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उत्तराञ्चल

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Dec 9, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Dec 2004 00:00:00

हुबली में तिरंगा भारतीफिर से हुआ विदेशी खेल,तिरंगा लहरायातो भेजा जेलहुबली स्टेशन पर जहां तक नजर जाती थी, भाजपा कार्यकर्ताऔर उनके हाथों में तिरंगे लहराते दिखते थे।कार्यकर्ताओं और पुलिस अधिकारियों से बातचीत करते हुएकर्नाटक विधानसभा में विपक्ष के नेता श्री येडुयुरप्पा25 अगस्त 2004- चेनम्मा मैदान के चारों ओर बंद पड़े बाजार और प्रतिष्ठान25 अगस्त 2004- चेनम्मा मैदान(जिसे सेकुलर मीडिया ईदगाह मैदान कहना ज्यादा पसंद करता है)पर भारी संख्या में पहरा देता पुलिसबल- ताकि कोई तिरंगा न फहरा पाए?प. बंगालसिलीगुड़ी के रास्तेबंगाल में सक्रिय हैं नेपाली माओवादी-कोलकाता से अमरनाथ दत्तानेपाल की माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी तथा भारत स्थित हिंसक गुट माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एम.सी.सी.) और पीपुल्स वार ग्रुप (पी.डब्ल्यू.जी.) के बीच तेजी से बढ़ती सांठगांठ की कलई खोलने वाली एक रपट गत दिनों प. बंगाल सरकार के पास पहुंची है। यह रपट भाजपा नेता श्रीमती सुषमा स्वराज की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति द्वारा तैयार की गई है। अब यह कोई छुपा तथ्य नहीं है कि उत्तर बंगाल का सिलीगुड़ी क्षेत्र नेपाल के माओवादी और एम.सी.सी. व पी.डब्ल्यू.जी के बीच मिलन बिन्दु है।उक्त रपट का उल्लेख करते हुए प. बंगाल के गृह विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि वैचारिक आदान-प्रदान के अलावा नेपाल के माओवादी सिलीगुड़ी के जरिए एम.सी.सी. और पी. डब्ल्यू.जी.को हथियार और आर्थिक मदद पहुंचा रहे हैं। सिलीगुड़ी में उत्तर बंगाल और नेपाल की सीमाएं सटी हुई हैं, जहां से काठमाण्डू महज 8 घंटे की दूरी पर है। नेपाल से हथियार व अन्य सामग्री बरास्ता सिलीगुड़ी, झारखण्ड, बिहार, मध्य प्रदेश, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश पहुंचाए जा रहे हैं। यहां यह जानना जरूरी है कि दक्षिण बंगाल में मिदनापुर, पुरुलिया और बांकुड़ा जिलों में नक्सलवादियों का खासा प्रभाव है। इन तीनों जिलों की सीमाएं झारखण्ड, बिहार और उड़ीसा से सटी हैं। पिछले 5 वर्ष में राज्य की वाममोर्चा सरकार इन क्षेत्रों को नक्सलवादियों से मुक्त कराने के प्रयास में लगी है, पर सफलता कोसों दूर दिखती है।संसदीय समिति की रपट में साफ लिखा है कि इन तीनों जिलों में पीने की पानी की किल्लत, जर्जर स्वास्थ्य सुविधाओं, अच्छी सड़कों की कमी और सबसे बढ़कर बेरोजगारी ने नक्सलवादियों को स्थानीय लोगों का चहेता बनाया है। नक्सलवाद के प्रभाव को कम करना है तो, रपट के अनुसार, यहां विकास कार्यों में तेजी लानी होगी। अमलासोल में भूख से हुई मौतों और चाय बागानों में मजदूरों की निराशाजनक स्थिति के कारण नक्सलवाद को और हवा मिली है।राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य नक्सलवादियों से बातचीत की बजाय आंध्रप्रदेश सरकार और नक्सली गुट के बीच वार्ता के परिणामों को परखने की इच्छा रखते हैं। इस बीच राज्य सरकार पुलिस व अन्य सुरक्षा प्रयासों के बूते नक्सलवादी गतिविधियों को काबू करने की कोशिश करना चाहती है।राज्य भाजपा अध्यक्ष तथागत राय ने राज्य के पिछड़े जिलों में विकास की अनदेखी के लिए वाम मार्चा सरकार की भत्र्सना की है। उन्होंने कहा कि मिदनापुर, बांकुड़ा और पुरुलिया जिलों में अब भी ऐसे कई इलाके हैं जहां लोगों को पीने का पानी लाने के लिए 20-25 किमी. दूर जाना पड़ता है, अन्य सुविधाओं की तो बात भूल ही जाएं। हालांकि इन जिलों में नक्सली प्रभाव को खत्म करने के लिए संघ विचार परिवार की वनांचल परिषद ने विभिन्न विकास कार्य शुरू किए हैं।