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देश को संभालेगा कौनपढ़े-लिखे या “शिक्षित”40साल पहले दिल्ली की एक गुदगुदाती यादगार के रूप में मुझे पड़ोस का एक झगड़ा ध्यान में आ रहा है। दो महिलाएं आपस में जोर-शोर से झगड़ रही थीं और तर्क-वितर्क बढ़ने के साथ-साथ उनकी आवाज भी ऊंची होती जा रही थी। अंतत: उनमें से एक ने कहा, “तुम हमारे साथ ऐसा बर्ताव कैसे कर सकती हो! जानती नहीं, हम पढ़े-लिखे लोग हैं!” ये जो अंत के चार शब्द हैं, वे रह-रहकर सुनाई देते रहे हैं। (अजीब बात है, बाकी सब झगड़ा हिन्दी में चलता रहा और यही चार शब्द अंग्रेजी में बोले जाने जरूरी थे।)मेरे जीवन के शुरुआती साल केरल के एक छोटे से गांव में गुजरे। गांव के सबसे नजदीक का बड़ा नगर एर्नाकुलम भी उस समय कमोबेश अलसाया-सा नगर हुआ करता था। लेकिन मुझे लगता है कि जहां तक शिक्षा की बात है तो हम केरल वालों ने ही शेष भारत को रास्ता दिखाया है और मेरी खुद की पीढ़ी को कुछ बेहतरीन शिक्षकों से पढ़ने का सौभाग्य मिला है। (मेरे गांव के हाईस्कूल के प्रधानाचार्य थे हमारे बड़े आदरणीय और चहेते “अब्राहम मास्टर”। वे इतने अच्छे इंसान थे कि कई दशक बाद वे आंध्र प्रदेश के राज्यपाल बने थे।) लेकिन भले हमने अपनी स्कूली पढ़ाई कितनी ही गंभीरता से पूरी की- और यकीन मानिए, हमने इसे बहुत गंभीरता से किया था- दिल्ली वालों की तरह खुद के “पढ़े-लिखे लोग” होने का दंभ कभी नहीं भरा। शिक्षा, असल में अच्छी शिक्षा इतनी सुलभ थी कि इसका लाभ न उठाने का किसी कि पास कोई बहाना नहीं था। इसलिए “पढ़े-लिखे लोग” होना मामूली बात ही थी।मेरे स्कूली दिनों के बाद से केरल की साक्षरता दर काफी बढ़ चुकी है। बहरहाल, मुझे कभी-कभी आश्चर्य होता है कि कहीं हमने महज “साक्षरता” को वास्तविक “शिक्षा” के रूप में देखना तो नहीं शुरू कर दिया। महात्मा गांधी ने एक बार ऐसा लिखा था कि पढ़ना-लिखना बेशक बहुत जरूरी है, पर अपने आप में इतना ही काफी नहीं होता, शिक्षा का परम उद्देश्य होता है चरित्र निर्माण। यही कारण है कि आज जब मैं अपने गृह प्रदेश की ओर देखता हूं तो समझ नहीं पाता कि कहां, क्या गलत हो गया।1999 के आम चुनावों के बाद चुनाव आयोग ने कुछ आंकड़े जारी किए थे, जिन्हें देखकर मैं स्तब्ध रह गया था। अपेक्षानुसार बिहार में चुनावी हिंसा की सबसे अधिक वारदातें दर्शायी गई थीं। (उस समय झारखण्ड अलग राज्य नहीं बना था।) पर बदनामी की उस तालिका में केरल दूसरे नम्बर पर था। यह कष्टदायक चलन पांच साल गुजरने के बाद भी घटने का नाम नहीं लेता दिख रहा। अखबारों की सुर्खियों से यह साफ दिख रहा है।कोझीकोड हवाई अड्डे पर मुस्लिम लीग के कार्यकर्ताओं ने संवाददाताओं से हाथापाई की। तिरुअनंतपुरम में आर.एस.पी. समर्थकों ने पत्रकारों की पिटाई की। