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बच्चों की जिंदगी में रोशनीतीन कार्यकर्ताओं ने एक जगह से मलबा हटाकर एक छोटा-सा कामचलाऊ स्कूल बनाया। स्कूल में 20 बच्चों को अंग्रेजी बोलना सिखाया जाने लगा। योजना सफल हो गई और इसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैलने लगी। अब इस स्कूल में 35 वेतनभोगी शिक्षक एवं कर्मचारी और 400 से ज्यादा मानसिक रूप से विकलांग बच्चे हैं। दक्षिण दिल्ली की गिरिनगर झुग्गी बस्ती में स्थित इस स्कूल को वी हेल्प यू (व्हाइ) नामक एक संस्था चलाती है। उल्लेखनीय है कि व्हाइ के सभी कर्मचारी व बच्चे गिरिनगर झुग्गी बस्ती के ही रहने वाले हैं।रानी भारद्वाज शुरू में शिक्षा पाने के लिए इस संस्था में शामिल हुईं थी। आज वह संस्था की सबसे ज्यादा वेतन पाने वाली कर्मचारी हैं। बस्ती का ही एक युवक अपने बेटे के ऑपरेशन के लिए सब कुछ बेच चुका था, फिर भी खर्च पूरा नहीं हो पाया। लेकिन व्वाई ने उसकी मदद की। अब वह संस्था की एक योजना “प्रोजेक्ट व्हाई ऑन व्हील्स” का काम देख रहा है। उत्पल शिशु था, जब वह बुरी तरह जल गया था। उसकी जान बचने की संभावना बहुत कम थी, क्योंकि जरूरी आपरेशन का खर्च उसके मां-बाप वहन नहीं कर सकते थे। लेकिन उत्पल की जिंदगी में यह संस्था रोशनी लेकर आई। इसने उत्पल के इलाज के लिए पैसा जमा किया।हालांकि व्हाइ के लिए उत्पल की कहानी कोई नई नहीं है। इसने कई जरूरतमंद बच्चों की जिंदगी में रोशनी बिखेरी है। यह सब संभव हो रहा है अनुराधा बक्षी की बदौलत। बक्षी ने पांच साल पूर्व मानसिक रूप से विकलांग भिखारिन लड़की मनु के पुनर्वास के लिए इस संस्था का गठन किया था। यह लड़की उन्हें गिरिनगर झुग्गी बस्ती में ही मिली थी। अनुराधा बक्षी की बेटी शमिका बक्षी के अनुसार यह संस्था सिर्फ लोगों को स्वाभिमान पैदा करने का तरीका सिखाती है।(स्रोत – इंडिया टुडे, 21 मार्च, 2005)NEWS
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