ मामाजीइंटर में अजमेर बोर्ड की परीक्षा में स्वर्ण पदक प्राप्त किया तथा बाद में बी.ए., एल.एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण की।बाल्यकाल से ही राष्ट्रवादी भावना से प्रभावित रहे मामाजी 1944 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बने। 1944 से 1953 तक उन्होंने भिण्ड में प्रचारक के रूप में बड़ी संख्या में बालकों, युवाओं को संघ से जोड़ा। पारिवारिक कारणों से वे प्रचारक व्यवस्था से वापस लौटे और सन् 1954 से 1964 तक लहरौली, जिला भिण्ड में शिक्षक रहे। फिर 1964 से 1966 तक विद्यालोक उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाचार्य रहे। आपातकाल के दौरान वे 20 महीने जेल में बंद रहे। इसी अवधि में उनकी धर्मपत्नी का देहावसान हो गया, इसके बावजूद मामाजी विचलित नहीं हुए। 1985 के पश्चात् वे पुन: संघ के प्रचारक बने और प्रान्तीय प्रचार प्रसार प्रमुख सहित अनेक दायित्वों का निर्वाह किया। वे स्वदेशी जागरण मंच के मध्य भारत प्रान्त के संयोजक भी रहे। जनसंघ की स्थापना के बाद सन् 1951 से 1954 तक उन्होंने संगठन मंत्री के रूप में भी कार्य किया। प्रतिकूल परिस्थितियों में संगठन के आदेश पर 1952 में वे भिण्ड से राजमाता विजयाराजे सिंधिया के खिलाफ चुनाव भी लड़े।स्मृति शेष मामा जीएक कार्यक्रम में मामाजी के साथ हैं सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शनमामाजी तात्कालिक विषयों पर गहन अध्ययन करने के साथ ही देश से जुड़े अनेक विषयों पर भी चिंतन-मनन करते थे। उनके आलेख बहुत धारदार होते थे। दैनिक स्वदेश, इंदौर की स्थापना के बाद से ही मामाजी इससे जुड़ गए थे तथा 1968 से 1985 तक स्वदेश इंदौर के सम्पादक रहे। “केरल में माक्र्स नहीं महेश”, “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने संविधान के आइने में”, “समय की शिला पर” आदि उनकी लेखमालाएं बहुचर्चित रहीं। वह वर्तमान में स्वदेश भोपाल, जबलपुर व रायपुर के सलाहकार संपादक तथा ग्वालियर, सतना, गुना, झांसी के प्रधान संपादक के रूप में कार्य देखते थे। उन्होंने “आपातकालीन संघर्षगाथा”, “प्रथम अग्नि परीक्षा”, “भारतीय नारी : विवेकानंद की दृष्टि में,” “कश्मीर का कड़वा सच”, “पोप का कसता शिंकजा”, “ज्योति जला निज प्राण की” जैसी अनुपम कृतियों की रचना की। हाल ही में कोलकाता के बड़ा बाजार कुमारसभा पुस्तकालय ने उन्हें डा. हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान से सम्मानित किया था।स्मृति शेष मामा जीस्व. मामाजी की बहन को सांत्वना देते हुए अटल जीमामाजी असाधारण प्रतिभा के धनी थे परन्तु उनका स्वभाव अत्यंत सरल था। यही कारण है कि कार्यकर्ताओं से उनका जीवंत संपर्क था और प्रत्येक कार्यकर्ता को वह अपने परिवार के बुजुर्ग जैसे लगते थे। पाञ्चजन्य परिवार की ओर से स्व. मामा जी को भावभीनी श्रद्धाञ्जलि अर्पित है।पत्रकारिता के शलाका पुरुष थे मामाजी- अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व प्रधानमंत्रीस्व. मामाजी के अंतिम दर्शन करते हुए श्री अटल बिहारी वाजपेयी व श्री शिवराज सिंह चौहानमामाजी के अवसान की खबर पाते ही मुम्बई में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बीच में ही छोड़कर श्री अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर पहुंचे। मामाजी को श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते समय वे अपने आंसू रोक नहीं पाए। उन्होंने मामाजी को राष्ट्र-चिन्तक बताया और कहा कि वे पत्रकारिता के शलाका पुरुष थे। अटल जी ने स्व. मामाजी की इकलौती बहन को सांत्वना दी और कहा कि हम सब उनके ही परिवार के सदस्य हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने श्रद्धाञ्जलि अर्पित करते हुए कहा कि मामाजी सेवा और सादगी की प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने सदैव राष्ट्र के बारे में चिन्तन किया और कार्यकर्ताओं को मार्गदर्शन देते रहे।6
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