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जिन्होंने 25 प्रतिशत आरक्षण लिया हुआ हो

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Oct 4, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Oct 2005 00:00:00

उन्हें अब और कितना चाहिए?मूर्ति मुथुस्वामी(लेखक अमरीका में परमाणु वैज्ञानिक हैं तथा इंडियन-अमेरिकन इंटेलेक्चुअल फोरम, न्यूयार्क के निदेशक हैं)वस्तुत: ईमानदारी और मानवीयता के साथ सोचा जाए तो भारतीय मुसलमानों को कितने प्रतिशत आरक्षण दिया जाना चाहिए? इसका उत्तर है- शून्य। वास्तविकता यह है कि मुसलमान पहले ही 25 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त कर चुके हैं।सन् 1947 में, भारतीय मुसलमानों ने अपने लिए लगभग सभी गैर-मुस्लिमों का इस भू-भाग से सफाया कर दक्षिण एशिया के 25 प्रतिशत भूभाग पर कब्जा कर लिया है। इसके साथ ही मुसलमान शेष 75 प्रतिशत हिस्से में भी अवसरों की प्रतिस्पद्र्धा में भाग लेने के लिए स्वतंत्र हैं। हिन्दुओं या गैर-मुसलमानों ने अनुचित रूप से मुसलमानों के हक में अपने हिस्से के 25 प्रतिशत अवसरों (स्थान) को गंवा दिया है। अब मुसलमानों के लिए अतिरिक्त आरक्षण गैर-मुस्लिमों (हिन्दुओं) के अवसरों में और भी कमी करेगा। वास्तव में विभाजन के कारण और तत्पश्चात् मुस्लिम क्षेत्रों में गैर-मुसलमानों के पूर्णतया सफाए को देखते व समझते हुए, अब भारत में शत-प्रतिशत नौकरियों को गैर-मुसलमानों के लिए आरक्षित कर दिया जाना चाहिए।भारत में मुस्लिम बहुल वाले राज्य कश्मीर में चल रहे जिहाद जैसा कोई उदाहरण अन्यत्र नहीं है। कश्मीर सहित अनेक उदाहरणों से अधिकांश मुसलमानों की सर चढ़ती गर्म स्वभाव वाली मानसिकता का पता चलता है। आधुनिक मुसलमानों की गर्म मिजाजी मानसिकता के सन्दर्भ में जानकारी भी मुस्लिम स्वामित्व वाले एक अखबार “मिड-डे” में छपे एक सर्वेक्षण से प्राप्त होती है।सर्वेक्षण के अनुसार, मुम्बई के 90 प्रतिशत मुसलमानों ने, जो अति प्रगतिशील माने जाते हैं, शरीयत कानून को वरीयता देते हुए धर्मनिरपेक्ष समान नागरिक संहिता की आवश्यकता को सिरे से नकार दिया, साथ ही उन्होंने बहुपत्नी प्रथा, तीन-तलाक की अवधारणा और इस्लाम में महिलाओं व पुरुषों में असमानता को पुष्ट करने वाले उन विरासत-कानूनों का पक्ष लिया जिनमें महिलाओं को पुरुषों की सम्पत्ति का दर्जा दिया गया है। अधिकांश युवा, सुशिक्षित मुसलमान पुरुषों और महिलाओं का दृष्टिकोण इन मामलों में लगभग एक समान है। इस में मुसलमान पुरुषों और महिलाओं की सहभागिता का प्रतिशत भी बराबर है।मुसलमानों की उच्च प्रजनन दर तथा बंगलादेश से भीषण घुसपैठ से मुस्लिम जनसंख्या में वृद्धि भारत की अर्थव्यवस्था को तहस-नहस कर देगी। उसे देखकर मुसलमानों के लिए नौकरियों में आरक्षण की मांग का निहितार्थ समझा जा सकता है। मुसलमानों को आरक्षण देने से जिहादियों के दो लक्ष्यों की पूर्ति आसानी से हो जायेगी- 1. योग्य हिन्दू नौकरियों से बाहर रहेंगे, धीरे-धीरे गरीब हो जाएंगे 2. अयोग्य मुसलमान नौकरी तो पाएंगे ही, आर्थिक रूप से समृद्ध भी होंगे। भारत को नष्ट करने के लिए यह जरूरी है कि आरक्षण द्वारा हिन्दुओं को उनके हिस्से के धन से वंचित किया जाए। इसलिए मुसलमानों के लिए आरक्षण का क्रियान्वयन किसी भी दशा में जिहाद के क्रियान्वयन से कम नहीं है। कश्मीर में चल रहा इस्लाम समर्थित जिहाद केन्द्र सरकार के अनुदानों एवं सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली अन्य आर्थिक सुविधाओं को मुसलमानों तक पहुंचाने में सहायक सिद्ध हुआ है। इस प्रकार देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले हिन्दुओं के हिस्से में जो धन पहुंचता, उस धन का मार्ग अवरुद्ध कर दिया गया है। इस कारण गरीबी से कुंठित ग्रामीण हिन्दुओं का झुकाव नक्सली आन्दोलन की तरफ तीव्रता से हो रहा है।आज पाकिस्तान, बंगलादेश और कश्मीर में गैर-मुसलमानों की क्या दशा है? इन क्षेत्रों से गैर-मुस्लिमों को या तो बाहर कर दिया गया, मुसलमान बनने को बाध्य किया गया या उनकी हत्या नहीं कर दी गई तो डरे हुए दूसरे दर्जे के नागरिक बना दिए गए। ये हिन्दू सेकुलर थे या माक्र्सवादी, इससे इस कार्य में संलग्न जिहादियों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। अत:, सभी दलों के हिन्दू राजनीतिज्ञों को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि हिंसक मानसिकता का तुष्टीकरण कर प्राप्त की जाने वाली विजय वस्तुत: उनके लिए विजय नहीं है। निश्चित रूप से, मुसलमानों का तुष्टीकरण कर प्राप्त की गई तात्कालिक सफलता गैर-मुसलमान भारतीयों के बच्चों के दीर्घकालिक भविष्य के लिए खतरनाक है। स्वयं को “पंथनिरपेक्ष” कहने वाले गैर-मुसलमानों की पीढ़ियों के लिए भी यह उतना ही सच है जितना अन्य के संदर्भ में। राष्ट्रवादी हिन्दुओं को अपने देश की नौकरियों में, सुरक्षा बलों में मुसलमानों को आरक्षण दिए जाने व अन्य उल्लिखित खतरों के विरुद्ध अब पूरी शक्ति से लड़ाई लड़नी चाहिए। मेरा स्पष्ट मानना है कि यदि उचित पद्धति से ये बातें हिन्दुओं को बताई गईं तो हिन्दू समाज एकजुट हो जाएगा। ये मुद्दे आसान नहीं बल्कि हिन्दुओं के लिए जीवन-मरण का सवाल बन चुके हैं। परन्तु मुख्य प्रश्न यह है कि क्या भारत के राष्ट्रवादी संगठन और लोग इन विचारों को दृढ़ता से समाज को शीघ्र व सहज रूप से समझाकर एक भयानक विपत्ति से भारतीयों को राहत दिला सकेंगे?NEWS

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