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मेनका गांधी ने खोली दिल्ली सरकार की पोलगोशाला बन्द, कसाईखाना शुरूशीला दीक्षितमेनका गांधीसुविख्यात प्रकृति प्रेमी एवं भाजपा सांसद श्रीमती मेनका गांधी ने बवाना (दिल्ली) स्थित गोशाला की भूमि गऊओं समेत दिल्ली सरकार को वापस लौटा दी है। वे इस गोशाला का संचालन पिछले 10 वर्षों से सफलतापूर्वक करतीं आ रही थीं। श्रीमती मेनका गांधी ने गोशाला लौटाने का निर्णय क्यों लिया, इस विषय पर जितेन्द्र तिवारी ने उनसे जो बातचीत की, उसके मुख्य अंश यहां प्रस्तुत हैं-कब बनी गोशालाजब हम लोगों को 1995 में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मदनलाल खुराना ने गोशाला चलाने के लिए जमीन आवंटित की थी तब उनका कहना था कि दिल्ली में हमेशा 40-50 हजार गोवंश आवारा घूमते हैं, इन्हें नियंत्रित करने के लिए गोशालाओं की आवश्यकता है। इसके लिए गोशालाएं चलाने की अनुमति दी गई तथा प्रत्येक गोशाला को लगभग 50 एकड़ भूमि आवंटित की। धीरे-धीरे इन गोशालाओं में गायों की संख्या बढ़ने लगी। श्री खुराना यह भी समझते थे कि गोशाला चलाने में बहुत खर्च होता है और फिर ये गाएं हमारी निजी तो थी नहीं, दिल्ली से ही एकत्र कर लायी जा रही थीं। इसलिए श्री खुराना ने प्रत्येक गोशाला को चलाने के लिए प्रतिवर्ष 25 लाख रुपए देने का प्रावधान भी किया। पहले वर्ष यह राशि मिली पर खुराना जी के त्यागपत्र देने और श्री साहिबसिंह वर्मा के मुख्यमंत्री बनने पर यह अनुदान रोक दिया गया। फिर मैंने गोशाला चलाने के लिए वर्ष में 2-3 बार धन एकत्र करने का अभियान चलाया, कभी अपनी संस्था के नाम वाली “टी शर्ट” बेची तो कभी चित्र बेचे।दिल्ली की गोशालाएंदिल्ली में छोटी-बड़ी लगभग 45 गोशालाएं हैं। इनमें 26 गोशालाएं ऐसी हैं जिनमें 100 से लेकर 1600 तक गोवंश है। ये सभी गोशालाएं जन-सहयोग से चलती हैं। केवल पांच गोशालाओं को ही दिल्ली सरकार द्वारा भूमि आवंटित की गई। ये हैं- गोपल गोसदन (हरेवली),श्रीकृष्ण गोशाला (सुल्तानपुर डबास), पीपुल्स फाउण्डेशन फार एनिमल (बवाना), गोसदन आचार्य सुशील सुमन (खेड़ा नजफगढ़) और मलिकपुर गांव गोशाला (खानपुर)। श्रीमती मेनका गांधी की संस्था पीपुल्स फाउण्डेशन फार एनिमल द्वारा बवाना में संचालित गोशाला दिल्ली की सबसे बड़ी गोशाला थी किन्तु गत 1 अप्रैल को उन्होंने यह गोशाला दिल्ली सरकार को वापस दे दी। इसी तरह गोपाल गोसदन (हरेवली) को आवंटित 82 एकड़ जमीन में से केवल 15 एकड़ जमीन दी जा रही है। विश्व हिदू परिषद से सम्बद्ध संस्था, “भारतीय गोवंश संरक्षण संवद्र्धन परिषद” द्वारा संचालित इस गोशाला में अभी भी 1500 गोवंश है। पिछले दिनों सरकार ने एक एकड़ जमीन पर 100 गोवंश रखने का तर्क देते हुए इस गोशाला का लाइसेंस इस शर्त पर नवीनीकरण किया है कि अब केवल 15 एकड़ भूमि गोशाला के पास रहेगी। इस प्रकार दिल्ली सरकार ने प्रत्येक गोशाला से जमीन वापस ले ली है।शीला दीक्षित की नीयतश्रीमती शीला दीक्षित जब सरकार में आयीं तो उन्होंने सबसे पहले यही सोचा कि इन गोशालाओं की जमीन को कैसे हड़पा जाए। इसलिए उन्होंने अपने एक कार्यकर्ता के माध्यम से न्यायालय में एक मामला दर्ज करवाया। उस याचिका में कहा गया कि ये गोशाला वाले अमीर बनने के लिए मरी हुई गायों की खाल का व्यापार करते हैं। तब न्यायालय ने एक आयोग गठित कर जांच कराने का आदेश दिया। सब गोशालाओं का निरीक्षण और अध्ययन करने के बाद अपनी रपट में इस आयोग ने कहा कि हमारी संस्था द्वारा बवाना में चलायी जा रही गोशाला देश की सबसे अच्छी गोशालाओं में से एक है। रपट में कहा गया कि एक को छोड़कर सभी गोशालाएं ठीक प्रकार से काम कर रही हैं। इस रपट के बाद न्यायालय ने उस याचिका को यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि यह राजनीति से प्रेरित है।