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तरुण विजययूरोपीय संघ का नया संविधान बना परमुस्लिम तुर्की को लेकर दुविधा कायमआर्थिक साम्राज्य के रास्ते शांति की खोज में इस्लामी पेंच(बाएं से दाएं) यूरोपीय संघ के अध्यक्ष रोमानो प्रोदी, आयरलैण्ड के प्रधानमंत्री बर्टी अहर्न तथा इटली के प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लुस्कोनीब्रिटेन के प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर के साथ तुर्की के प्रधानमंत्री रिसेप तायीप अर्दोगानइस शुक्रवार के दिन रोम में यूरोपीय संघ के 25 देशों ने मिलकर नए संविधान के लिए संधि पर हस्ताक्षर किए। यूरोपीय संघ के रूप में पहली बार 25 देश किसी हमले या किसी हिटलरी हुक्म से नहीं बल्कि आर्थिक प्रगति के रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए एक इकाई में ढल रहे हैं। इनमें से अनेक देशों का इतिहास ऐसा है कि जो आपस में बरसों बरस भयंकर युद्ध में संलग्न रहे हैं। लेकिन आज स्थिति यह है कि इन देशों के नागरिक बिना किसी पासपोर्ट, वीजा की आवश्यकता के न केवल एक-दूसरे के देश आ-जा सकते हैं बल्कि सब जगह एक ही मुद्रा “यूरो” का चलन है और एक बाजार है। 25 देशों का संविधान एक ही हो, यह तो एक अद्भुत मिसाल बनी है। यह संविधान बनाना इसलिए जरूरी था ताकि यूरोपीय संघ के कामकाज, आपसी व्यवहार और सुरक्षा व्यवस्था के बारे में रास्ता तय हो सके। अब तक होता तो यही आया था कि किसी एक देश ने हमलावर बनकर एक या अनेक देशों को अपने कब्जे में किया, अपनी रानी या राजे के सब जगह सिक्के चलाए और कब्जे में किये गए देशों को लूटा। पर यूरोपीय संघ हमारे इतिहास का एक अनोखा अध्याय बना है। वह मूलत: आर्थिक आधार पर एक हुआ है लेकिन उसके पीछे भाषायी और मजहबी एकरूपता का बहुत बड़ा हाथ है। ये सभी 25 देश ईसाई हैं, गोरे हैं, एक सा रंग और उद्देश्यों और खतरों में समानता। पूरा यूरोपीय संघ एक आधिदैविक वैचारिक एकरूपता के कारण ही एक साथ आने, साझे दोस्त और शत्रु की पहचान करने के लिए इकट्ठा हो सका है।यूरोपीय संघ के सदस्ययूरोपीय संघ 1 नवम्बर, 1993 को अस्तित्व में आया। इसके प्रारंभिक 15 सदस्य इस प्रकार थे-1. आस्ट्रिया 2. बेल्जियम 3. डेनमार्क 4. फिनलैण्ड5. फ्रांस, 6. जर्मनी 7. ग्रीस 8. आयरलैण्ड 9. इटली 10. लक्जमबर्ग11. नीदरलैण्ड 12. पुर्तगाल 13. स्पेन 14. स्वीडन 15. इंग्लैण्ड।इस वर्ष 10 नए देश इसके सदस्य बने हैं-1. साईप्रस 2. चेक गणराज्य 3. एस्टोनिया 4. हंगरी5. लात्विया 6. लिथुवानिया 7. माल्टा 8. पोलैण्ड9. स्लोवाकिया 10. स्लोवेनिया।एकता के पीछे ईसाई प्रेरणाहालांकि कुछ क्षेत्रों में कहा जा रहा है कि यूरोपीय संघ और कैथोलिक पंथ में दरारें पड़नी शुरू हो गई हैं। लेकिन मूलत: इसका जन्म कैथोलिक मजहबी भावना से ही प्रेरित रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोपीय एकता के सभी प्रमुख पक्षधर जैसे कोनराड, ऐडेनार, अल्सीडेर और राबर्ट शूमैन आदि गहरी श्रद्धा वाले कैथोलिक थे। यहां तक कि यूरोपीय संघ का 12 पीले सितारे और नीली पृष्ठभूमि वाला झण्डा 1955 में आर्सेन हिट्ज ने बनाया था। उन्होंने हाल ही में लूड्स पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि यह झण्डा बनाने के लिए उन्हें बायबिल के अंतिम भाग से प्रेरणा मिली, जिसमें एक महिला का वर्णन है जो अपने सर पर बारह सितारों का मुकुट पहने हुए है और सूरज उसका वस्त्र है।