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दो लाख के अतिरिक्तजापान में मुसलमान अब और नहींअब कोई भी कम्पनी जब किसी मुस्लिम इंजीनियर, डाक्टर अथवा प्रबंधन के व्यक्ति को भेजती है तो जापान सरकार उस मुस्लिम कर्मचारी को अपने यहां आने की आज्ञा नहीं देती। नागरिकता का तो सवाल ही नहीं उठता।-मुजफ्फर हुसैनयदि कोई मुस्लिम महिला अपने सर पर दुपट्टा ओढ़ती है तो अन्य जापानी महिलाएं उसे इस तरह से देखती हैं, “मानो वह किसी दूसरे ग्रह से आई हो।”जापान दुनिया का एक ऐसा देश है, जहां मुसलमानों की संख्या केवल दो लाख है। बीसवीं शताब्दी समाप्त होते-होते जापान से 8 लाख मुसलमानों को वहां की सरकार ने चलता कर दिया। एक समय था जब वहां 10 लाख मुसलमान थे। लेकिन इनमें से नागरिकता केवल वहां के 2 लाख मुसलमानों को दी गई थी। 8 लाख मुसलमान अस्थाई रूप से वहां रह रहे थे। उनमें अधिकांश विदेशी कम्पनियों में काम करने वाले थे। अब कोई भी कम्पनी जब किसी मुस्लिम इंजीनियर, डाक्टर अथवा प्रबंधन के व्यक्ति को भेजती है तो जापान सरकार उस मुस्लिम कर्मचारी को अपने यहां आने की आज्ञा नहीं देती। नागरिकता का तो सवाल ही नहीं उठता। जापान ऐसा देश है, जहां मुस्लिम देशों के दूतावास कम से कम हैं। जापान में यह बदलाव कोई 11 सितम्बर, 02 की घटना के पश्चात् नहीं आया, बल्कि जापानी प्रारम्भ से ही मुसलमानों को पसंद नहीं करते। 1999 में भारत से गए एक मुस्लिम इंजीनियर का कहना था कि जब वह जापान गया तो वहां उसका गर्मजोशी से स्वागत नहीं हुआ। अपनी कम्पनी और आस-पड़ोस के जिस भी व्यक्ति से वह मिला, उसका पहला सवाल यही होता कि वह स्वदेश कब लौट रहा है? जब वह कहता कि मेरा अनुबंध तीन साल का है तो लोग चुप हो जाते। उनका चेहरा मुरझा जाता। अपने कार्यकाल में उसका कोई जापानी मित्र नहीं बन सका। उसे किसी भी क्लब ने सदस्यता नहीं दी। जापान में कोई भी किसी मुस्लिम को मकान किराए पर नहीं देता। वहां के लोगों की दिलचस्पी इस्लाम में न के बराबर है। कोई भी जापानी नहीं चाहता कि उसके देश में कोई जापानी संस्कृति के विरुद्ध बोले या व्यवहार करे। जापानी वहां की आम भाषा है। वहां कोई मदरसा नहीं है। जापानी मुस्लिम केवल जापानी भाषा में ही अपना मजहबी व्यवहार करते हैं। मूल अरबी में लिखा कुरान उपलब्ध है, लेकिन जापानी मुस्लिम जापानी भाषा में अनूदित कुरान का ही पाठ करते हैं। जापान में जितने भी मुस्लिम नागरिक हैं, वे पूर्ण रूप से जापानी परिवेश में रचे-बसे हैं। कोई बाहर का व्यक्ति यह नहीं पहचान सकेगा कि सामने वाला व्यक्ति किस मजहब से सम्बंधित है? जापान का प्रधानमंत्री हो या किसी अन्य विभाग का मंत्री प्राय: वह मुस्लिम देशों के दौरे नहीं करता। जापान के किसी भी विश्वविद्यालय में अरबी, फारसी, उर्दू अथवा किसी मुस्लिम देश की भाषा नहीं पढ़ाई जाती। पिछले दिनों जब जापान के समाचारपत्रों में यह समाचार प्रकाशित हुआ कि अलकायदा का कोई एजेंट जापान में प्रवेश कर गया है, तब से वहां की सरकार सतर्क हो गई है। जापान में रहने वाले मुसलमानों की जांच-पड़ताल बढ़ गई है।