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पहला डा. वाकणकर राष्ट्रीय सम्मानडा. स्वराज्य प्रकाश गुप्त को वाकणकर स्मृति सम्मान प्रदान करते हुए डा.मुरली मनोहर जोशी एवंश्री लालकृष्ण आडवाणी। साथ में हैं श्रीमती लक्ष्मी वाकणकर (बाएं) एवं श्री शिवराज सिंह चौहान (सबसे दाएं)प्रख्यात पुरातत्ववेत्ता, भारतीय पुरातत्व परिषद् के निदेशक डा. स्वराज्य प्रकाश गुप्त को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित पहला “डा. वाकणकर राष्ट्रीय सम्मान” प्रदान किया गया। गत 16 जुलाई को भोपाल में हुए एक भव्य समारोह में पूर्व उप प्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी एवं पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी ने उन्हें यह सम्मान प्रदान किया। इस अवसर पर उपस्थित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश में वाकणकर स्मृति पुरातत्व शोध संस्थान की स्थापना करने की भी घोषणा की। उल्लेखनीय है कि डा. विष्णु श्रीधर वाकणकर देश के सुप्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता थे तथा भोपाल के निकट स्थित भीमबेटका की खोज कर उसकी लिपि के अध्ययन करने के साथ ही उसे राष्ट्रीय मानचित्र पर अंकित कराने में उनकी प्रमुख भूमिका थी।सम्मान समारोह के मुख्य वक्ता डा. मुरली मनोहर जोशी ने इस अवसर पर कहा कि पुरातत्व हमारे देश की ऐतिहासिक विरासत को सबके सामने लाता है। पुरातत्व के इस महत्व को आज के संदर्भों में गहराई से समझने की आवश्यकता है क्योंकि देश का इतिहास विकृति का शिकार है। उन्होंने कहा कि पुरातात्विक खोजों से अब यह प्रमाणित हो चुका है कि भारत एक जन, एक संस्कृति तथा एक राष्ट्र है। पुरातात्विक आधार पर ही नहीं वंशानुगत (जीन) पद्धति से हुई खोजों ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि आर्य कहीं बाहर से नहीं आए। इसके बावजूद मैकाले और माक्र्स के मानसपुत्र रामायण और महाभारत को काल्पनिक ग्रंथ बताकर ऐसा इतिहास पढ़ा रहे हैं जो राष्ट्रीय स्वाभिमान को जाग्रत करने में बांधक है। समारोह के मुख्य अतिथि पूर्व उप-प्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी ने वाकणकर जी की स्मृति में सम्मान प्रदान करने पर मध्य प्रदेश सरकार की सराहना की। उन्होंने मुख्यमंत्री से कहा कि अब वे ब्रिटिश संग्रहालय में रखी माता सरस्वती की प्रतिमा को वापस लाकर धार स्थित भोजशाला में प्रतिष्ठित करने के लिए प्रयत्न करें।अपने सम्मान स्वीकारोक्ति वक्तव्य में डा.स्वराज्य प्रकाश गुप्त ने कहा कि पुरातत्व मानव इतिहास को जानने का एक महत्वपूर्ण और सर्वाधिक सशक्त माध्यम है। पुरातत्व ने भारतीय इतिहास को महत्वपूर्ण आधार प्रदान किए हैं। पुरातत्व के आधार पर ही हम यह गर्व से कह सकते हैं कि हमारी संस्कति 1000 ई.पू. में नहीं बल्कि 8 हजार ई.पू. में शुरू हुई थी, यानी पिछले 10 हजार वर्षों से हमारी सांस्कृतिक धारा की निरंतरता बनी हुई है।समारोह में स्व. डा. विष्णु श्रीधर वाकणकर की सहधर्मिणी श्रीमती लक्ष्मी वाकणकर भी उपस्थित थीं। उनका भी शाल और श्रीफल देकर अभिवादन किया गया। समारोह में राज्य के संस्कृति मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा सहित अनेक मंत्री तथा पदाधिकारी एवं गण्यमान्यजन उपस्थित थे। प्रतिनिधि18
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