|
सुनो कहानीहरिणी और रानीचन्दनपुर के राजा विक्रम सेन की रानी चारुलता मां बनने वाली थी। इसी बीच वह एक दिन अपने राज्य की सीमाओं का निरीक्षण करने चला गया। लौटते समय रास्ते में एक घना जंगल पड़ता था। विक्रम सेन अपने अंग-रक्षकों के साथ राज्य की ओर बढ़ रहा था। थोड़ी दूरी पर उसने एक हरिणी को कुलांचें भरते देखा। राजा उसके सौंदर्य पर मुग्ध हो गया। पर हरिणी झाड़ियों के पीछे चल गई।वह बड़ा निराश हुआ और भारी मन से राजधानी लौटा। यहां भी वह सदैव हरिणी की याद में खोया रहता था। रानी के प्रति व्यवहार भी बदल गया था।एक दिन रानी ने राजवैद्य को बुलावा भेजा। काफी प्रतीक्षा के बाद रानी ने पुन: बुलावा भेजा। इस बार उन्होंने कहलवा दिया कि राजा की आशा के बिना वे नहीं आ सकते। रानी इस उत्तर को सुनकर हैरान रह गई। उसने कुछ सोच-विचार कर महामंत्री को बुलवाया। रानी ने उसे राजवैद्य का संदेश सुनाते हुए राजा के व्यवहार में आए परिवर्तन से भी अवगत कराया। रानी की बात सुनकर महामंत्री भी सोच में डूब गए। रानी को धैर्य बंधा कर, सच्चाई जानने के लिए वे राजा के अंगरक्षकों के पास गए। यात्रा के दौरान होने वाली सभी घटनाओं की जानकारी प्राप्त की। महामंत्री को समझते देर न लगी। उसने लौटकर रानी को हरिणी की घटना सुनाई। दोनों ने सोच-विचार कर, महल के बगीचे के सभी मालियों को, पेड़-पौधों की देखभाल न करने का आदेश दिया।दो-तीन दिन में ही बगीचे में सूखे पत्तों का ढेर लग गया। पौधे पानी के बिना सूखने लगे। पके हुए फल नीचे गिरकर दुर्गन्ध फैलाने लगे। एक दिन प्रात: भ्रमण पर निकले राजा ने बगीचे की दुर्दशा देखकर मुख्य माली को बुलाकर पूछा कि यह स्थिति क्यों है? उसने विनयपूर्वक बताया, “महाराज, क्षमा करें। महामंत्री जी की आज्ञा से सभी मालियों को नौकरी से निकाल दिया गया है।” “महामंत्री ने ऐसा आदेश क्यों दिया?” राजा ने हैरानी से पूछा। “महाराज, मैं महामंत्री जी से पूछने की धृष्टता कैसे कर सकता था” मुख्य माली ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया। राजा ने उसी समय महामंत्री से पूछा। महामंत्री ने कहा, “राजन्! यदि जंगल के पड़े-पौधे अपने-आप बढ़ सकते हैं, बिना किसी देखभाल के फल-फूल सकते हैं तो इस बगीचे में इतने मालियों और खाद-पानी की क्या आवश्यकता है?” महामंत्री की बात सुनकर राजा क्रोधित हो गए। उन्होंने कहा, “जंगल, जंगल होता है। यह हमारे राजमहल का बगीचा है। जंगल और राजमहल के बगीचे में कैसी समानता? इन पेड़-पौधों को हमने स्वयं लगवाया है। इनकी विशेष देखभाल तो होनी ही चाहिए।” “क्षमा करें, महाराज! यदि जंगल और बगीचे में कोई समानता नहीं, तो भला जंगल की हरिणी और राजमहल की रानी में समानता कैसी?” महामंत्री ने चतुराईपूर्ण तर्क दिया। राजा ने कुछ सोचकर हंसते हुए कहा, “महामंत्री! हम तुम्हारी बुद्धिमता और चातुर्य से प्रसन्न हुए। यह लो अपना इनाम।” “महाराज की जय हो।” महामंत्री ने राजा से मोतियों का हार लेते हुए कहा। “महामंत्री! हम महारानी की कुशल-क्षेम पूछने राजमहल जा रहे हैं। आप शीघ्र राजवैद्य जी को बुला लाएं।” जो आज्ञा महाराज” कहकर महामंत्री राजवैद्य को बुलाने चल दिए।सुलक्षणा शर्माबूझो तो जानेंप्यारे बच्चो! हमें पता है कि तुम होशियार हो, लेकिन कितने? तुम्हारे भरत भैया यह जानना चाहते हैं। तो फिर देरी कैसी?झटपट इस पहेली का उत्तर तो दो। भरत भैया हर सप्ताह ऐसी ही एक रोचक पहेली पूछते रहेंगे। इस सप्ताह की पहेली है-उदय सिंह की रक्षा हेतु, निज चंदन को वारा, क्रुद्ध कुटिल बनवीर का चला उस पर खड्ग दुधारा।थी वो केवल धाय मगर है माताओं से बढ़कर, धन्य-धन्य हम हो जाते हैं उसको शीश झुकाकर।।उत्तर: (पन्ना धाय)NEWS
टिप्पणियाँ