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सरोकार

by
Aug 8, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Aug 2004 00:00:00

मेनका गांधी, सांसद, लोकसभाआप नहीं तो कौन करेगा गायों की चिंताक्या गोवध पर प्रतिबंध लगाना संभव है? गोवंश हमारे जीवन से किस तरह जुड़ा है?कश्मीरी लाल स्नेही68, मंडी आदमपुरहिसार-125052, हरियाणालगता नहीं कि यह सरकार गो-वध पर प्रतिबंध लगाएगी। परंतु आप जैसे लोग अपने क्षेत्रों में गो-हत्या को रोक सकते हैं। पहले तो आपको मवेशी बाजार को रोकना होगा। गांवों तथा कस्बों के बाजारों में ये पशु कसाइयों को बेचे जाते हैं।दूसरा, आपको ट्रक के स्वामियों से संपर्क करना पड़ेगा। ये रात को गाय तथा भैंसों को कसाइयों के पास ले जाते हैं। कानून के अनुसार, कोई भी ट्रक तब तक पशुओं का परिवहन नहीं कर सकता जब तक कि इसके पास भारतीय पशु कल्याण बोर्ड की अनुमति न हो। लेकिन कोई भी यह अनुमति नहीं लेता। फिर अनुमति मिलने के पश्चात भी कोई ट्रक चार गाय अथवा भैंस से अधिक नहीं ले जा सकता, जबकि कई तो 50 गायें तक भरकर ले जाते हैं। सड़क पर जा रहे ऐसे किसी भी ट्रक का रोकें तथा खाली करवाएं। पुलिस बुलाकर मालिकों को गिरफ्तार करवाइए। आपको सभी दूध डेयरियों का भी निरीक्षण करना चाहिए। यदि किसी डेयरी में गाय तथा भैंस को “आक्सीटोसिन” का इंजेक्शन लगाया जा रहा है तो इसका अर्थ है कि उसके बछड़े को गुप्त रूप से वध हेतु भेजा गया है। डेयरी मालिक को पशु क्रूरता अधिनियम, 1960 तथा खाद्य मिलावट अधिनियम के अंतर्गत गिरफ्तार किया जाना चाहिएभारत का संविधान पहले ही गाय, बछड़े और दुधारू तथा अन्य पशुओं के वध को प्रतिबंधित करता है। भारत मुख्यत: कृषि आधारित देश है और गाय कृषि तथा अनाज की उपज की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति कर रही है। फूस जैसे कृषि के कचरे का पशु-भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है और पशु के अवशिष्ट का मिट्टी की उर्वरता को क्षति पहुंचाए बिना आर्गेनिक खाद के रूप में उपयोग किया जाता है। यह रासायनिक उर्वरक के आयात को रोकता है जिससे विदेशी मुद्रा की बचत होती है। हमारी ग्रामीण आबादी के लाखों लोग गाय आधारित कृषि से रोजगार पाते हैं। भार ढोने वाले पशु हमारे विद्युत गृहों से कहीं ज्यादा ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। गाय के महत्व को महसूस करते हुए हमारे पूर्वजों ने इसे मां के रूप में माना। गाय तथा इसकी सन्तान का प्रकृति एवं मानव समाज को अतुलनीय योगदान है।हमारा कस्बा बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के निकट है। यहां कुछ सामंती दलाल बाघ का अवैध शिकार कर रहे हैं। वन अधिकारी भी यह जानते हैं, लेकिन कुछ नहीं होता। आप बतायें, क्या किया जाए?संतोष भट्टउमरिया, मध्य प्रदेशप्रत्येक राष्ट्रीय उद्यान में, विशेषकर मध्य प्रदेश में, अवैध शिकारियों का एक समूह है जो बाघ की हत्या उसकी खाल तथा नाखूनों के लिए करता है। अधिकतर मामलों में स्थानीय वन रक्षक भी उनके साथ मिले हुए होते हैं। ऐसा दो कारणों से होता है-वन रक्षकों को बहुत कम वेतन दिया जाता है। कानूनों के अनुसार यदि वे किसी अवैध शिकारी को पकड़ लेते हैं तो उन्हें अदालत जाने के लिए पैसा स्वयं देना पड़ता है इसलिए वे लंबी अदालती कार्यवाही में नहीं पड़ना चाहते। उन्हें किसी तरह की बंदूक नहीं दी जाती, अत: अवैध शिकारियों को धमकाना लगभग असंभव है।तिब्बत तथा नेपाल के बाजार में चीता तथा बाघ की खाल खुलेआम बेची जाती है। इस व्यापार में कश्मीर की बड़ी हिस्सेदारी है, जहां आज तक भारत का वन्यजीव संरक्षण अधिनियम लागू नहीं होता। 1997 में एक छापे में 27 करोड़ रुपए मूल्य की बाघ की खाल श्रीनगर की दुकानों से बरामद हुई थी।इस अपराध को रोकने के लिए करना यह चाहिए कि-अवैध शिकारी को पकड़ने अथवा उसकी सूचना देने वाले किसी भी व्यक्ति और वन्यजीव संरक्षण में सहायता करने वाले पुलिसकर्मी के लिए पुरस्कार दिए जाएं। प्रेस विज्ञप्तियां दें ताकि समाचारपत्र इस सम्बंध में लगातार लिखें। जंगली पशु-पक्षी बेचने वाले को गिरफ्तार करवाएं। बस स्टाप, रेलवे स्टेशनों के निकट पोस्टर लगाएं ताकि लोगों को इस बारे में पता चल सके। स्थानीय कचहरी के निकट भी कानूनों के सम्बंध में पोस्टर लगाइए, ताकि वकीलों को इकट्ठा किया जा सके। उन विशिष्ट स्थलों को इंगित कीजिए जहां अवैध शिकार किया जा रहा है।श्रीमती मेनका गांधी”सरोकार” स्तम्भद्वारा, सम्पादक, पाञ्चजन्यसंस्कृति भवन, देशबन्धु गुप्ता मार्ग, झण्डेवाला,नई दिल्ली-110055इस स्तम्भ में हर पखवाड़े प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और शाकाहार की समर्पित प्रसारक श्रीमती मेनका गांधी शाकाहार, पशु-पक्षी प्रेम तथा प्रकृति से सम्बंधित पाठकों के प्रश्नों का उत्तर देती हैं। अपना प्रश्न भेजते समय कृपया निम्नलिखित पते का प्रयोग करें।27

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