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि केवल मीडिया के लोग ही नहीं, केरल के राजनीतिज्ञ भी एक-दूसरे पर अपना गुस्सा उतारने में मस्त हैं। करुणाकरन और उनके विरोधियों के बीच अलुवा में झगड़ा इस हद तक बढ़ गया कि जिले के कांग्रेसी नेताओं की उनकी पार्टी के ही लोगों ने पिटाई कर दी; और तो और करुणाकरन खेमे के दो लोगों के कपड़े तक उतार फेंके गए।अब तो हिंसा की संस्कृति राजनीतिक दायरे से बाहर आकर आध्यात्मिक जगत में भी पसर रही है। सुनने में आया है कि सदा से ही भिड़ते रहे चर्च के विभिन्न गुटों ने चर्च की सम्पत्ति को लेकर मारपीट की। एस.एन.डी.पी.(जो मेरी युवावस्था के दिनों में सबसे सम्मानित संगठन माना जाता था) में भी इसी तरह का कुछ हुआ।लेकिन सबसे ताजा खबर शायद सबसे ज्यादा चौंकाने वाली है। खबर है कि एक जहाज केरल के तट की ओर बड़े गुपचुप तरीके से बढ़ता हुआ देखा गया था। प्रशासन को संदेह था कि उसमें बंदूकें ले जायी जा रही थीं और पुलिस महानिदेशक ने कोच्चि और आस-पास निगरानी के लिए पुलिस तैनात कर दी है।केवल हिंसा ने ही केरल को नहीं जकड़ रखा है। शेष भारत से बिल्कुल विपरीत केरल में महिलाओं के साथ बड़ा सम्मानजनक व्यवहार किया जाता था। आज, कितने ही यौन अपराध आए दिन सुनने में आ रहे हैं। कोझीकोड का आइसक्रीम पार्लर काण्ड सुर्खियों में है, लेकिन यह कोई अनूठा मामला नहीं है। उन पाठकों के लिए बता दूं जिनको इसका विवरण नहीं मालूम, यह मामला 1998 में शुरू हुआ था और इसमें जिन लोगों का नाम जुड़ा था उनमें से एक हैं मुस्लिम लीग के पी.कुन्हलीकुट्टी (वे इस समय केरल के उद्योग मंत्री हैं)। चार में से एक प्रत्यक्षदर्शी रेजिना ने अब बताया है कि इस मामले में कुन्हलीकुट्टी का नाम न लेने के लिए उसे कई लाख रुपए दिए गए थे।अभी हाल में 13 नवम्बर को कोट्टायम मेडिकल कालेज में बच्चे को जन्म देने के बाद गंभीर स्थिति में शशि एस.नायर की मृत्यु हो गई। उसके पिता का कहना है कि उनकी पुत्री का पहुंचे हुए राजनीतिज्ञों ने यौन शोषण किया था। कोट्टायम के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी पी.डी.राजन यह देखकर सकते में रह गए कि इस मामले की दो फाइलें, जो दो निजी अस्पतालों और एक कोट्टायम मेडिकल कालेज की थीं, गायब हो गई हैं। विपक्ष के नेता वी.एस.अच्युतानंदन कहते हैं कि उन्हें एक डाक्टर ने बताया था कि लड़की की हालत एक “अति विशिष्ट” व्यक्ति के उसे मिलने आने के बाद से और बिगड़ गयी थी।केरल का कोई राजनीतिक दल दूध का धुला नहीं है। न संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा, न ही वाम लोकतांत्रिक मोर्चा और न भाजपा और उसके सहयोगी। राजनीतिज्ञों से किसी तरह की उम्मीद करना बेकार है। अब तो देश के सबसे शिक्षित राज्य के नागरिक ही कुछ कर सकते हैं। मैं सुझाव देता हूं कि क्यों न शुरूआत “शिक्षा” के प्रति एक ईमानदार कोशिश से ही की जाए? 1.12.0428
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