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पुजारियों की प्रतिष्ठा स्थापित हो
मंदिर संस्कृति-रक्षण का केन्द्र बनें!
-अशोक सिंहल, अन्तरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष, विश्व हिन्दू परिषद
“मंदिर केवल पूजा-अर्चना का स्थान नहीं बल्कि सम्पूर्ण हिन्दू समाज के संगठन का केन्द्र बनें, अस्पृश्यता को समाप्त कर सामाजिक एकता स्थापित करने का माध्यम बनें, इसके लिए मंदिरों के अर्चकों (पुजारियों) तथा गुरुद्वारों के ग्रंथियों को ही प्रयत्न करना चाहिए। मंदिरों तथा उसके अर्चकों की प्रतिष्ठा स्थापित होगी तभी समाज का अपनी संस्कृति के प्रति आकर्षण बढ़ेगा, मतान्तरण रुकेगा।” यह कहना है विश्व हिन्दू परिषद के अन्तरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष श्री अशोक सिंहल का। गत 25 जुलाई को नई दिल्ली के आराम बाग स्थित उदासीन आश्रम में आयोजित अर्चकों एवं ग्रंथियों के सम्मान समारोह को सम्बोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही। इन्द्रप्रस्थ विश्व हिन्दू परिषद द्वारा आयोजित इस समारोह में दिल्ली के विभिन्न मंदिरों एवं गुरुद्वारों के लगभग 400 अर्चकों एवं ग्रंथियों को समाज के प्रतिष्ठित धर्मप्रेमी श्रद्धालुओं द्वारा सम्मानित किया गया।
समारोह को सम्बोधित करते हुए श्री अशोक सिंहल ने कहा कि आज अर्चकों की उपेक्षा की जाती है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे पौरोहित्य कोई निम्न कर्म है। इस स्थिति को समाप्त करने के लिए अर्चकों को चाहिए कि वे योग्य प्रशिक्षण प्राप्त करें, अपना ज्ञान बढ़ाएं तथा मंदिर स्थापित किए जाने के वास्तविक उद्देश्यों की पूर्ति करें। श्री सिंहल ने कहा कि आज हिन्दू समाज पर चहुंओर से जो विधर्मियों के आक्रमण हो रहे हैं, उसमें यह आवश्यक है कि मंदिर संस्कृति के रक्षण का केन्द्र बनें। दक्षिण भारत के मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण पर रोष व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि इन्हें मुक्त कराने के लिए आचार्य सभा के निर्देश पर व्यापक आंदोलन चलाया जाएगा। छुआछूत को हिन्दू समाज की सबसे बड़ी कमजोरी बताते हुए श्री अशोक सिंहल ने कहा कि शास्त्रों में कहीं भी जाति के आधार पर किसी को अस्पृश्य नहीं कहा गया है। अस्पृश्यता इस्लामी कालखण्ड में जबरन मतान्तरण के कारण जन्मी एक विकृति है। आज आवश्यकता है कि सभी अर्चक अस्पृश्यता को समाप्त करने के लिए प्रयत्न करें। जिन्हें अस्पृश्य कहा जाता है, उन्हें प्रयत्नपूर्वक मंदिरों में लाएं। श्री सिंहल ने चेतावनी देते हुए कहा कि यदि हम केवल अपनी उदरपूर्ति में लगे रहेंगे, यजमानों की ही चिन्ता करते रहेंगे, छुआछूत के कारण मतान्तरित होते जा रहे अपने समाज की चिंता नहीं करेंगे, तो हम समाज की रक्षा का अपना दायित्व पूरा नहीं कर सकेंगे। प्रतिनिधि
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