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स्मरण रखो कि हमारा राष्ट्र झोपड़ियों में बसा है। किन्तु ओह! किसी ने उनके लिए कभी कुछ नहीं किया।-विवेकानन्द (उत्तिष्ठत जाग्रत, पृ.-26)8 प्रतिशत विकास दरनई दिल्ली में 27 जून को राष्ट्रीय विकास परिषद् की बैठक में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने आखिर कह ही दिया कि अब देश 8 प्रतिशत विकास दर हासिल नहीं कर सकता। इसके लिए उन्होंने पिछली राजग सरकार की आर्थिक नीतियों को जिम्मेदार ठहराया है। किन्तु असलियत तो यह है कि डा. मनमोहन सिंह भी उन्हीं आर्थिक नीतियों पर चल रहे हैं, जिनको वे निर्धारित विकास दर हासिल न कर पाने के लिए दोषी ठहरा रहे हैं। अर्थशास्त्रियों के अनुसार 8 प्रतिशत विकास दर पाने के लिए दो काम करने होंगे-पहला, घरेलू निवेश बढ़ाना होगा, और दूसरा, सरकारी फिजूलखर्ची रोकनी होगी। किन्तु प्रधानमंत्री के पास एक ही फार्मूला है और वह है विदेशी निवेश को आकर्षित करना। पर यह होगा कैसे? क्योंकि विदेशी निवेशकों को भारत में जबर्दस्त प्रतिस्पद्र्धा मिलती है और उन्हें चीन की तरह यहां खुला मैदान मिलता नहीं है। इसलिए सरकार जो अपेक्षा रखती है, उसके अनुरूप तो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश होने से रहा। विदेशी संस्थागत निवेश, जो हमारे शेयर बाजारों में आ रहा है, जिस कारण शेयर बाजार में बुलंदी है, को धरातल पर आर्थिक विकास में परिणत करने में बहुत अधिक समय लगता है और इसके बारे में अनिश्चितताएं भी कम नहीं हैं।”80 के दशक में भारत सरकार सड़क, नहर इत्यादि में जो निवेश कर रही थी और जिसे राजग सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्ग योजना एवं नदी जोड़ो जैसी योजनाओं के माध्यम से कुछ हद तक अपनाया भी था, उसे इस सरकार ने छोड़ दिया है। गलती ठीक यहां हुई है। इसलिए प्रधानमंत्री को यह बताना चाहिए कि आज राष्ट्रीय राजमार्गों, बन्दरगाहों, हवाई अड्डों, नहरों आदि में सरकारी निवेश के सम्बंध में सरकार की नीतियां क्या हैं? लगता है कि प्रधानमंत्री की दृष्टि में केवल विदेशी निवेश से ही भारत का विकास होगा। लेकिन वह यह नहीं देख रहे हैं कि जितना विदेशी निवेश हमारे यहां हो रहा है उससे ज्यादा विदेशी मुद्रा तो यहां पहले से ही मौजूद है। पिछले 10-12 साल में भारत में कुल 60-65 अरब डालर का विदेशी निवेश हुआ है, जबकि हमारे पास 140 अरब डालर का विदेशी मुद्रा भण्डार पहले से ही है। इसलिए प्रधानमंत्री को ऐसी योजनाएं बनानी चाहिए, जिनमें हमारे पास मौजूद विदेशी मुद्रा और अन्य सरकारी राजस्व का सदुपयोग हो। किन्तु वह ऐसा न करके सरकारी राजस्व के माध्यम से केवल वोट खरीदना चाहते हैं। आम आदमी की मूल जरूरतें हैं रोजगार और आय। किन्तु सरकार यह न करके एक ओर तो बड़ी-बड़ी कम्पनियों को तरह-तरह की रियायतें और छोटे उद्योगों को संरक्षण न देकर रोजगार का भक्षण कर रही है, दूसरी ओर मुफ्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य, अन्त्योदय आदि योजनाओं से आम आदमी को क्षणिक राहत देकर उनका वोट प्राप्त करना चाहती है। यह पं. नेहरू के समय से चली आ रही कांग्रेसी नीति है कि गरीब को गरीब ही रहने दो और कुछ दाना फेंक कर उनका वोट प्राप्त कर लो। उसी नीति पर डा. मनमोहन सिंह भी चल रहे हैं।8 प्रतिशत विकास दर पाना कोई कठिन काम नहीं है। केवल सरकार को अपना खजाना घरेलू निवेश की ओर बढ़ाना होगा और सरकार कर्मचारियों पर अंकुश लगाना होगा, जो केवल सरकारी राजस्व को ही नहीं, बल्कि पूरे भारत की अर्थव्यवस्था को क्षति पहुंचा रहे हैं। क्योंकि हमारे बजट का 80-90 प्रतिशत हिस्सा सरकारी कर्मचारियों के वेतन पर ही खर्च हो जाता है। दुनिया के अधिकतर देशों में सरकारी कर्मचारियों का वेतन देश की औसत आय से एक या दो गुना अधिक है, किन्तु हमारे यहां यह पांच गुना अधिक है। इसलिए सरकार इन सब चीजों पर ध्यान दे और घरेलू निवेश बढ़ाए तो 8 प्रतिशत विकास दर पाना नामुमकिन नहीं है।NEWS
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