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गण के हाथों तंत्रकोईराला बने प्रधानमंत्री, लेकिन माओवादियों की चुनौती कायमकम्युनिस्ट आतंकवादियों ने ठुकराया गणतंत्र की धारा में आने का न्योता, माकपा के येचूरी काठमाण्डू निमंत्रित-काठमाण्डू से राकेश मिश्रनेपाल में गत 6 अप्रैल से घोषित आम हड़ताल जन-आन्दोलन में बदलने के साथ ही प्रजातंत्र की पुनर्बहाली का सफल माध्यम साबित हुई। सात राजनीतिक दलों और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) को अपने घोषित लक्ष्य में सफलता मिली। 24 अप्रैल की रात, नेपाली समयानुसार 11.30 बजे नेपाल नरेश श्री ज्ञानेन्द्र ने विघटित निचले सदन को जैसे ही पुनर्बहाली करने की घोषणा की, सम्पूर्ण नेपाल में खुशी की लहर दौड़ गई। सदन की पुनर्बहाली के साथ ही नेपाल नरेश ने 28 अप्रैल के बाद संसद की बैठक की तिथि भी निर्धारित कर दी। उल्लेखनीय है कि नेपाल नरेश श्री ज्ञानेन्द्र ने लोकसभा को 4 वर्ष पहले फरवरी, 2002 में भंग कर दिया था। नेपाल में संसद के निचले सदन को प्रतिनिधि सभा कहा जाता है। संसद की पुनर्बहाली की घोषणा सरकारी टेलीविजन पर जैसे ही प्रसारित हुई जनता सड़कों पर उतर आई और अपनी विजय का उल्लास प्रकट करने लगी। रात के 3 बजे तक राजधानी काठमाण्डू के कोने-कोने से विजय जुलूस निकलते रहे। 19 दिन तक लागातार चले आंदोलन में लगभग 17 लोगों के बलिदान के बाद नेपाल नरेश श्री ज्ञानेन्द्र ने जिस प्रकार जिद छोड़ते हुए, जनांदोलन के दबाव में हथियार डाले, उससे आंदोलनकारी अपेक्षा से कहीं अधिक उत्साहित दिखे।नेपाल नरेश द्वारा संसद की पुनर्बहाली सम्बंधी घोषणा माओवादियों को छोड़कर सभी राजनीतिक दलों को रास आई। माओवादी राजा के द्वारा ही बिना शर्त संविधान सभा की घोषणा करवाना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और राजा ने संसद की पुनर्बहाली कर जनता को यह संदेश दिया कि वे भी जनतंत्र में विश्वास करते हैं। नेपाल नरेश की इस घोषणा के 5 घंटे बाद आंदोलनकारी सात राजनीतिक दलों की एक संयुक्त बैठक हुई, जिसमें नेपाल नरेश के प्रस्ताव का कुछ शर्तों के साथ स्वागत किया गया। बैठक में संसद के पहले सत्र में ही संविधान सभा के चुनाव की प्रक्रिया को प्रारंभ करने, आंदोलनकारियों के ऊपर बर्बर दमन करने व कराने वालों के विरुद्ध कार्यवाही करने, लोकतंत्र बहाली के लिए बलिदान देने वालों के परिवार की उचित देखरेख व घायलों का पूर्ण इलाज कराने तथा माओवादियों की सहभागिता युक्त अंतरिम सरकार के गठन का निर्णय लिया गया। बैठक में सर्वसम्मति से नेपाली कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष श्री गिरिजा प्रसाद कोईराला को भावी प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया। श्री कोईराला को प्रधानमंत्री चुने जाने का प्रस्ताव उनके कट्टर विरोधी माने जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री एवं नेपाली कांग्रेस (प्रजातांत्रिक) के अध्यक्ष श्री शेर बहादुर देऊबा और पूर्व उपप्रधानमंत्री तथा नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एमाले) के महासचिव श्री माधव कुमार नेपाल ने रखा था। यह बात भी बहुत साफ है कि माओवादियों की सहमति मिले बिना एक कदम भी बढ़ाना इनके बस की बात नहीं है। यह बात भी साफ होती जा रही है कि संविधान सभा के गठन के बिना राजनीतिक दलों द्वारा नेपाल नरेश का प्रस्ताव स्वीकार करना एक महंगा सौदा साबित हो सकता है क्योंकि माओवादियों को इससे कम कुछ भी स्वीकार नहीं होगा।नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव श्री माधव कुमार नेपाल ने पाञ्चजन्य प्रतिनिधि से बातचीत में बताया कि नेकपा (माओवादी) के साथ बारह बिन्दुओं पर समझौते का पूर्ण पालन करते हुए संसद की प्रतिनिधि सभा (लोकसभा) से संविधान सभा का चुनाव कराना और माओवादियों को नेपाल की राजनीतिक मुख्यधारा में लाना हमारा पहला काम होगा। इसके लिए माओवादी पार्टी को सम्मिलित करके अंतरिम सरकार का गठन किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि श्री 5 की सरकार के बदले नेपाल सरकार, शाही नेपाली सेना के बदले नेपाली राष्ट्रीय सेना, नेपाल के वर्तमान राष्ट्रगान- जिसमें राजा की स्तुति और उनकी लम्बी आयु की प्रार्थना की जाती है-को हटाकर नेपाल के वीर बलिदानियों का स्मरण एवं राष्ट्र के प्रति भक्तिभाव सृजित करने वाला राष्ट्रगान लाया जाएगा। इसी प्रकार नेपाल का आमूल परिवर्तन करने का प्रयास किया जाएगा क्योंकि यही नेपाली जनता की मांग रही है। यह पूछे जाने पर कि नए बनने वाले संविधान में राजा का क्या स्थान होगा? श्री माधव कुमार नेपाल ने कहा कि इस बात का निर्णय नेपाली जनता करेगी, राजनीतिक दल के नेता नहीं। उनका संकेत स्पष्ट था कि संविधान सभा के चुनाव के जरिए ही राजा का स्थान निर्धारित होगा।नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री श्री शेर बहादुर देऊबा का भी कहना है कि नेपाली जनता शांति चाहती है और यह माओवादियों को राजनीति की मुख्यधारा में लाए बिना संभव नहीं है। इसलिए संविधान सभा ही एकमात्र विकल्प है। उल्लेखनीय है कि श्री देऊबा ने ही अपने प्रधानमंत्रित्वकाल में माओवादियों से बातचीत का दौर शुरू किया था और उन्हीं के नेतृत्व वाली सरकार ने माओवादियों के साथ तीन दौर की वार्ता भी की थी। तब भी माओवादियों द्वारा संविधान सभा के गठन की मांग के कारण वार्ता टूटी थी। इसके पीछे मुख्य कारण यह था कि नेपाल के वर्तमान संविधान की प्रस्तावना, जो कि अपरिवर्तनीय है, में संवैधानिक राजतंत्र का उल्लेख है। इस कारण पिछली सभी सरकारें माओवादियों की संविधान सभा की मांग को अस्वीकार करती रहीं। सरकार की ओर से यह भी कहा जाता था कि संवैधानिक राजतंत्र के प्रति लोगों की आस्था और विश्वास है। लेकिन अब वैसी बात नहीं रही, जिसका उदाहरण है राजधानी काठमाण्डू सहित अन्य छोटे-बड़े नगरों की सड़कों पर राजतंत्र के विरोध में उतरा जन सैलाब।सात दलों के गठबन्धन का एक घटक संयुक्त जनमोर्चा के अध्यक्ष अमिक शेरचन का कहना है कि पूर्ण लोकतंत्र ही इस जनांदोलन की मांग रही है, इसलिए इसे पूरा करके ही हम दम लेंगे। संविधान सभा के जरिए ही सभी समस्याओं का हल निकाला जाएगा, अब इसे कोई रोकना भी चाहेगा तो भी यह नहीं रूकेगा। नेपाल की राजनीति एक नये मोड़ पर खड़ी है जिसे संविधान सभा ही एक सुनिश्चित दिशा दे सकती है।सभी आंदोलनकारी संविधान सभा के चुनाव पर एक मत हैं, राजनेता कहीं कोई दूसरा रास्ता न चुन लें, यह सोचकर सैकड़ों आंदोलनकारी युवा जहां-जहां सात दलों की बैठक होती है, वहीं एकत्र होकर नारा लगाते हैं कि “सविधान सभा का चुनाव हो”। वे राजा को सिर्फ एक संवैधानिक राजा के रूप में बनाए रखने का संकेत दे रहे हैं। सात राजनीतिक दलों का एक महत्वपूर्ण मुद्दा है-पंथनिरपेक्ष राज्य की घोषणा। यदि विश्व के एकमात्र घोषित हिंदू अधिराज्य को पंथ निरपेक्ष राज्य बनाया गया तो पूर्ण लोकतंत्र के पक्षधर परंतु हिंदू अधिराज्य की पहचान कायम रखने की इच्छा रखने वालों को बड़ी निराशा होगी। ऐसे लोगों की इच्छा और अपेक्षा को किस नजरिए से देखा जाएगा, यह भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। नेपाल में निरंकुश राजतंत्र और संसदीय प्रजातंत्र की पुनर्बहाली के लिए हुए जनांदोलन में नेपाल जनता पार्टी (ने.ज.पा.) के नेताओं व कार्यकर्ताओं ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया। ने.ज.पा. के महासचिव जीतेंद्र सोनस सहित दर्जनों कार्यकर्ता गिरफ्तार किए गए थे। नेजपा ने संविधान सभा के चुनाव की तो मांग की है लेकिन इस बात पर भी जोर दिया है कि नेपाल और नेपालियों की विश्वव्यापी हिंदू पहचान कायम रहनी चाहिए। इसने लोगों से अपील की है कि संविधान सभा के चुनाव के समय वे हिंदू अधिराज्य के पक्ष में एकजुटता दर्शाएं। नेपाल नरेश श्री ज्ञानेन्द्र की संसद बहाली की घोषणा का भारत, अमरीका, चीन, जापान, नार्वे और संयुक्त राष्ट्रसंघ ने स्वागत करते हुए नेपाल को सभी प्रकार का सहयोग एवं अतिरिक्त आर्थिक सहयोग उपलब्ध कराने की घोषणा की है। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने संविधान सभा का चुनाव कराने हेतु आवश्यक वातावरण तैयार करने के लिए तीन महीने के एकतरफा संघर्ष विराम की घोषणा की है। साथ ही, यह धमकी भी दी है कि अगर संसद की पहली बैठक में ही संविधान सभा चुनाव की घोषणा नहीं की गई तो नाकेबंदी के साथ-साथ शांतिपूर्ण आंदोलन जारी रहेगा। द20
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