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गोवा में 35वां अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह
रुपहले पर्दे का माया-संसार
-संध्या पेडणेकर
भारत का 35वां अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव गत 29 नवम्बर से गोवा में शुरू हुआ। अब तक हर दूसरे वर्ष इस महोत्सव का आयोजन दिल्ली में और बीच के वर्षों में भारत के अन्य शहरों में हुआ करता था। दो वर्ष पूर्व केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपानीत सरकार को लगा कि कान्स (बर्लिन) में होने वाले फिल्म समारोहों की तरह ही भारत में प्रतिवर्ष एक ही शहर में इस समारोह का आयोजन हो तो इस अंतरराष्ट्रीय महोत्सव की तैयारी करने में सुविधा होगी। इस दृष्टि से प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर और विदेशी पर्यटकों के लिए हमेशा आकर्षण का केन्द्र रहे गोवा को चुना गया। लगभग 125 करोड़ रु. की लागत से गोवा में इस महोत्सव के लिए विशेष निर्माण किया गया और वर्ष 2004 से यह महोत्सव गोवा में ही होना तय हो गया।
दीप प्रज्ज्वलित करके फिल्म महोत्सव का शुभारम्भ करते हुए अभिनेता दिलीप कुमार। उनके साथ हैं
महोत्सव में आनंद के क्षण- श्री जयपाल रेड्डी के साथ श्री
मनोहर पर्रीकर। बीच में दिख रहे हैं
श्री किरण शांताराम
“किसना” फिल्म में विवेक ओबेराय
आस्कर के लिए चयनित मराठी फिल्म “श्वास” का एक भावुक दृश्य
महोत्सव का उल्लास यूं छाया गोवा के मार्गों पर
ताइवानी फिल्म “गुडबाय ड्रेगन इन”
का एक दृश्य
फिल्म समारोह में अमिताभ बच्चन और दक्षिण अफ्रीका के फिल्म निर्देशक डेरिल रूथ
उद्घाटन अवसर पर दिखाई गई मीरा नायर की फिल्म “वेनिटी फेयर” का एक दृश्य
1952 में जब भारत का पहला अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह शुरू हुआ था तब उसका स्वरूप केवल फिल्म प्रदर्शन तक ही सीमित था। लेकिन बाद में धीरे-धीरे उसमें कई आयाम जुड़ते गए। सन् 2004 के इस समारोह में पुरानी फिल्मों के प्रदर्शन के साथ-साथ देशी-विदेशी नई फिल्मों की प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया गया है। युवकों के लिए फिल्म निर्माण शिविर और प्रतियोगिता का आयोजन है। महोत्सव में एशिया, यूरोप, अफ्रीका, आस्ट्रेलिया एवं कनाडा के सामाजिक बदलावों पर बनी फिल्में भी दिखाई जाएंगी। इसके अलावा अशोक अमृत राज की पांच फिल्मों सहित ग्रासमन, गास्टन, जार्जी स्टहर की फिल्मों का पुनरावलोकन, ह्रूबर्ट बाल्स फंड की सहायता से बनी फिल्में, बवारिया में बनी जर्मन फिल्में, कनाडा, मिस्र, पुर्तगाल, ताइवान आदि देशों में बनी फिल्मों का भी प्रदर्शन होगा। समारोह में यश जौहर, नर्गिस दत्त, महमूद, सौंदर्या, विजय आनंद, डा. भावेन्द्र नाथ साइकिया की याद में उनकी फिल्में दिखाई जाएंगी।
पर्रीकर का कमाल
राजग सरकार ने विश्व के बहुप्रतिष्ठित और बहुचर्चित कान्स फिल्म महोत्सव की तर्ज पर गोवा को भारतीय फिल्म महोत्सव का स्थायी केन्द्र बनाने की घोषणा की थी। गोवा सरकार ने 125 करोड़ रुपए खर्च कर राजधानी पणजी का रूप-रंग ही बदल दिया है। इसके लिए खास तौर पर बनाया गया चार स्क्रीन वाला आधुनिक सिनेमाघर और महोत्सव का मुख्य आयोजन स्थल, चाल्र्स कोरिया द्वारा बनाई गई कला अकादमी की नई साजसज्जा महोत्सव में आए दर्शकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है।
