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आशावाद को जगाती कविताएं

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May 2, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 May 2006 00:00:00

“कहां है कैलास” कवयित्री इन्दिरा मोहन का चौथा कविता संग्रह है। इसमें उनकी मुक्त छंद कविताएं संग्रहित हैं। वे मूलत: गीतकार हैं। उनके गीत संग्रहों, “पेड़ छनी परछाइयां” और “पीछे खड़ी सुहानी भोर” में उत्कृष्ट कोटि के गीत पढ़ने को मिलते हैं। गीतों पर उनकी पकड़ कविताओं की अपेक्षा अधिक मजबूत लगती है। उनकी कविताओं में संवेदना का वैसा ज्वार तो नहीं जो उनके गीतों में है, लेकिन इस संग्रह को एक अच्छी शुरुआत के रूप में देखा जा सकता है। कविताओं का नयापन और मौलिकता ध्यान आकृष्ट करते हैं। उनका “आशावाद” मन को छूता है। 114 पृष्ठों में कवयित्री ने अपनी छोटी-बड़ी 89 कविताओं को खूबसूरत ढंग से पेश किया है। इन कविताओं में जिन्दगी के इन्द्रधनुषी रंग यत्र-तत्र बिखरे पड़े हैं। “कहां है कैलास” की कविताओं का मूल स्वर “आशावाद” है। सब कुछ के बावजूद एक उम्मीद, एक आशा, एक विश्वास इन कविताओं में नजर आता है। निराशा के अंधेरों, संघर्ष की अग्नियों और यथार्थ की वेदनाओं से जूझती हुईं ये कविताएं अन्तत: आशा के उजास में नहाई सी लगती हैं। कवयित्री अपने आस-पास के वातावरण से पूरी तरह अवगत है, जिन्दगी की जटिलताओं और तल्खियों से रूबरू है और उसे मालूम भी है कि यह जीवन पथ “आग का दरिया है और डूब कर जाना है…” इन सबके होते हुए भी उसे पूरी उम्मीद है कि एक दिन सब कुछ संवरेगा। “कितने नादान हैं बादल” कविता में ये भाव पूरे अर्थ के साथ मौजूद दिखते हैं –

पुस्तक का नाम – कहां है कैलास

कवयित्री – इन्दिरा मोहन

मूल्य – 160/- रुपए

पृष्ठ – 114

प्रकाशक – नेशनल पब्लिशिंग हाउस

2/35, अंसारी रोड,

दरियागंज, नई दिल्ली-110002

सूर्य छिपेगा नहीं, वह है प्रकाश स्वरूप

उसके सामने अंधकार, नहीं टिक सकता

नादान बादल यह क्या जानें?

इस बर्बर और आतंक भरे माहौल में भी “नन्हीं चिड़िया” सा कवयित्री का मन निर्भय है, निÏश्चत है, मस्त है… क्योंकि इसी का नाम जिन्दगी है… “चरैवेति… चरैवेति…” जो होगा देखा जाएगा, जो होगा अच्छा ही होगा, जो होगा उससे डरना कैसा? भारतीय चिंतन धारा भी तो यही है –

बड़े से पेड़ की, छोटी सी डाल पर

बैठी, दो इंच भर की “तुम”

कितने हर्ष से, फुदक रही हो

इधर-उधर…, निÏश्चत, निर्भय

अपने में मस्त।

इसी प्रकार और भी अनेकानेक कविताएं हैं, जिनमें आशा और विश्वास एक साथ मौजूद दिखाई देते हैं। जीवन के प्रति कवयित्री की यह जिजीविषा शक्ति इस संग्रह की तमाम कविताओं में बिखरी पड़ी है। साहित्य के सरोकार की सार्थकता भी यही है कि हम अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमृत्यु की ओर तथा असत्य से सत्य की ओर जाने की कोशिश करें। “कहां है कैलास” की कविताओं में यह कोशिश ईमानदारी से की गई है।

नरेश शांडिल्य

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