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वर्ष 9, अंक 39, सं. 2013 वि., 23 अप्रैल, 1956, मूल्य 3आनेसम्पादक : गिरीश चन्द्र मिश्रप्रकाशक – श्री राधेश्याम कपूर, राष्ट्रधर्म कार्यालय, सदर बाजार, लखनऊस्वतंत्र नागा-प्रदेश की घोषणा?विद्रोहियों द्वारा दो ओवरसियरों पर मुकदमा,पर्वतीय प्रदेश में पुन: प्रवेश न करने का आदेश(निज प्रतिनिधि द्वारा)शिलांग: असम रेजीमेंट से भागे हुए नागा सैनिक नागा विद्रोहियों को शस्त्रास्त्रों का प्रशिक्षण प्रदान कर रहे हैं, इस प्रकार का रहस्योद्घाटन असम सरकार के दो ओवरसियरों ने किया है। इन ओवरसियरों को विद्रोही नागाओं द्वारा बन्दी बनाकर 15 दिन तक अपने कब्जे में रखा गया था। ओवरसियरों ने बताया है कि उक्त दिनों वे नागा पर्वतीय क्षेत्र के एक घने जंगल में काम करते थे। यकायक उस स्थान पर नागा विद्रोहियों का आक्रमण हुआ, जिनका नेतृत्व एक सैनिक वर्दीधारी व्यक्ति कर रहा था।बाद में नागा सरदार द्वारा उन्हें तीन नागाओं के पहरे में कागज-पत्रों के सहित उस स्थान से 35 मील दूर भेजा गया। घने जंगलों और ऊंचे-नीचे पहाड़ों में चलने में ओवरसियरों को अत्यंत कठिनाई का सामना करना पड़ा, किन्तु आज्ञापालन करने के अतिरिक्त उनके पास अन्य कोई चारा नहीं था।जनसंघ की भारी विजय,अब्दुल शमी को पद त्यागना पड़ा(निज प्रतिनिधि द्वारा)चन्दौसी : स्थानीय नगरपालिका के गैर-अनिवार्य शिक्षा के चेयरमैन श्री अब्दुल शमी को उनके पद से हटवाने के लिए जनसंघ के दो कार्यकर्ताओं ने जो भूख हड़ताल कर रखी थी वह सफल हो गई है। श्री अब्दुल शमी को उक्त पद से हटवाने के लिए गत 1 मास से जो एक जन-आन्दोलन जनसंघ के नेतृत्व में पूर्ण वेग से चल रहा था, जब सर्व वैधानिक उपायों से सफल न हो सका तो दि. 13 अप्रैल से श्री राजनारायण शर्मा ने तथा दि. 15 अप्रैल से स्थानीय जनसंघ के मंत्री श्री जगदीश जी ने भूख हड़ताल आरम्भ की। परिणामत: यह आन्दोलन बड़े वेग से चल पड़ा। आर्य समाज, श्री सनातन धर्म सभा, नगरपालिका का विरोधी दल तथा नगर के कुछ गण्यमान्य सज्जनों ने समस्या को सुलझाने के लिए विशेष दौड़-धूप की और परिणामत: 18 ता.को दोपहर चेयरमैन महोदय को बाध्य होकर बोर्ड की एक असाधारण मीटिंग बुलानी पड़ी और सभी उपसमितियों के अध्यक्षों ने, जिनमें अब्दुल शमी साहब भी सम्मिलित थे, अपने त्यागपत्र दे दिए, जो सर्व सम्मति से स्वीकार कर लिए गए।कश्मीर समस्या परपं. नेहरू का बेतुका प्रस्तावगत 13 अप्रैल को दिल्ली कांग्रेस कमेटी द्वारा आयोजित विशाल सार्वजनिक सभा में भाषण करते हुए प्रधानमंत्री श्री नेहरू ने इसे स्वीकार कर लिया है, “मैंने पाकिस्तानी नेताओं के सामने सुझाव रखा था कि वर्तमान युद्ध-विराम रेखा के आधार पर कश्मीर की समस्या उस क्षेत्र में शांति स्थापित करने की दृष्टि से आपसी वार्ता के पश्चात् हल कर ली जाए।” प्रधानमंत्री के कथन के औचित्य के सम्बंध में कई प्रश्न उपस्थित होना स्वाभाविक हैं। सर्वप्रथम प्रश्न है कि इस प्रकार का प्रस्ताव, जिसका प्रभाव समस्त राष्ट्र की एकता, भावना तथा सुरक्षा पर पड़ना अनिवार्य है, अब तक भारत की जनता और विशेष रूप से जनता के प्रतिनिधि संसद-सदस्यों से गुप्त क्यों रखा गया? क्या इसलिए कि वह निज अन्त:करण में समझते थे कि कोई भी देशवासी उस प्रकार के अपमानजनक तथा घातक प्रस्ताव को स्वीकार न करेगा तथा उसका चतुर्दिक तीव्र विरोध होगा? द्वितीय प्रश्न उठता है, इस प्रस्ताव की बात को आज दोहराने की क्या आवश्यकता पड़ गई? एक ओर जनमतसंग्रह के प्रश्न को मूलत: अस्वीकृत करना और दूसरी ओर इस प्रस्ताव को रखा जाना। हम समझते हैं, नेहरूजी ने अपनी निष्पक्षता को प्रमाणित करने तथा विश्वशान्ति के प्रति अपनी अगाध श्रद्धा प्रदर्शित करने के उत्साह में इस प्रस्ताव का उल्लेख किया है। वह दिखाना चाहते हैं कि हम तो हानि सहन करके भी समझौता करना चाहते थे, किन्तु पाकिस्तान उस शर्त पर भी तैयार न हो सका।(सम्पादकीय)NEWS
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