जापान में अधिकांश तुर्की मुसलमान हैं। टोकियोवासी में तुर्क इमाम इस्माइल अयाज बातचीत में कहते हैं कि यहां “जिहाद” जैसे शब्द कहीं सुनने को ही नहीं मिलते। यहां का कोई भी व्यक्ति न तो आतंकवाद पर बहस करता है और न ही अमरीका में 11 सितम्बर को घटी घटना पर टिप्पणी करता है। बातचीत में जिहाद अथवा आतंक शब्द का उपयोग ही नहीं होता। इस्माइल अयाज टोकियो की प्रसिद्ध मस्जिद के इमाम हैं। उनका कहना है कि इस्लाम तो प्रेम और शांति का मजहब है। इस्माइल अयाज की तरह जापान में अनेक राष्ट्रवादी मुसलमान हैं जो इस्लाम पर लगे आतंकवाद के कलंक को धोने का प्रयास करते हैं।जापान में कुल 20 लाख विदेशी हैं, इनमें मुसलमान केवल दो प्रतिशत हैं। इनमें भी 90 प्रतिशत गैर जापानी है। वर्षों पहले वे यहां चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया और तुर्किस्तान से आकर बस गए थे। वहां दूर-दूर तक एक भी भारतीय, पाकिस्तानी अथवा बंगलादेशी मुसलमान देखने को नहीं मिलेगा। अरब अपनी अय्याशी के लिए हर जगह पहुंच जाते हैं लेकिन जापान की धरती पर वे पैर नहीं रख सके हैं।स्वतंत्र पत्रकार मोहम्मद जुबेर ने 11 सितम्बर वाली घटना के पश्चात् अन्य देशों में मुसलमानों की स्थिति पर शोध करने के लिए अनेक देशों की यात्रा की, इसी दौरान वह जापान भी पहुंच गया। लेकिन वहां पहुंचकर उसे बहुत निराशा हुई। उसका कहना है कि वहां न तो उसे कोई मुसलमान दिखाई पड़ा और न ही इस्लामी जगत के सम्बंध में चर्चा करने वाला। जापानियों को इस्लामी साहित्य और मजहब में कोई दिलचस्पी नहीं है। जुबेर को एक ऐसा मुस्लिम युगल देखने को मिला जिसने एक जापानी महिला को मुस्लिम बनाकर विवाह कर लिया था। जब से उक्त जापानी महिला मुस्लिम बनी तब से अन्य जापानी महिलाओं ने उससे बातचीत करना छोड़ दिया। उससे लगभग सभी ने सम्बंध-विच्छेद कर लिए। यदि कोई मुस्लिम महिला अपने सर पर दुपट्टा ओढ़ती है तो अन्य जापानी महिलाएं उसे इस तरह से देखती हैं, “मानो वह किसी दूसरे ग्रह से आई हो।” मुसलमानों के प्रति जापानियों की इस कट्टरता को जापान में शरणार्थियों से सम्बंधित सोलिडेरटी नेटवर्क के महासचिव जनरल मनामी यातू ने कलमबद्ध किया है। यातू ने जापानी मीडिया में जब मध्य पूर्व एवं अरबों के विषय में बातें कीं तो अधिकांश जापानियों ने कहा कि वे आतंकवादी हैं, इसलिए हमें उनके साथ सख्ती से पेश आना चाहिए। जापान तभी सुरक्षित रह सकेगा जब मुसलमानों की घुसपैठ हमारे देश में न हो। जापान सरकार और जनता इसके लिए सावधान है। यातू का कहना है कि सामान्य जापानी किसी भी मुसलमान पर भरोसा नहीं करता। टोकियो विश्वविद्यालय के विदेशी अध्ययन विभाग के प्राध्यापक कोमिको यागी का कहना है कि इस्लाम की विशेषताओं का भरपूर प्रचार करने के बाद भी जापान में इसको वह स्थान प्राप्त नहीं हो सका जो ईसाइयत को प्राप्त है। इस्लाम की तुलना में वे ईसाइयत को शांति, प्रेम और भाईचारे का मत मानते हैं। जापान शिंतो और बौद्ध धर्म का देश है। वहां केवल एक प्रतिशत ईसाई हैं। जापानी इस्लाम को पुरातनवादी और संकीर्ण मानते हैं। प्रेम विवाह करने वाले कुछ युगल ईसाई मत भले ही स्वीकार कर लें लेकिन इस्लाम को कदापि नहीं। जापानी मुसलमानों का कहना है कि विश्व में इस्लाम की जो छाप बन चुकी है, उसे केवल मुसलमान ही अपने चरित्र और अपने व्यवहार से ही बदल सकते हैं।तलपटरेल विभाग के लगभग 63,000 किलोमीटर लम्बे रेल मार्गों पर करीब 1,20,000 पुल हैं। इनमें से लगभग 75,600 पुल 80 से 100 वर्ष पुराने हैं। इनका निर्माण उस समय की परिचालन भार वहन क्षमता को ध्यान में रखते हुए किया गया था। अब इनकी स्थिति चिंताजनक है।34
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