मुख्यमंत्री मनोहर पर्रीकर कहते हैं कि केन्द्र सरकार का बजट महोत्सव की भव्यता के लिए पर्याप्त नहीं था। इसलिए हमने बुनियादी ढांचे और अन्य सुविधाओं को विकसित करने के लिए अपनी तरफ से पैसा लगाया।
दरअसल केन्द्र सरकार के अधिकारी इस बात को लेकर बहुत चिंतित थे कि क्या गोवा फिल्म महोत्सव के लिए आवश्यक विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचा और सुविधाएं उपलब्ध करा पाएगा, मगर गोवा के मुख्यमंत्री श्री पर्रीकर ने अपनी लगन और कोशिशों से थोड़े समय में ही इन सारी जरूरतों को बखूबी पूरा कर दिखाया। इसके लिए उन्हें विरोध भी झेलना पड़ा। विपक्षी दल और पर्यावरणवादी संगठनों ने गोवा को फिल्म महोत्सव का स्थायी स्थान बनाने और उसके लिए चल रहे विकास कार्यों के खिलाफ लगातार मुहिम चलाई। मगर श्री पर्रीकर को विश्वास था कि फिल्म महोत्सव गोवा को विश्व पर्यटन के नक्शे में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। दूसरी तरफ प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष लुशिनो फेलेरियो का कहना है कि हम महोत्सव के खिलाफ नहीं हैं, मगर राज्य सरकार ने इसी वर्ष महोत्सव कराने के लिए जो जल्दबाजी दिखाई, नियमों का उल्लंघन किया और गोवा के लोगों के साथ वायदा खिलाफी की, हम उसके खिलाफ थे।
वैसे गोवा को फिल्म महोत्सव का स्थायी केन्द्र बनाने का मामला भी खटाई में पड़ता जा रहा है। राजग के हर फैसले को टेढ़ी नजर से देखने वाली संप्रग सरकार इस मुद्दे को लेकर स्पष्ट नहीं है।
महोत्सव की शुरुआत प्रसिद्ध फिल्म निर्मात्री मीरा नायर की “वेनिटी फेयर” फिल्म से हुई। इस अवसर पर मीरा नायर ने कहा कि वह अपनी फिल्म में 19वीं शती के इंग्लैंड की श्रेणीगत समाज व्यवस्था का चित्र खींचना चाहती थीं। उन्होंने बताया, “वेनिटी फेयर” बेकी शार्प की कहानी है। विलियम ठाकरे के उपन्यास पर आधारित इस फिल्म में अनाथ बेकी के बारे में बताया गया है, जिसे तत्कालीन समाज ने कम उम्र में ही यह अहसास दिला दिया था कि उसकी एक छोटी सी गलती भी उसे फिर सड़क की गंदगी तक पहुंचा सकती है। “सलाम बांबे” मीरा नायर की बहुचर्चित और बहुपुरस्कृत फिल्म रही है। आस्कर के लिए इसका नामांकन हुआ था। कान्स फिल्म समारोह में लोकप्रिय फिल्म का तथा अन्य जगहों पर करीब 25 अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार इस फिल्म को मिले हैं। इन्हीं की फिल्म “मानसून वेडिंग” को वेनिस अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में “गोल्डन लायन” पुरस्कार मिला।
एशियाई प्रतियोगिता विभाग
महोत्सव के एशियाई प्रतियोगिता विभाग में एशिया की फिल्मी दुनिया के नए रंग दिखाने वाली फिल्में परीक्षकों के सामने पेश की जाएंगी। सुनहले मोर और रूपहले मोर के पुरस्कार दिए जाएंगे। इनके अलावा 5 लाख और ढाई लाख के दो पुरस्कार, स्मृति चिन्ह तथा प्रशस्ति पत्र भी दिए जाएंगे। निर्णायक मंडल के प्रमुख हैं- प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक मणिरत्नम। प्रतियोगिता में भारत के अलावा, बंगलादेश, चीन, हांग-कांग, ईरान, इस्रायल, फ्रांस, मलेशिया, श्रीलंका, थाइलैंड आदि देशों ने भाग लिया है।
