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गुरुद्वारों में अरदास के समय गुरु ग्रंथसाहिब, दसों गुरुओं, चारों गुरुपुत्रों के साथ-साथ चालीस मुक्तों को भी श्रद्धापूर्वक याद किया जाता है। आखिर कौन हैं ये चालीस मुक्ते? असल में ये चालीस मुक्ते वे योद्धा हैं जो किसी कारण युद्ध के दौरान श्री गुरु गोबिन्द सिंह का साथ छोड़ गए, परन्तु घर पहुंचने पर उनकी पत्नियों व परिवार के सदस्यों ने इन्हें ऐसी फटकार लगाई कि उनकी अन्तरात्मा गुरु की याद में बिलख उठी। फटकार के बाद चालीसों सैनिक गुरुजी की शरण में लौट आए और हमलावर मुगल सेना का भीषण संहार किया। देश-धर्म के प्रति इनके इस समर्पण को देखकर गुरु गोबिन्द सिंह ने इनको माफ कर दिया (अर्थात मुक्त कर दिया) इतिहास में यही चालीस वीर चालीस मुक्ते कहलाए।सन् 1704 में चमकौर की गढ़ी के गौरवशाली प्रकरण के बाद गुरु गोबिन्द सिंह जी माछीवाड़ा के जंगलों में आ गए। वहां मुगल सेना उनका पीछा कर रही थी। 1705 में सिख व मुगलों का मुक्त्तसर के पास भयंकर संघर्ष हुआ। यहीं पर जत्थेदार महान सिंह के नेतृत्व में माझा इलाके के चालीस सिख सैनिक रोज-रोज की मुसीबतों से घबराकर गुरु जी का साथ छोड़ गए। जाते समय महान सिंह गुरुजी को यह पत्र भी लिख गये- “आज से न तो वे उनके गुरु हैं और न ही हम सिख हैं।” इतिहास में इस पत्र को “बेदावा” के नाम से जाना जाता है। जब ये चालीस सिख अपने घर पहुंचे तो घर की महिलाओं ने इनको धिक्कारते हुए कहा कि इस मुसीबत की घड़ी में वे गुरुजी को अकेले कैसे छोड़ आए। और महिलाओं ने भगोड़े सैनिकों को चूड़ियां भेंट कर घर का कामकाज करने को कहा। वे खुद मुगलों की जिहादी फौज से लोहा लेने की तैयारी करने लगीं। पत्नियों-माताओं की फटकार ने इन सैनिकों की आंखें खोल दीं और वे उल्टे पांव रणक्षेत्र की ओर लौट गए। बताया जाता है कि ये चालीस सैनिक मुगल सेना पर काल बन कर टूट पड़े और हमलावर मुगलों के पांव उखाड़ दिए। एक ऊंचे स्थान पर बैठे गुरु गोबिन्द सिंह अपनी सेना की इस बहादुरी को देख रहे थे कि इसी दौरान उनकी नजर रणक्षेत्र में अंतिम सांसें ले रहे योद्धा जत्थेदार महान सिंह पर पड़ी। गुरु ने अपने घायल शिष्य का सर गोद में रख लिया और सहलाने लगे। गुरुजी ने इन चालीस सिखों को माफ कर दिया और महान सिंह से कुछ मांगने को कहा। घायल महान सिंह ने गुरुजी को वह “बेदावा” फाड़ने को कहा जो वे जाते समय लिख कर दे गए थे। गुरुजी ने अपने प्रिय शिष्य की इच्छा पूरी की और उनको पाप मुक्त कर दिया। इतिहास में ये चालीस शहीद चालीस मुक्ते कहलाए और इनकी मुक्ति का स्थान मुक्त्तसर कहा जाने लगा।NEWS
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