पर, इस निर्णय के एक सप्ताह बाद बिना किसी पूर्व सूचना के दिल्ली नगर निगम के लोगों ने हमारी गोशाला में तोड़-फोड़ मचा दी। पूछने पर बताया गया कि यहां सड़क बनानी है। हालांकि वहां पर सड़क निकालने का कोई अर्थ ही नहीं था, पर जानबूझकर सीधी जा रही सड़क को घुमाकर गोशाला के बीच से गुजारा जा रहा था। सड़क बनाने के नाम पर हमें दी गई कुल जमीन में से 48 एकड़ जमीन पर कब्जा कर लिया गया। लोगों ने इसके विरुद्ध न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। पूरा मामला देखने के बाद अगस्त, 2004 में दिल्ली सरकार को उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि 48 एकड़ जमीन वापस दो और हर्जाने के तौर पर 36 लाख रुपए भी। दिल्ली सरकार मुकदमा हार गई और न्यायालय को लिखकर दिया कि हम 36 लाख रुपए तो नहीं दे सकेंगे पर 48 एकड़ जमीन वापस कर रहे हैं। पर शीला दीक्षित सरकार की नीयत तब भी साफ नहीं थी, इसलिए इस निर्णय के बाद मुझे एक पत्र लिखकर कहा गया कि जांच में आपकी गोशाला में कोई गाय नहीं पायी गई। जब मैंने इसके विरुद्ध कड़ाई से पत्र लिखा तो स्वीकार किया कि हां, वहां 1200 गायें हैं। तब मेरे पास कुल 12 एकड़ जमीन थी और उसमें थीं 1200 गायें और वहीं इन गायों की देखभाल करने वाले तथा चिकित्सक आदि कुल मिलाकर 30 कर्मचारी रहते भी थे।हमने फिर न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और बताया कि न तो सरकार ने वापस ली गई जमीन ही हमें दी है और न ही धन। पर… कानूनी प्रक्रिया लम्बी खिचती जा रही थी।इसी बीच हमें पत्र लिखकर कहा गया कि 1200 गाय कम हैं, कम से कम 3000 गाय होनी चाहिए। एक तरफ तो हमें अनुदान न दिया जाए और उस पर कहा जाए कि 3000 गाय रखो, क्या मतलब था इसका? सरकार की सहायता के बिना हम गोशाला चलाते रहे, 10 साल में 9 करोड़ रुपए खर्च किए और यह धन भूमि के समतलीकरण और भवन निर्माण के अलावा है। मैं श्रीमती शीला दीक्षित से स्वयं मिली और कहा कि 12 एकड़ में 3000 गाय रखना संभव नहीं है। वह गोशाला है कोई मुर्गीखाना नहीं। इस पर उन्होंने कहा कि आप चिन्ता न करें, मैं सब ठीक कर दूंगी। पर उसके बाद पत्र लिखकर हमसे कहा गया कि यदि गोशाला में कोई गाय मर जाती है तो गोशालाकर्मी नहीं बल्कि दिल्ली नगर निगम के कर्मचारी ही उसे उठाएंगे, भले ही वे कितने दिन में ही क्यों न आएं। यह कैसे संभव था? अगर 12 एकड़ में 1200 गायों के बीच कुछ गायें मृत पड़ी रहतीं तो महामारी फैलती और बाकी सब गायें भी मर जातीं। शीला सरकार के इस आदेश से मामला और बिगड़ गया।गोशाला का निर्माण हुए 10 वर्ष हो रहे थे और नियमानुसार हमें अपने “लाइसेंस” का नवीनीकरण कराना था। जब हमने नवीनीकरण के लिए आवेदन किया तो कहा गया कि हमें 3 एकड़ जमीन और वापस दीजिए, क्योंकि यह विवादित है। फिर भी मैं चुप रही। फिर कहा गया कि नवीनीकरण 10 वर्ष बाद नहीं प्रत्येक 2 वर्ष बाद कराना होगा। अब पानी सर से ऊपर हो चुका था इसलिए मैंने गोशाला से हाथ खींच लिये। गोशाला दिल्ली सरकार को वापस दे दी। न उनसे कोई हर्जाना लिया, न ही उसका दावा किया।