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बेटा पाया तो क्या,
पिता तो गंवाया!
करुणाकरन बनाम एंटोनी प्रकरण में निश्मिचत रूप से एक खास मोड़ आया है और अब यह करुणाकरन बनाम करुणाकरन हो चला है। ये दो करुणाकरन आखिर हैं कौन? वरिष्ठ नेता के. करुणाकरन और उनके पुत्र के. मुरलीधरन में स्पष्ट दरार है; लेकिन अगर मैं संकेतों को साफ समझ पाया हूं तो यह पीढ़ियों के बीच तकरार की बजाय संतानों के बीच दुश्मनी का मामला दिखता है। दूसरे शब्दों में, वास्तव में लड़ाई मुरलीधरन और पद्मजा वेणुगोपाल के बीच है।
करुणाकरन ने पहले ही बहुत साफतौर पर कह दिया था कि अगर उनकी चली तो वे एक भी एंटोनी समर्थक को लोकसभा सीट नहीं जीतने देंगे। (एर्णाकुलम में हाल में लोकसभा उपचुनाव ने यह सिद्ध भी कर दिया कि कांटे की टक्कर में करुणाकरन निश्मिचत रूप से प्रभाव दिखा सकते हैं। आज की और एक सप्ताह पहले की स्थिति में फर्क केवल इतना ही है कि आज वे खुलकर ऐसा कर पाने के अधिकारी हो गए हैं।)
कांग्रेस और उनके बीच की यह दरार कितनी गहरी है? करुणाकरन वे व्यक्ति हैं कांग्रेस से जिनके सम्बंध आजादी की लड़ाई के जमाने से रहे हैं, जो नरसिंह राव तक से वरिष्ठ हैं। उन्होंने पार्टी का दामन कभी नहीं छोड़ा था, यहां तक कि आपातकाल के तुरंत बाद के उन काले दिनों में भी वे कांग्रेस के ही साथ रहे। ऐसे में, अगर वे अपने राजनीतिक जीवन के अंतिम दौर में पैतृक पार्टी को त्यागते हैं तो निश्मिचत रूप से यह एक गंभीर कदम कहा जाएगा। और इसी तथ्य को रेखांकित करते हुए उन्होंने कांग्रेस में वह अंतिम अपराध – नेहरू – गांधी खानदान के प्रमुख पर अंगुली उठाने- तक की हिम्मत दिखाई। (करुणाकरन ने पुराने जनता दल के एक छोटे से टुकड़े के नेता, रामविलास पासवान के घर जाने पर सोनिया गांधी का खूब मखौल उड़ाया था!)
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि करुणाकरन को उम्मीद थी कि मुरलीधरन मंत्रिपद के लालच में नहीं फंसेंगे। कनिष्ठ करुणाकरन, जो इस समय केरल प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष हैं, ने कहा है कि वे अब भी कांग्रेस के निष्ठावान सदस्य हैं। उन्होंने मंत्रिपद स्वीकारने सहित पार्टी आलाकमान के किसी भी निर्देश को मानने की कसम खाई है। दूसरे शब्दों में, उन्हें ए.के. एंटोनी मंत्रिपरिषद में स्थान की पेशकश की गई और वह रि·श्वत उन्होंने स्वीकार कर ली। मुख्यमंत्री एंटोनी ने पूरी ईमानदारी दर्शाते हुए कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि समाधान निकल आएगा और कि उन्होंने पार्टी को टूटने से बचाने के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी। दिल्ली से कांग्रेस के अ.भा. महासचिव अहमद पटेल उन्हें सहारा दे रहे थे। देखना केवल यही है कि मुरलीधरन को कौन सा विभाग दिया जाता है। कुछ का कहना है कि उन्हें उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता है।
आलोचक कहते हैं कि एंटोनी और पटेल को चकमा दिया जा रहा है, क्योंकि पुत्र को केरल सरकार में शामिल करने के लिए पिता-पुत्र ने यह तमाशा खड़ा किया था। यह सही है कि मुरलीधरन एंटोनी के उत्तराधिकारी के रूप में देखे जाएंगे, खासकर तब जब वे उनके आधिकारिक प्रतिनिधि बन जाते हैं। लेकिन मुझे संदेह है, क्योंकि अगर करुणाकरन का यही लक्ष्य होता तो वे पार्टी छोड़ देने की हद तक नहीं जाते।
बहरहाल, पता नहीं कि मुरलीधरन को चकाचौंध भरी गद्दी दे देने भर से कांग्रेस की मुश्मिकलें सुलझ जाएंगी या नहीं। मुरलीधरन ने खुद एंटोनी के विरुद्ध कई आरोप जड़े थे और मुख्यमंत्री के समर्थकों ने बदले में उन पर भी खूब कीचड़ उछाली थी। क्या दोनों पक्ष अपने शब्दों को निगलने को तैयार हैं?
अभी कुछ दिन पहले तक, मुरलीधरन मुख्यमंत्री एंटोनी के विरुद्ध आग उगल रहे थे। उन्होंने तो खुलेआम वाम लोकतांत्रिक मोर्चे और संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चे में चुनावी गठबंधन तक को समर्थन की बात कही थी। यह एंटोनी को शाप देने से कम नहीं था। उन्होंने यह भी स्पष्टीकरण दिया कि करुणाकरन और एंटोनी खेमों के बीच कोई भी बातचीत आम चुनावों की आहट देखते हुए संघर्षविराम की पेशकश जैसी थी न कि शांति की खोज में कोई वास्तविक प्रयास।
मुद्दे की बात यह भी है कि मुरलीधरन की मतदाताओं में कितनी पैठ है? (और उनके समर्थक विधायकों की भी!) सब जानते हैं कि करुणाकरन राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं और इस नाते उन्होंने कुछ हद तक ताकत भी प्राप्त कर ली है। (अगर कुछ और नहीं तो खेल बिगाड़ने की उनकी क्षमता एर्णाकुलम उपचुनाव ने दिखा दी।) अभी यह देखना बाकी है कि बेटे ने अपने पिता के कौशल का कितना अंश अंगीकार किया है। साफ कहूं तो केरल प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के नाते उनका प्रदर्शन कोई बहुत ज्यादा प्रभावी तो नहीं रहा है; वे अपने पिता के पुत्र के रूप में अधिक जाने गए बजाय अपने आप में कोई खास राजनीतिक व्यक्तित्व के। कांग्रेस आलाकमान गत 12 महीनों से जब-तब करुणाकरन समस्या से जूझता आ रहा था। पिता को खोने की कीमत देकर हद से हद उन्होंने बेटे को पा तो लिया परन्तु इससे उनकी राजनीतिक तेजस्विता के स्तर का पता चल जाता है। द (28.1.04)
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