|
कटासराज में कोई काम शुरू ही नहीं हुआमुशर्रफ द्वारा कटासराज के पुनरुद्धार की घोषणा पर अमल कब?वर्षों से मेरी इच्छा थी कि मैं पाकिस्तान जाऊं और वहां के हिन्दू तीर्थस्थलों एवं लाहौर स्थित अपने पुरखों का घर देखूं कि अब वे किन हालात में हैं। क्योंकि विभाजन के इतने वर्षों बाद भी शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता होगा जब घर में लाहौर की चर्चा न होती होगी। जब छोटी थी तो मां-पिताजी एवं अन्य लोग भारत-विभाजन की त्रासदी एवं लाहौर से जुड़ी यादें बताया करते थे और जब ससुराल आई तो यहां भी लाहौर की चर्चाएं होती रहती हैं। उल्लेखनीय है कि मेरे पिताजी एवं श्वसुर दोनों 1947 में ह्मदय-विदारक घटनाओं से जूझते हुए लाहौर से अमृतसर और फिर दिल्ली आए थे। मैं पिछले दस साल से पाकिस्तान जाने के लिए “तीर्थाटन वीसा” मांग रही थी, किन्तु बार-बार आवेदन रद्द हो जाता था। गत मई महीने में मेरे पति श्री निर्मल मेहरा “बिजनेस वीसा” पर पाकिस्तान गए थे। पिछले दिनों जब उन्हें पुन: पाकिस्तान जाना था तो उनके साथ मैंने और मेरे भाई श्री राकेश चोपड़ा ने भी “बिजनेस वीसा” के लिए आवेदन किया और “वीसा” मिल भी गया।मंदिर का शिखर, जिस पर उर्दू में “जिहाद”लिखा हैइस तरह वर्षों पुराना सपना साकार होने पर हमें बड़ी खुशी हुई। जी-जान से पाकिस्तान जाने की तैयारी में जुट गई। अन्तत: 5 दिसम्बर को मैं अपने पति और भाई के साथ नई दिल्ली से विमान द्वारा लाहौर पहुंची। हवाई अड्डे पर आवश्यक खानापूर्ति के बाद हम लोग पहले से निर्धारित एक होटल के लिए चले। हवाई अड्डे पर हम लोगों को लेने के लिए लाहौर के एक प्रसिद्ध व्यापारी राणा भैया आए थे। उन्होंने ही हमलोगों के लिए होटल तय किया था। रास्ते में लाहौर की चौड़ी और सजी-धजी सड़कों एवं इमारतों को देखकर लगा ही नहीं कि यह पाकिस्तान का कोई शहर है। मैंने उनसे लाहौर की खूबसूरती के बारे में चर्चा की। उन्होंने बताया, प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के समय विदेशी पूंजीनिवेशकों को आकर्षित करने के लिए लाहौर को सजाया-संवारा गया था। जब होटल पहुंचे तो लगभग शाम हो चुकी थी इसलिए उस दिन और कहीं नहीं जा पाए। मैं देर रात तक सो नहीं पाई। मन में अनेक बातें उठ रही थीं।जीर्ण-शीर्ण अवस्था में कटासराज मन्दिर परिसरजीर्ण-शीर्ण अवस्था में कटासराज मन्दिर परिसर पहले तो उस अधिकारी ने पूरी खोजबीन की कि क्यों पूछताछ कर रहे हो, वहां किनको जाना है, वे कहां से आए हैं, उनकी पुलिस थाने में पेशी हो गई है या नहीं?मैं यह तय नहीं कर पा रही थी कि पहले अपने पुरखों की जन्मभूमि जाऊं या एक जमाने में विश्वभर के हिन्दुओं की श्रद्धा का केन्द्र रहे तीर्थस्थल कटासराज के दर्शन करूं। खैर सुबह तय कर लिया कि पहले कटासराज ही जाऊंगी। तब तक राणा भैया भी अपने घर से आ चुके थे। उनसे मैंने कटासराज की चर्चा की तो कहने लगे, इस सम्बंध में मुझे कोई जानकारी नहीं है। इसके बाद उन्होंने एक पुलिस अधिकारी से टेलिफोन करके पूछा। पहले तो उस अधिकारी ने पूरी खोजबीन की कि क्यों पूछताछ कर रहे हो, वहां किनको जाना है, वे कहां से आए हैं, उनकी पुलिस थाने में पेशी हो गई है या नहीं? हर तरह से सन्तुष्ट होने के बाद उस अधिकारी ने कटासराज के बारे में बताया। इसके बाद राणा भैया की कार से ही हम लोग कटासराज के लिए चले। लगभग 4 घंटे की यात्रा के बाद एक पहाड़ी-सी जगह पर हम लोग पहुंचे।शेष अगले अंक में36
टिप्पणियाँ