मृत गायें कहां जाती हैं?दरअसल, शीला दीक्षित ने दिल्ली में मरी हुई गायों को उठाने के लिए एक आदमी को 28 लाख रुपए प्रतिवर्ष का ठेका दे रखा है। वह आदमी अपने 28 लाख रुपए वसूलने के लिए गायों के प्राकृतिक रूप से यहां-वहां मरने की प्रतीक्षा करेगा क्या? फिर उसे 28 लाख रुपए वसूलने के अलावा कुछ 10-20 लाख कमाना भी है। क्या दिल्ली में किसी ने मरी हुई गायों को सड़क पर पड़े देखा है? होता यह है कि उस ठेकेदार का गिरोह रात में गायों को जहर देकर मार देता है और उनका शव रातों-रात उठा लेता है। दिल्लीवासी अपने मोहल्लों में देखें तो एक गाय को 2 हफ्ते से ज्यादा नहीं पाएंगे। उनमें से कुछ को तो पकड़कर नगर निगम वाले दिल्ली की गोशालाओं में भेज देते हैं, बाकी को जहर देकर मार दिया जाता है, ताकि ठेकेदार खाल का व्यापार कर सके। जब से शीला दीक्षित दिल्ली में सत्तारूढ़ हुई हैं तबसे गायों को कसाइयों के हवाले करने में ज्यादा रुचि दिखा रही हैं। यह वे भी जानती हैं, मैं भी।गोशाला या कसाईखानाश्री मदनलाल खुराना ने ये गोशालाएं इसलिए शुरू की थीं कि तब तक कांग्रेसी झूठ बोल रहे थे कि वे दिल्ली में घूमने वाली आवारा गायों को पकड़कर हापुड़ (उ.प्र.) की एक गोशाला में भेज रहे हैं। श्री खुराना की सरकार बनी तब पता चला कि हापुड़ में गोशाला नहीं बल्कि कसाईखाना है और उसका मालिक एक मुसलमान है। कांग्रेसी वर्षों से इस सच्चाई को जानते थे। यह कहा जा रहा था कि दिल्ली से प्रतिदिन 100 गायें हापुड़ की गोशाला में भेजी जा रही थीं। इस हिसाब से वहां कम से कम 25-30 लाख गायें हो जानी चाहिए थीं। पर जांच में पता चला कि वहां गायें ही नहीं हैं, गोशाला भी नहीं है। वहां तो कसाईखाना है।मुझे लगता है कि दिल्ली सरकार की नीयत यही है कि वह गायों को कटवाने से पैसा कमाए। लोग कहते भी हैं कि गाय कटवाने वाले से रिश्वत लेकर ऐसा किया जा रहा है। जो भी हो, सच्चाई सामने आनी ही चाहिए। आखिर मरी हुई गायों को उठाने का ठेका कौन देता है? क्या ठेका लेने वाले के पास इतने संसाधन (गाड़ियां) आदि हैं जो पूरी दिल्ली में मरी हुई गायों को ढूंढकर उठवा सके? वह भी चमड़े का व्यापार करने वाला ठेकेदार? दिल्ली सरकार के लिए गाय के प्रति संवेदनहीनता छोटी बात है, यह तो दुष्टता पर उतर आई है।कांग्रेस का “सेकुलरिज्म”कांग्रेसी केवल गाय का ही नहीं, किसी भी चीज का व्यापार करने के लिए तैयार हैं। उनके लिए कोई भी चीज पवित्र नहीं है। कांग्रेस के लोग “सेकुलरिज्म” का केवल ढोंग करते हैं। इनके “सेकुलरिज्म” का अर्थ है, “सबका बुरा करो।” दंगा कराकर मुसलमानों को डराकर रखो, इसी आधार पर तो बिहार का “सेकुलरिज्म” चल रहा था। यही दिल्ली में हो रहा है। सरदारों को मारो, मुसलमानों को मारो ताकि हर वर्ग डरा रहे। और हिन्दुओं की जिसमें आस्था है, उन्हें तोड़ते जाओ, खत्म करते जाओ। दिल्ली से गोशालाएं खत्म करने के पीछे दो बातें हैं, एक- कांग्रेस को गाय-शाय से कोई मतलब नहीं है, सिर्फ पैसे से मतलब है। और दूसरा- इनको धर्म-शर्म से कोई मतलब नहीं है। शायद से ही इनको हिन्दुस्थान से कोई मतलब है। हमारा देश दुनिया में ऐसा अकेला देश है जिसने पोप के निधन पर तीन दिन का राष्ट्रीय शोक रखा, जबकि हमारे अपने शंकराचार्य जी को जेल में रखा गया। ऐसे लोगों के बारे में क्या कह सकते हैं?NEWS
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