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हर पखवाड़े स्त्रियों का अपना स्तम्भबबलीतेजस्विनीकितनी ही तेज समय की आंधी आई, लेकिन न उनका संकल्प डगमगाया, न उनके कदम रुके। आपके आसपास भी ऐसी महिलाएं होंगी, जिन्होंने अपने दृढ़ संकल्प, साहस, बुद्धि कौशल तथा प्रतिभा के बल पर समाज में एक उदाहरण प्रस्तुत किया और लोगों के लिए प्रेरणा बन गयीं। क्या आपका परिचय ऐसी किसी महिला से हुआ है? यदि हां, तो उनके और उनके कार्य के बारे में 250 शब्दों में सचित्र जानकारी हमें लिख भेजें। प्रकाशन हेतु चुनी गयी श्रेष्ठ प्रविष्टि पर 500 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।जिसके साहस और सूझ सेसात घरों के चिराग बुझने से बच गए-भारत चौहानतीर्थ नगरी हरिद्वार में गंगा-स्नान का पुण्य लाभ अर्जित करने लाखों लोग जाते हैं। लोग पुण्य भागीरथी के जल में डुबकी लगा गंगाजल का आचमन कर स्वयं को धन्य मानते हैं। ऋषिकेष में पहाड़ों से उतरी गंगा हरिद्वार में अपने भव्य रूप में दिखाई देती है। 30 जून को गंगा नदी की लहरों का गर्जन दूर से ही सुनाई दे रहा था। गंगा उफान पर थी। कांवड़ यात्रा की तैयारियों में जुटी थी यह तीर्थ नगरी गंगा किनारे रेलवे के लाल पुल के पास बनी इन्द्राबस्ती की अपनी झोपड़ी के बाहर बैठी 15 वर्षीया बबली कांवड़ का सामान तैयार करने में जुटी थी। सिर्फ बबली ही नहीं, पूरी बस्ती के लोग कांवरियों के लिए सामान तैयार कर रहे थे। लेकिन गंगा किनारे बच्चों की धमा-चौकड़ी जारी थी।पश्चिम में सूरज ढल रहा था, साये लम्बे हो रहे थे। रोज की तरह सारी दुनिया से बेखबर बच्चों के नए-नए खेल, नए-नए करतब अभी तक बंद नहीं हुए थे। समरीन, नसरीन, परवीन, फरीन, रानी, चांद बेबी और सोनम-पांच से डेढ़ साल की उम्र के ये बच्चे गंगा किनारे ढलान पर खड़े रेहड़े के आसपास खेलते-खेलते एक-एक कर रेहड़े पर चढ़ गए। एक-दो-तीन-चार। जैसे-जैसे रेहड़े पर बच्चों का वजन बढ़ता गया, उसके पहिए धीरे-धीरे गंगा की लहरों की ओर बढ़ने लगे। सातवां बच्चा जैसे ही रेहड़े पर चढ़ा, वह सातों बच्चों को लेकर गंगा की लहरों में समाने लगा। नन्हे बच्चों की चीख-पुकार सुन कांवड़ बनाने में जुटी बबली उस तरफ भागी जहां रेहड़ा खड़ा था। बच्चों की चीखें जैसे उसे बुला रही थीं। उसने उफनती गंगा में छलांग लगा दी। तूफानी लहरों से जूझती हुई बबली बच्चों तक पहुंची और कुशल तैराक की तरह समरीन व फरीन को पकड़कर किनारे पर ले आई! दोनों को किनारे पर छोड़ा और फिर गंगा में छलांग लगाई, इस बार आगे बहते जा रहे परवीन व नसरीन को किनारे ले आई। बबली की आवाज सुन उसका भाई सोनी और पड़ोस की किशोरी वसीम भी उसका साथ देने गंगा में कूद पड़े। तब तक बाकी तीनों बच्चे बहते हुए ज्वालापुर पुल जटवाड़ा के करीब पहुंच गए थे। बबली, सोनी और वसीम लहरों से लड़ते हुए तेजी से उन तीनों बच्चों तक पहुंचे और चांद बेबी, सोनम और रानी को भी बाहर ले आए।बबली के अदम्य साहस और सूझबूझ ने बड़ा करिश्मा कर दिखाया। उसके कारण सात बच्चों की जान बच गई। 15 वर्षीया बबली ने वह कर दिखाया, जिसे करने में शायद और लोग सोचते ही रहते। इंद्रा कालोनी की झोपड़पट्टी में रहने वाली बबली के पिता शादी हुसैन चूड़ियां बनाने का काम करते हैं। वे कहते हैं, “मुझे तो जरा भी अंदाजा नहीं था, मेरी बेटी ऐसा कर सकती है।”बबली के मन में ऐसा क्या आया कि वह उफनती गंगा की लहरों में कूद गई? वह बताती है, “मैंने रेहड़े को ढलान से फिसलते हुए देख लिया था, लेकिन यह अंदाजा नहीं था कि रेहड़ा सारे बच्चों को लेकर सीधा गंगा में चला जाएगा। आसपास कोई था नहीं, लगा जोे कुछ करना है, मुझे ही करना है और मैं शोर मचाती हुई गंगा में कूद पड़ी।”गंगा किनारे रहने के कारण तैरना सीख लेना काम आया। उसे खुशी है कि उसके कारण सात घरों के चिराग बुझने से बच गए। बबली के कारनामे का समाचार आंधी की तरह पूरे हरिद्वार में फैल गया। सैकड़ों लोग उसकी पीठ थपथपाने वहां पहुंचे। लेकिन लोगों के आने-जाने से क्या होगा, रोटी का जुगाड़ तो करना ही होगा। और घटना के दो घंटे बाद ही बबली सहित पूरा परिवार झोपड़ी में ताला लगा कांवड़ बेचने निकल गया।बबली के साहस से प्रसन्न होकर उत्तराञ्चल के मुख्यमंत्री श्री नारायण दत्त तिवारी ने उसे अगले दिन ही सम्मानित किया और राष्ट्रपति पुरस्कार दिलाने की घोषणा की।भविष्य में बबली क्या करेगी? ऐसे प्रश्नों का जवाब वह नहीं दे पाती। लेकिन उसका साहस और सूझ अनेक लोगों के लिए प्रेरणा है। उसकी आंखों में एक चमक है। कुछ कर दिखाने की।19
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