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गोरों का लंदन- यहां हिन्दुओं के दर्द सुनाने पर भी पाबंदीअगर भारत के कश्मीरी हिन्दुओं की दर्दनाक कहानी लंदन में किसी प्रदर्शनी के माध्यम से दिखाई जाए तो आप क्या अपेक्षा करेंगे? यही न कि वहां के मानवाधिकारवादी और एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे संगठन के सदस्य उस प्रदर्शनी को देखने आएंगे, सहानुभूति दिखाएंगे और कश्मीरी हिन्दुओं के मानवाधिकारों के बारे में अपने-अपने मंचों से समर्थन का वायदा करेंगे। यह तो बड़ी स्वाभाविक सी बात है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ जब प्रसिद्ध फ्रांसीसी पत्रकार फ्रांस्वा गोतिए की पहल पर लंदन में कश्मीरी हिन्दुओं के बारे में एक चित्र प्रदर्शनी लगाई गई। इस प्रदर्शनी का उद्घाटन ब्रिटिश सांसद प्यारा सिंह काबरा ने किया था और इंडो-यूरोपीयन कश्मीर फोरम के निदेशक सुनील बख्शी के प्रयास से यह प्रदर्शनी और कश्मीरी हिन्दुओं पर बनी एक फिल्म “आतंकवाद का प्रहार” लंदन की सबसे प्रतिष्ठित जगहों- कामनवेल्थ क्लब, नार्थम्बरलैंड एवेन्यु, जो कि दिल्ली के बोट क्लब की तरह प्रसिद्ध ट्राफलगर चौराहे के बाजू में ही है- पर दिखाई गई। यही नहीं, वेम्बली के प्रसिद्ध ब्रोन्ट टाउनहाल और ग्लासगो में भी तीन-तीन दिन प्रदर्शनी रही। इस प्रदर्शनी के लिए एमनेस्टी के विभिन्न अधिकारियों को बार-बार सूचित किया गया और लगभग 10 बार फोन करने के बाद एमनेस्टी की एशिया क्षेत्रीय कार्यक्रम निदेशक इंग्रिड मसाज ने कहा, “मेरे पास बहुत सारी फाइलें हैं। मैं नहीं आ सकती।” बाद में पता चला कि एमनेस्टी के लंदन कार्यालय में पाकिस्तान व बंगलादेश समर्थकों का गहरा प्रभाव है। काफी प्रयास के बाद ब्रिटेन के लंदन टाइम्स के संपादकीय लेखक माइकल बिनयोन आए। प्रदर्शनी के आयोजकों को आशा थी कि यदि कश्मीर में 1200 हिन्दू मंदिर नष्ट कर दिए गए हैं और लाखों लोगों को अपना घर-बार छोड़कर शरणार्थी बनने के लिए मजबूर कर दिया गया है तो उस पर ब्रिटिश प्रेस कुछ बोलेगी। लेकिन माइकल बिनयोन का कहना था- “ओह, यह तो सिर्फ प्रचार लगता है।”सुप्रसिद्ध संत श्री श्रीरविशंकर ने ग्लासगो में इस प्रदर्शनी का उद्घाटन किया, परन्तु वहां भी कुछ सेकुलर आए और प्रदर्शनी देखने के बाद बोले- “अरे यार, यह तो आर.एस.एस./बी.जे.पी. का मामला लगता है।” यानी क्या? जो हिन्दुओं के दर्द को अभिव्यक्ति दे वह सिर्फ आर.एस.एस. वाला ही हो सकता है? फ्रांस्वा गोतिए यह सुनकर सन्न रह गए।आखिर सच स्वीकाराप.बंगाल में अब तक तो तृणमूल कांग्रेस और भाजपा ही माकपा पर चुनावी धांधलियों और धोखाधड़ी के अरोप लगाती आई हैं। लेकिन पहली बार, राज्य भाकपा ने माकपा पर चुनावी गड़बड़ियों और धांधलियों के आरोप मढ़े हैं। हाल ही में प्रदेश में सत्तारूढ़ वाममोर्चे के ही घटक भाकपा ने पिछले लोकसभा चुनाव पर समीक्षा बैठक की थी। बैठक के बाद 22 पृष्ठ की रपट में भाकपा ने बड़ी संख्या में माक्र्सवादीउम्मीदवारों की सफलता के पीछे चुनावी धांधलियों का हाथ बताया। रपट में यह भी कहा गया कि हालांकि वाम मोर्चे ने तृणमूल-भाजपा गठजोड़ का सफलतापूर्वक सामना किया, परन्तु चुनाव में की गईं धांधलियां सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए उलटी पड़ सकती हैं। मतदान केन्द्रों के बारीकी से अध्ययन के बाद पता चला कि कुछ चुनाव क्षेत्रों में एक ही दल के पक्ष में मतदान हुआ। ऐसा कैसे हो गया कि कई मतदान केन्द्रों पर माकपा के ही पक्ष में मतदान हुआ? इसकी पड़ताल होनी चाहिए, नहीं तो विपक्षी भी इसी तरह के तरीके आगे के चुनावों में अपना सकते हैं।सूत्रों के अनुसार बैठक में भाकपा राज्य सचिव मंजू मजूमदार ने दो सीटों- हुगली में आरामबाग और बद्र्धवान में पुरसुड़ा- पर मिली अभूतपूर्व सफलता का विशेष उल्लेख करते हुए कहा था कि ये तो बड़े पैमाने पर धांधली करके ही संभव था। यह एक खतरनाक चलन है। उक्त रपट राज्य माकपा नेताओं को सौंपी जा चुकी है ताकि वे इसे पढ़ें और अपने भीतर झांकें। उधर राज्य भाजपा अध्यक्ष तथागत राय ने कहा कि प्रदेश में सत्तारूढ़ वाममोर्चे के ही एक घटक ने उनके आरोपों को सही साबित कर दिया है। बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता तृणमूल कांग्रेस के पंकज बनर्जी ने कहा कि उनकी पार्टी इस मुद्दे को देशभर में गुंजाएगी।32
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