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कला की कीमत दस पैसे?रजत जयंती वर्ष-2006 में संस्कार भारती मनाएगी सांस्कृतिक नवचेतना वर्ष”दस पैसे के सिक्के भले ही चलन से बाहर हो गए हों लेकिन केन्द्र सरकार ने कला और संस्कृति के क्षेत्र में अभी भी प्रति व्यक्ति के हिसाब से बजट दस पैसे ही निर्धारित कर रखा है। यह अत्यंत दुर्भाग्य की बात है कि सांस्कृतिक विविधता वाले इस देश की अपनी कोई सांस्कृतिक नीति नहीं है।” यह कहना है संस्कार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. शैलेन्द्रनाथ श्रीवास्तव का। गत दिनों डा. श्रीवास्तव ने कानपुर में संस्कार भारती की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक में संवाददाताओं के समक्ष उपरोक्त पीड़ा व्यक्त की।उन्होंने विभिन्न राजनीतिक दलों को आरोपित करते हुए कहा कि वे केवल रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा को ही मुख्य जरूरत मानते हैं और संस्कृति-कला की उपेक्षा करते हैं। परिणामत: माइकल जैक्सन सरीखे विदेशी आकर नृत्य-कला के नाम पर लाखों रुपए लूटते हैं, ऊपर से भारतीय संस्कृति का माखौल उड़ाते हैं। डा. श्रीवास्तव ने देशी कलाकारों की आर्थिक जरूरतों की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि अधिकांश कलाकार जीवनभर साधनारत रहते हैं, इस कारण उनका परिवार आर्थिक दृष्टि से विपन्न हो जाता है। जरूरत इस बात की है कि सरकार कलाकारों की ओर समुचित ध्यान दे और सांस्कृतिक नीति का निर्धारण कर इस मद के लिए बजट में कम से कम एक रुपए प्रति व्यक्ति निर्धारित करे।बैठक में संस्कार भारती ने अपने रजत जयन्ती वर्ष, जिसे वह सांस्कृतिक नवचेतना वर्ष के रूप में मनायेगी, के कार्यक्रमों पर भी विचार-विमर्श किया।NEWS
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