राज्य का गृह विभाग सिलीगुड़ी-नेपाल सीमा पर सीमा सुरक्षा बल की मदद से सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने के प्रयास कर रहा है। विभाग के पास नेपाल के माओवादियों के बरास्ता सिलीगुड़ी भारत में घुसने और इसी तरह एम.सी.सी. व पी. डब्ल्यू.जी. सदस्यों के नेपाल में जाने की जानकारियां हैं।3पनप रहा है माओवादउत्तराञ्चल पुलिस द्वारा एम.सी.सी. विद्रोहियों से बरामद बैनर, हथियार व अन्य सामग्री।उत्तरांञ्चल में भी सशस्त्र माओवादी आंदोलन की शुरुआत हो गई है। नेपाल सीमा से सटे घने जंगलों में एम.सी.सी. की “जन मुक्ति गुरिल्ला वाहिनी” ने उत्तरांचल की प्रशासनिक व्यवस्था को निशाना बनाया हुआ है। पाञ्चजन्य ने अपने पिछले अंकों में यह जानकारी दी थी कि नेपाल सीमा, खासतौर पर उत्तराञ्चल सीमा क्षेत्र सुरक्षित नहीं है, यहां राष्ट्र विरोधी तत्व सक्रिय हैं और नेपाल के माओवादी अक्सर भारत में आकर छिप जाते हैं। उत्तराञ्चल के कुछ आतंकवादी संगठन भी नेपाल के माओवादी आंदोलन को अपना समर्थन दे रहे हैं, उनकी योजना सीमान्त क्षेत्र अशान्त बनाने की है। यह सत्य उजागर हो चुका है कि नेपाल के सटे जंगलों में माओवादी मौजूद है। उत्तरांञ्चल पुलिस ने इस आशय की सूचना के बाद हंसपुरा, पीला पानी वनमण्डल में सघन तलाशी अभियान में पांच माओवादियों को गिरफ्तार किया है। इनके पास से टैण्ट, हथियार बनाने के उपकरण, सुरंग बिछाने की तार, फौजी वर्दियां, कारतूस, माओवादी साहित्य, बैनर आदि बरामद हुए हैं। खबर है कि 70 से ज्यादा सशस्त्र माओवादी इस 1300 किमी. लम्बे वन क्षेत्र में फैले हुए हैं। गिरफ्तार तीन अन्य लोग माओवादियों तक खाद्य सामग्री पहुंचाते थे। जानकारी के अनुसार हंसपुरा गांव में सालभर पहले मनीष नाम के एक युवक ने स्कूल खोलकर गांव के लोगों में घुलने-मिलने और जंगल के रास्ते पहचानने का काम शुरू किया था। बाद में वह स्कूल बंद करके कहीं चला गया और अब उस समय पहचाना गया जब गांव के लोगों के बीच माओवादियों के साथ हथियार लेकर आया। खबर है कि एम.सी.सी. में उत्तराञ्चल के रामनगर, बिन्दू खत्ता आदि कस्बों के युवक शामिल हैं। इनका कार्यक्षेत्र कुमाऊंनी लोगों के अलावा थारू-बुक्सा जनजाति और बंगाली समुदाय के बीच है। तराई में बड़े जोत के किसानों के पास इन्हीं की जमीनें बताई जाती हैं। माओवादी इसी समुदाय को और उनकी युवा पीढ़ी को बरगलाने का काम कर सकते हैं। उत्तरांचल में माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) व अन्य वामपंथी संगठन राजनीतिक दृष्टि से तराई में “सीलिंग एक्ट” लगाने की मांग जोर-शोर से उठाते रहे हैं। खबर यह भी है कि इस गुरिल्ला संगठन का नेपाली माओवादियों से भी घनिष्ठ सम्बन्ध है। नेपाल के जंगल, भारत के जंगलों से मिले हुए हैं। शारदा नदी को पार करना कोई मुश्किल काम नहीं है। बीते कुछ समय से उत्तरांचल से लगे नेपाली जिलों में नेपाल शासन व्यवस्था तार-तार हो गई है और वहां माओवादी ही समानान्तर शासन चलाते हैं। यहां यह बताना भी जरूरी है कि चीन ने उत्तरांचल सीमा तक अपनी सड़कें बना ली हैं, जबकि भारतीय सड़कें सीमा से कोसों दूर हैं। बहरहाल, उत्तरांचल के जंगलों से माओवाद को समाप्त करने के लिए पुलिस ने अपना अभियान तेज कर दिया है। देखना यह है कि राज्य की कांग्रेस सरकार और केन्द्र सरकार इस मामले को कितनी गंभीरता से लेती है। दिनेश4

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