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पाञ्चजन्य पचास वर्ष पहले
वर्ष 9, अंक 27, पौष शुल्क 3, सं. 2012 वि., 16 जनवरी, 1956, मूल्य 3आने
सम्पादक : गिरीश चन्द्र मिश्र
प्रकाशक – श्री राधेश्याम कपूर, राष्ट्रधर्म कार्यालय, सदर बाजार, लखनऊ
उ.प्र. सरकार की शाहखर्ची
5 विमान: 19 नई कारें: लाखों का अपव्यय जनहित या मंत्रीहित?
(विशेष प्रतिनिधि द्वारा)
लखनऊ : “समाजवादी ढंग की समाज व्यवस्था” के निर्माण का नारा लगाने वाली कांग्रेस सरकार उस धन का किस प्रकार अपव्यय करती है और जनहित के बजाय मंत्रीहित की लम्बी-चौड़ी योजनाएं बनाती है, इसके नित्य नूतन उदाहरण सामने आते रहते हैं।
पता चला है कि उत्तर प्रदेश सरकार मंत्रियों तथा उपमंत्रियों आदि के मनोरंजन तथा सुख-सुविधा के लिए 6 लाख रुपए का एक विमान खरीदने की तैयारी कर रही है। स्मरण रहे कि राज्य सरकार के पास पहले से ही सरकारी काम के लिए चार विमान हैं। इसके अलावा हिन्द हवाई क्लब के विमानों का तो सरकार उपयोग कर ही रही है।
यह भी पता चला है कि गत पांच वर्षों में राज्य सरकार ने मंत्रियों आदि के लिए 19 नई कारें खरीदीं जिन पर 5 लाख रुपए खर्च हुए। मंत्रियों की कारों की मरम्मत, पेट्रोल तथा अन्य आवश्यक बातों पर 1 अप्रैल 1951 से 30 सितम्बर, 1955 तक 1,52,191 रु. 10 आ. 6 पा. व्यय हुए। इतना ही नहीं मंत्रियों, उपमंत्रियों तथा सभा सचिवों के वेतन और भत्तों संबंधी विधेयक के अन्तर्गत और अधिक सुविधाओं की सिफारिश की गई है। इसकी आलोचना राज्य विधानसभा में हो चुकी है।
चीन और रूस की मित्रता से सावधान रहने की आवश्यकता
सरसंघचालक श्री गुरुजी की सामयिक चेतावनी
(निज प्रतिनिधि द्वारा)
रायपुर। “जिस चीन के बारे में प्रधानमंत्री नेहरू बड़े उत्साही हैं और किसी भी हालत में जिसकी मित्रता छोड़ने के लिए तैयार नहीं, उसी चीन ने तिब्बत को हड़प लिया और हमारी एक न सुनी। जिन रूसी नेताओं की प्रसन्न करने वाली कुछ घोषणाओं से हम फूले नहीं समाते, उनके इतिहास पर भी तनिक गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है।” ये चेतावनीपूर्ण शब्द राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री गुरुजी ने एक शिविर में कहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के छत्तीसगढ़ विभाग (रामपुर और बिलासपुर विभाग) का शिशिर शिविर दिनांक 7 और 8 को बिलासपुर जिले के चकरभरा नामक स्थान पर हुआ। दोनों दिन तक सरसंघचालक प.पू. गुरुजी शिविर में रहे।
स्पष्ट देशद्रोह!
यह कटु वास्तविकता है कि भारत विभाजन का बहुत कुछ दायित्व उत्तर प्रदेश के उन मुसलमानों पर है, जिन्होंने मुस्लिम लीग के नेतृत्व में मनसा, वाचा, कर्मणा अपना पूर्ण विश्वास प्रकट किया था। किन्तु अनुमान यह था कि पाकिस्तान निर्माण के पश्चात् शायद प्रदेश के मुसलमानों की मुस्लिम लीगी मनोवृत्ति में परिवर्तन हो जायेगा। ये अपनी भूल अनुभव करेंगे और भविष्य में पुन: उसकी पुनरावृत्ति नहीं करेंगे।
परन्तु खेद है कि आगामी घटनाचक्र ने लोगों की इन आशाओं पर पानी फेर दिया। उत्तर प्रदेश के मुसलमानों ने भारत विभाजन की विभीषिका तथा मुस्लिम लीग की समाधि के पश्चात् भी अपना घोर साम्प्रदायिक तथा अराष्ट्रीय रवैया नहीं बदला। समय की पुकार को सुनने से इनकार कर दिया। उन्होंने तो मानो वही कहावत सत्य कर दी कि कुत्ते की पूंछ कितनी भी क्यों न मोड़ी जाय किन्तु अन्त में टेढ़ी की टेढ़ी ही रहेगी। (सम्पादकीय)
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