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मानव विज्ञान का नया क्षितिजहो.वे. शेषाद्रिअ.भा. प्रचारक प्रमुख, रा.स्व.संघएडगर केसी अमरीका के प्रतिष्ठित विचारकों में से एक माने जाते हैं। सुप्तावस्था और जाग्रतावस्था के संदर्भ में उनके प्रयोग और विश्लेषण बहुत चर्चित रहे हैं। उन्हीं के विचारों को संकलित करके लेखिका जीना सेर्मीनारा ने “मैनी मेन्शंस” (अनेक महल) नामक वृहत् पुस्तक की रचना की है। रा.स्व.संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख श्री हो.वे.शेषाद्रि ने इसी पुस्तक के महत्वपूर्ण अंशों के आधार पर एक लेखमाला तैयार की है- एडगर केसी: अनेक महल। यहां प्रस्तुत है उस लेखमाला की दूसरी कड़ी। सं.केसी की ख्याति सर्वत्र फैलने लगी। पत्र-पत्रिकाएं भी उसकी अद्भुत क्षमताओं का वर्णन करने लगीं। वैज्ञानिक आश्चर्यचकित हो गए। शरीर-शास्त्र का ज्ञान न होते हुए भी केसी तांत्रिक शब्दों को सहजता से बोल सकता था। उसकी वाक्य रचना भी सुन्दर और मार्मिक थी। चेतना लौटने पर अपनी बातें सुनकर वह दंग रह जाता था। उसके द्वारा बताई दवा, पथ्य, व्यायामों से अच्छे होने वाले रोगियों की संख्या हजारों तक हो गई। मनोविज्ञानी आए और उन्होंने केसी की सुप्तावस्था का गहराई से परीक्षण किया। उसकी चिकित्सा से लाभान्वित रोगियों से उन्होंने सूक्ष्म ढंग से पूछताछ की। अन्त में केसी की प्रामाणिकता, सरलता और अद्भुत सुप्त-सामथ्र्य को स्वीकार कर लिया।विज्ञान को नई “हिन्दू दृष्टि”लेकिन केसी की इस चमत्कारिक क्षमता को प्रकट करने वाला “आर्थर ल्यामर्स” था जिसने केसी की सुप्तावस्था में अपनी (ल्यामर्स की) जन्मकुण्डली का सारा विवरण बताने के लिए अक्तूबर, 1923 में सूचना दी। केसी के मुख से एक विचित्र उद्गार निकला, कि “यह व्यक्ति कभी संन्यासी था।” यह सुनते ही मानो ल्यामर्स के शरीर में विद्युत का संचार हो गया। पुनर्जन्म के सिद्धान्त के लिए एक प्रमाण हो सकता है क्या? यह विचार उनके मन में बिजली की तरह आकर चला गया। ऐसे क्रांतिकारक शोध के परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं? धर्म, दर्शन, मनोविज्ञान के आज के सिद्धान्तों को यह किस तरह एक नई दिशा दे सकता है? ऐसी संभावनाओं का वह चिन्तन करने लगा।वहां से मानव ज्ञान की खिड़की खुल गई और इसके प्रकाश से विज्ञान तथा आध्यात्मिक सत्य को जानने का नया अवसर प्राप्त हुआ। हम वैज्ञानिक विधानों पर विश्वास करते हैं, धर्म, अध्यात्म जैसे विषयों पर नहीं, ऐसा कहने वालों के लिए भी उसने मानव से सम्बंधित ज्ञान के नए क्षितिज को उजागर कर दिया। उनके पूर्वाग्रहों को तिलाञ्जलि देने योग्य विज्ञाननिष्ठ दस्तावेजों को प्रस्तुत किया। मानव के अन्त:व्यक्तित्व को स्पष्ट रूप से दर्शाने वाला वह अकाट्य प्रमाण बन गया। मानव के सुख की प्राप्ति के मार्ग पर वह एक दीप स्तम्भ की तरह खड़ा हो गया, जिससे न सुलझने वाले कुछ मूलभूत प्रश्नों के उत्तर पाश्चात्य चिंतकों को प्राप्त हुए और मुख्यत: हिन्दू धर्म के मूलभूत सिद्धान्त का वह ज्वलंत साक्ष्य बन गया। यही है “पुनर्जन्म” और “कर्म” का सिद्धान्त।अर्थपूर्ण शीर्षककेसी के पास कुछ प्रत्यक्ष रूप में आने वालों से ज्यादा विदेशी थे। आशुलिपिक (स्टेनोग्राफर) “ग्लेडिस डेविस” नामक महिला केसी के कथनों को लिख लेती थीं। केसी ने 43 वर्ष तक लगभग 30,000 कथनों को व्यक्त किया, उनमें से जन्मांतर के वृतान्त बताने वालों की संख्या लगभग 2,500 थी। उनका और उनसे लाभान्वित हुए लोगों के विचार मंथन का नवनीत ग्रंथ है “अनेक महल”। एक शरीर माने एक महल, एक के बाद एक-अनेक महलों में जीव निवास करता है; किसी एक का जीवन वृतांत इस शरीर और जन्म का तो है, किन्तु इसके पीछे के जन्मों की भी यह अखण्ड कथा है। केवल एक “महल” में वास्तव्य इतना ही नहीं जितना अनेक महलों में होता है। इस प्रकार आगे भी रहने के लिए कई महल हैं- इसलिए ग्रंथ का सार्थक नाम है- “अनेक महल”। मनोविज्ञानी जीना सेर्मीनारा इसकी लेखिका हैं। इन्होंने केसी के हजारों उद्गारों में से कुछ चुनकर समग्र जीवन दर्शन के रूप में प्रस्तुत किया है। मानव के सुप्तज्ञान के समुद्रतल से मोती और रत्नों को केसी बाहर लाया तथा उन्हें कलात्मक रूप से लेखिका ने माला में पिरोया है।(जारी)NEWS
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