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आंध्र प्रदेश

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Aug 8, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Aug 2004 00:00:00

स्वदेशी जागरण मंच ने गांव में जहर फैलने से रोकाअर्जुन प्रसाद महनकालीस्वदेशी जागरण मंच के जागरूक कार्यकर्ताओं और कुछ पर्यावरण विशेषज्ञों के संघर्ष के कारण मिरोड्डी गांव के लोग जानलेवा प्रदूषण से मुक्त हुए हैं।यह कहानी है आंध्र प्रदेश के मेढक जिले में थोगुटा मंडल स्थित गांव मिरोड्डी के भोले-भाले लेकिन सजग गांव वालों की। सजग पर्यावरणविदों और आंध्र प्रदेश की स्वदेशी जागरण मंच इकाई के कार्यकर्ताओं की मदद से गांव में जहरीला प्रदूषण फैलाने वाली एक औद्योगिक इकाई के दरवाजे बंद कराने की।हैदराबाद और सिकन्दराबाद के आस-पास कोई भी औद्योगिक इकाई न खोले जाने का सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश जारी किया हुआ है। विदेश से लौटै रमेश ने इसी कारण मिरोड्डी गांव में एक लघु रासायनिक इकाई, जिसमें “सिप्रो फैक्सीसिन” नामक दवाई का निर्माण किया जाना था, खोलने की योजना तैयार की। उसने इसके कारण गांव वालों और पंचों के सामने रोजगार के अवसर सहित गांव की तरक्की की उम्मीदें बांधीं। भविष्य के सुनहरे सपने देखते हुए भोले-भाले गांव वाले रमेश की बातों में आ गए और स्थानीय सरपंच सहित 12 प्रखण्डों के प्रतिनिधियों ने उसे अनापत्ति प्रमाणपत्र थमा दिया। देखते-देखते इकाई का निर्माण कार्य शुरू हो गया और तेजी से आगे बढ़ने लगा। इस प्रस्तावित इकाई के साथ-साथ हरे-भरे मैदान, राजकीय जूनियर कालेज, एक विद्युत उपकेन्द्र और लगभग 20 गांवों की जलापूर्ति के लिए पानी की टंकी भी प्रस्तावित थी। ऐसे में गांव वाले खुश क्यों न होते।लेकिन वे मासूम ग्रामीण इस इकाई से निकलने वाले धुंए और अन्य जहरीले पदार्थों के बारे में नहीं जानते थे। लेकिन स्वदेशी जागरण मंच के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने इसकी खोजबीन शुरू की। जहरीले प्रदूषण की असलियत पता चली तो मंच के कार्यकर्ताओं सहित कुछ पर्यावरणविदों और स्थानीय प्रबुद्धजन ने मिलकर गांव वालों को सचेत करने के लिए पर्चे बांटे और दीवारों पर उक्त औद्योगिक इकाई से होने वाले दुष्परिणामों के बारे में लिखकर जनजागृति का बीड़ा उठाया। उधर पुलिस ने उल्टे इन पर्यावरण रक्षकों की ही धरपकड़ शुरू कर दी। अंतत: बात स्वदेशी जागरण मंच के प्रदेश संगठन सचिव अप्पला प्रसाद तक पहुंची।उन्होंने इस संबंध में तथ्यों की खेाजबीन की। सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता निरूप फरमानी, औषध विशेषज्ञ प्रकाश रेड्डी और एक कार्यकर्ता श्रीनाथ ने प्रसाद के साथ एक जांच दल बनाया। वे गांव पंचों से मिले, उन्हें पूरी स्थिति समझाई। दल ने प्रस्तावित औद्योगिक इकाई के स्वामी रमेश से भी मुलाकात की और इकाई के संबंध में कई सवाल पूछे। रमेश ने प्रदूषण संबंधी सुरक्षा उपायों पर टाल-मटोल की। जांच दल ने बताया कि इकाई से निकलने वाला मलबा और जहरीला प्रदूषण आस-पास के खेतों, पेयजल सहित जीव-जन्तुओं व गांव वालों के लिए अत्यंत हानिकारक होगा। उन्होंने बताया कि इससे भले ही कुछ युवकों को रोजगार मिल जाए, परन्तु प्रभावित होने वालों की संख्या उससे कहीं अधिक होगी। बात समझ में आ गई। आस-पास के गांवों में भी इसका प्रचार-प्रसार किया गया। 6 जुलाई, 2004 को गांव में उक्त रासायनिक इकाई के खिलाफ एक विशाल रैली आयोजित की गई। रैली में स्वदेशी जागरण मंच के कार्यकर्ताओं, ग्रामीणों, छात्रों, किसानों और गैर सरकारी संस्थाओं ने भाग लिया। रैली में पर्यावरण असंतुलन और उससे होने वाली जान-माल की हानि के बारे में विस्तार से बताया गया। आखिरकार पंचायत ने अनापत्ति प्रमाणपत्र रद्द किया और मिरोड्डी गांव के दरवाजे उस रासायनिक इकाई के लिए सदा के लिए बंद कर दिए गए।33

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