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सम्पादकीय

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Feb 1, 2005, 12:00 am IST
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दिंनाक: 01 Feb 2005 00:00:00

पश्येम शरद: शतं, जीवेम शरद: शतं, श्रृणुयाम शरद:शतं, प्र ब्रावाम शरद: शतमदीना: स्याम शरद: शतं भूयश्च शरद: शतात्।हम सौ वर्ष तक देखें, सौ वर्ष तक जीवित रहें, सौ वर्ष तक सुनें, सौ वर्ष तक अच्छी प्रकार बोलें, सौ वर्ष तक पूर्णतया अ-दीन होकर रहें और सौ वर्ष से अधिक भी।-यजुर्वेद (36।24)वाह वाजपेयी!अपने 80वें वसन्त की दस्तक के समय श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में और संसद के बाहर अपनी चिर-परिचित लाजवाब शैली का परिचय देकर आनन्दित कर दिया। रेलमंत्री श्री लालू यादव द्वारा मुकेरियां में हुई भीषण तथा ह्मदयविदारक दुर्घटना की रपट संसद को देने के बजाय बिहार रैली की तैयारी में चले जाने से कुपित अटल जी ने नेतृत्व का गुण दिखाते हुए माहौल कुछ इस तरह बदला कि सत्ता पक्ष को सकपकाते हुए झुकना पड़ा। उसी तरह बाबरी कांड फिर से खोलने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा सी.बी.आई. को लिखी गई चिट्ठी वाले मामले को उन्होंने “न क्षमा न दया” वाले भाव से उठाया। यह सत्य है कि अटल जी अजातशत्रु हैं, लेकिन मर्यादा एवं राष्ट्रीयता के मुद्दे पर उनकी असंदिग्ध भूमिका भी निर्विवादित ही रहती है। शंकराचार्य जी की गिरफ्तारी पर भी वे धरने पर बैठे, साथ में श्री चन्द्रशेखर और श्री वेंकटरमन को भी जोड़ा और पुन: अभी प्रधानमंत्री से राजग प्रतिनिधिमंडल के साथ मिले। वे ऐसे ही मीठे-मीठे, तीखे-तीखे रहें और सौ वसन्त देखें, यह कामना है।मनमोहन ने जो कहाडा.मनमोहन सिंह राजनीतिक मामलों में भले ही कितने कमजोर और बेबस नजर आ रहे हों, लेकिन दो बातें उन्होंने साफ-साफ और ठीक कही हैं। एक तो यह कि बिना वीटो की ताकत लिए सुरक्षा परिषद की सदस्यता का कोई अर्थ नहीं है और भारत ऐसी कोई अपमानजनक स्थिति स्वीकार नहीं करेगा। दु:ख तो इस बात का है कि कोफी अन्नान जैसे महासचिव भी, जिन्हें भारत अपना मित्र मानता रहा, भारत की संवेदनाओं और अधिकार के औचित्य को समझने के बजाय पश्चिम की दादागिरी का साथ निभाते हुए दिखे। ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का यह कहना आश्वस्तिकारक लगा कि न तो हम पाकिस्तान से किसी भी शांतिवार्ता में भारत का नक्शा बदलने की बात मानेंगे और न ही बिना वीटो की ताकत लिए सुरक्षा परिषद् की सदस्यता स्वीकार करेंगे। ठीक है, ऐसे ही टिके रहें तो अच्छी बात है।अहंकार और घड़ी वाला “डी.एम.”चुनाव आयोग ने लालू के महारैला को रुकवाकर एक अहंकारी को आईना दिखाया है। एक बार तो ऐसा लगने लगा था कि इस देश में कानून-व्यवस्था, संविधान और संसद सब इस बड़बोले नेता के सामने चुप हैं। यह व्यक्ति न भाषा की शालीनता जानता है, न संसद की गरिमा। किसी के लिए कभी भी जो मुंह में आए कह देने के लिए चर्चित यह नेता मीडिया में अपनी अभद्रता के कारण ही सुर्खियां पाता है और अब पुन: जीतने की उम्मीद लगाए हुए है। और देखिए उसी व्यक्ति के खास और करीबी कहे जाने वाले पटना के जिलाधिकारी, जो न सिर्फ आडवाणी जी की सभा निहायत अभद्रता के साथ बीच में ही यह कहकर रुकवाने के लिए चर्चित हुए कि चुनाव आयोग के आदेश के अनुसार सभा का वक्त खत्म हो गया है, वही सैद्धान्तिक निष्ठा दिखाने वाले लालू के आगे यूं बिछे-बिछे से रहते हुए रैली के बैनर, पोस्टर और झण्डे आंख मूंदकर लगवाते रहे कि चुनाव आयोग को उन्हें डपटते हुए पूछना पड़ा, “आपने इन सबकी इजाजत कैसे दी?”NEWS

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