|
लखनऊ में मुहर्रम के दिनतनावशिया और सुन्नी समुदायों में संघर्ष और आगजनी-लखनऊ प्रतिनिधिदंगे के बाद लखनऊ के पुराने शहर में छोटा इमामबाड़ा के पास गश्त लगाती हुई पुलिसउत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव के राज में विधायक की हत्या, थानों में सपा कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी, इटावा से लेकर चित्रकूट तक के बीहड़ों में रोज-रोज के अपहरणों की जघन्य घटनाओं के बीच शिया-सुन्नी संघर्ष से लखनऊ शहर दहल उठा। रविवार, 20 फरवरी को झगड़ा हुआ या जान-बूझकर करा दिया गया, यह जांच का विषय है। यही नहीं, मुहर्रम के जुलूसों को लेकर ओरैया, बरेली, कौशांबी व मेरठ में भी हिंसा भड़की।सच क्या है यह तो शासन के आला अफसर जानें या सपा का आलाकमान, पर तथ्य यही है कि 27 साल बाद राजधानी लखनऊ में फिर एक बार शिया-सुन्नी दंगे भड़के जिसमें तीन लोगों की जान चली गई। डेढ़ दर्जन लोग बुरी तरह घायल हो गए। आखिर इससे पूर्व भी लगातार छह साल से मुहर्रम के दिन शियाओं के द्वारा ताजिए के जुलूस निकाले जाते रहे, पर कहीं कुछ अशोभनीय नहीं हुआ था।दंगे कैसे भड़के, क्यों भड़के, इसकी चर्चा से पूर्व यह बताना प्रासंगिक होगा कि शिया जुलूस को लेकर 1977 में भड़के, भयंकर दंगे के बाद इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। शिया समुदाय के नेता उसके बाद हर सरकार से शांतिपूर्वक जुलूस निकालने की अनुमति मांगते रहे पर सुन्नियों की आक्रामक मानसिकता के डर से किसी भी सेकुलर सरकार ने इसकी इजाजत नहीं दी। हर साल शिया मुहर्रम के मौके पर मन मसोसकर रह जाते। प्रदेश में लम्बे समय तक कांग्रेस की सरकार रही, मुलायम सिंह 1990 में आए, मायावती आयीं पर किसी ने भी उन्हें जुलूस की आज्ञा नहीं दी।भाजपा सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अपने दूसरे कार्यकाल यानी 1998 में शियाओं को दो दशक बाद मुहर्रम के जुलूस की इजाजत दी और उनके कार्यकाल तथा बाद की रामप्रकाश गुप्त व राजनाथ सिंह की सरकार में शांतिपूर्वक जुलूस निकले। कहीं कोई झगड़ा नहीं हुआ। पर जब मुलायम सिंह का राज आया तो सुन्नियों का मनोबल बढ़ा और लगता है उन्होंने इस साल, पहले से ही तय कर लिया था कि शियाओं को इस बार जुलूस नहीं निकालने देंगे।बस, बहाने की तलाश थी। बहाना मुहर्रम के अवसर पर पिछले रविवार को मिल गया। संघर्ष की शुरुआत सुबह ताजिए के जुलूस से हुई। शिया समुदाय के लोग राजधानी के रामगंज क्षेत्र से 12 ताजिए लेकर जुलूस की शक्ल में आगे बढ़ रहे थे। वे जैसे ही हुसैनाबाद स्थित छोटे इमामबाड़े के पास पहुंचे, सुन्नी समुदाय के कई दर्जन लोगों ने आक्रामक मुद्रा में कहा, वे इस रास्ते से जुलूस की शक्ल में न जाएं, यह प्रतिबंधित क्षेत्र हैं। उन्हें किसी भी कीमत पर नहीं जाने दिया जाएगा। थोड़ा विवाद हुआ, जो संघर्ष में बदल गया।देखते ही देखते गोलियां चलने लगीं, तीन लोग तो अपनी जान गवां बैठे और डेढ़ दर्जन लोग घायल हो गए। घायलों में कुछ को ट्रामा सेंटर तो कुछ को बलरामपुर अस्पताल में भर्ती कराया गया। दंगाइयों ने महिलाओं व बच्चों तक को नहीं छोड़ा। काफी देर बाद पुलिस पहुंची, तब तक दंगा व्यापक रूप ले चुका था। इस बीच वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक नवनीत सिकेरा व जिलाधिकारी आराधना शुक्ल भी घटनास्थल पर पहुंचे।इस बीच मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव झारखण्ड का चुनावी दौरा बीच में छोड़कर लखनऊ लौटे पर उनके आने का कोई फायदा नहीं दिखा। कारण, न तो कई दिन बाद तक तनातनी को खत्म किया जा सका और न ही कफ्र्यू हटाया जा सका। उन्होंने मृतकों के आश्रितों को पांच-पांच लाख रुपए की मदद देने की घोषणा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली, पर इस बात का इंतजाम अभी तक नहीं किया गया कि शिया जुलूस निकालें और शांति भी बनी रहे।बहरहाल, इधर दंगा भड़का और उधर राजनीति शुरू हो गई। मुलायम सरकार के मंत्री आजम खां ने संकीर्ण मानसिकता का परिचय देना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि दंगों का कारण अलग पर्सनल ला बोर्ड का गठन किया जाना है। यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि कुछ दिन पूर्व शियाओं की ओर से भी एक अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल ला बोर्र्ड का गठन किया गया था।NEWS
टिप्पणियाँ