ऐसे आयोजन राजनीति से परे हों
राजग सरकार द्वारा गोवा में अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के आयोजन को लेकर लिए गए निर्णय को विरोधी पक्ष द्वारा किया गया विरोध झेलना पड़ा था। उस समय फिल्म जगत की कई हस्तियों- निर्माता निर्देशक सुभाष घई, अभिनेता दिलीप कुमार, निर्देशक मणिरत्नम, श्याम बेनेगल, यश चोपड़ा आदि ने विरोधियों की नकेल कसी थी। इन फिल्मी हस्तियों का कहना था कि – अंतरराष्ट्रीय समारोहों के आयोजनों को हमेशा राजनीति से ऊपर रखा जाना चाहिए। केन्द्र और राज्य में कौन-सा पक्ष सत्ता में है इसका ऐसे आयोजनों पर कोई असर नहीं होना चाहिए, बल्कि दोनों के समन्वय से ही ऐसे आयोजन सफल हो सकते हैं।
विश्व सिनेमा विभाग के तहत 40 देशों की करीब 65 फिल्में महोत्सव में दिखाई जाएंगी। ये फिल्में या तो अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हैं या काफी सराही गई हैं। इनमें मुख्यतया अर्जेन्टीना, आस्ट्रेलिया, बोस्निया एवं हरजेगोविना, ब्राजील, बुल्गारिया, कनाडा,, चीन, क्रोएशिया, डेनमार्क, फ्रांस, ग्रीस, हंगरी, ईरान, इस्रायल, इटली, जापान, मैक्सिको, नीदरलैंड, ताइवान आदि देशों की फिल्में हैं।
“श्वास” के लिए शुभकामनाएं
आस्कर पाने का स्वप्न भारत की फिल्मी दुनिया से अब तक लुकता-छिपता ही रहा है। ऐसा नहीं है कि भारत में आस्कर पाने योग्य फिल्में नहीं बनतीं। इससे पूर्व तीन फिल्मों ने इस बहुप्रतिष्ठित पुरस्कार को पाने की कोशिशें कीं। लेकिन हर बार किसी न किसी कारण से वे चूक गईं। सुनील दत्त- नर्गिस अभिनीत फिल्म “मदर इंडिया” भारत में तब भी और आज भी अत्यंत लोकप्रिय है। इसका सबसे पहले आस्कर पुरस्कार के लिए नामांकन हुआ। उसके बाद की प्रविष्टी रही प्रसिद्ध अप्रवासी फिल्म निर्मात्री-निर्देशिका मीरा नायर की बहुचर्चित फिल्म “सलाम बांबे” का। उसके बाद लंबे अंतराल तक किसी भारतीय फिल्म को आस्कर पुरस्कार के लिए नामांकन का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था। निर्माता-अभिनेता आमिर खान की “लगान” ने एक बार फिर आस्कर पुरस्कार के लिए भारत की उपस्थिति जोरदार ढंग से दर्ज की थी। लेकिन उन्हें भी सफलता नहीं मिली। पुरस्कार न मिलने के कारण उन्होंने बताया था प्रचार-प्रसार में कमी। इस वर्ष ताजा हवा के झोंके की तरह कथ्य और प्रस्तुति में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाली मराठी फिल्म “श्वास” ने एक बार फिर भारतवासियों में आस्कर पाने की उम्मीद जगाई है। “श्वास” के निर्माता सुभाष सावंत और फिल्म की पूरी मंडली केवल प्रचार-प्रसार के लिए आस्कर हारना नहीं चाहती। आर्थिक कमी को उन्होंने खुलेआम स्वीकारा और मदद की गुहार लगाई। कई हाथ मदद के लिए आगे आए। 35वें अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह के अवसर पर “श्वास” का विशेष प्रदर्शन होगा और तब गोवा के मुख्यमंत्री “श्वास” की मंडली को थमाएंगे 21 लाख रुपए का चेक और देशवासियों की ढेर सारी शुभकामनाएं। फिल्म के प्रचार-प्रसार हेतु भारी राशि की जरुरत को देखते हुए शिवसेना प्रमुख श्री बाला साहेब ठाकरे ने 15 लाख रुपए तथा भाजपा की ओर से श्री प्रमोद महाजन ने 5 लाख रुपए पहले ही “श्वास” की मंडली को दिए हैं।
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