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-तरुण विजयअखण्ड प्रवासी शास्त्री जी एक दिन अचानक यूं प्रवास करते हुए अनन्त धाम की ओर चल देंगे, यह किसने सोचा था। सुबह-सुबह रवीन्द्र जी का फोन आया और हठात् मानो सब कुछ ठहर सा गया। जुगल जी से बात हुई। वे भी अवसन्न और आंसुओं में डूबे हुए। बार-बार अब भी यह लग
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