अब इनके सामने सबसे बड़ी दुविधा तुर्की को लेकर आ खड़ी हुई है। तुर्की यूरोप में है लेकिन यूरोपीय संघ में शामिल नहीं किया गया है। इसके पीछे प्रत्यक्ष कारण तकनीकी बताए जाते हैं, मसलन यूरोपीय संघ में शामिल होने वाले देश की ग्राह्रता और पात्रता के बारे में एक लम्बी-चौड़ी नियमावली बनी हुई है। जिनमें मानवाधिकार, रंगभेद, आर्थिक सम्पन्नता या विपन्नता जैसे मुद्दे भी शामिल हैं। लेकिन वस्तुत: तुर्की को इसलिए शामिल नहीं किया जा रहा है क्योंकि वह एक मुस्लिम देश है और पूरा यूरोप इस्लामी आतंकवाद से इतना सशंकित है कि वह अपने जमघट में उस तुर्की को भी शामिल करने से हिचकिचा रहा है जो कमाल अतातुर्क पाशा के कमाल से पूरी तरह इस्लामी कट्टरवाद से मुक्त आधुनिक अर्थों में सेकुलर तथा रोमन लिपी में ही अपना समस्त भाषायी व्यवहार करने वाला देश है। पिछले दिनों इंटरनेशनल हेराल्ड ट्रिब्यून में तुर्की के यूरोपीय संघ में शामिल होने के प्रश्न को लेकर जो छपा वह दिलचस्प है। इस अखबार में थामस फुल्लर ने लिखा, “जब मैं तुर्की और ईरान की सीमा चौकी पर पहुंचा तो तुर्की सीमा की ओर मुस्तफा कमाल पाशा का बहुत बड़ा चित्र लगा था। जिस पर ये शब्द अंकित थे “तुर्की एक सेकुलर राज्य है”। दूसरी ओर ईरान की तरफ लगभग 100 मीटर आगे अयातुल्ला खुमैनी का एक बड़ा चित्र था, जिसके नीचे लिखा था “हम अमरीका को अपने जूतों तले रौंद देंगे।”यह है दो देशों की मानसिकता की एक झलक। अगर तुर्की यूरोपीय संघ का सदस्य बन जाता है तो इसके लोग 4,000 किलोमीटर यात्रा कर संघ के एक छोर से दूसरे छोर तक 25 देशों में बिना पासपोर्ट, वीजा के और बिना जगह-जगह नोट बदलवाए यात्रा कर सकेंगे। फिलहाल यूरोपीय संघ में 25 देश हैं। 2007 तक रोमानिया और बुल्गारिया भी सदस्य बन जाएंगे लेकिन तुर्की अगले 10 या 20 साल में भी सदस्य बनेगा, ऐसा कहने के लिए कोई तैयार नहीं है।इंग्लैण्ड “यूरो” क्यों नहीं अपना रहा?1. यूरोपीय संघ का संविधान लागू करने के लिए सहमति संधि पर 29 अक्तूबर को हस्ताक्षर हुए परन्तु संविधान का प्रारूप प्रत्येक सदस्य देश की संसद द्वारा अनुमोदित किया जाना जरूरी है। इसमें 2 वर्ष का समय लग सकता है।2. यूरोपीय संघ के छह संस्थापक सदस्य देश-1. बेल्जियम 2. फ्रांस 3. जर्मनी, 4. इटली 5. लैक्जमबर्ग तथा 6. नीदरलैण्ड अपनी प्राचीन सभ्यता में गर्व महसूस करते हैं। जैसे एथेंस में हुए ओलम्पिक के समय देखा गया था वैसे ही यूरोपीय संघ के संविधान के सम्बंध में संधि पर हस्ताक्षर का कार्यक्रम प्राचीन रोम के राजनीतिक और धार्मिक केन्द्र कैम्पीडोबिल्यों में सम्पन्न हुआ। इसका प्रवेश द्वार प्रसिद्ध रोमन चित्रकार माइकल एंजलो द्वारा रूपायित किया गया था। इसके केन्द्र में रोम के सम्राट मार्कस ओरेलियस की मूर्ति स्थापित है। यहां यह बताना भी रोचक होगा कि इंग्लैण्ड ने यूरोपीय संघ की सदस्यता को स्वीकार किया लेकिन “यूरो” को अपनी मुद्रा के रूप में अभी तक मान्य नहीं किया है। इसका कारण है कि इंग्लैण्ड इतना देशभक्त है कि वह ऐसी किसी मुद्रा को स्वीकार करने से हिचकिचा रहा है जिस पर उसके राजा या रानी का चित्र अंकित न हो।फुल्लर लिखते हैं कि तुर्की और ईरान की सीमा पर आकर लगता है कि मानो दो विश्व आपस में टकरा रहे हों। एक ओर ईरान का घोर पश्चिम विरोधी मजहबी राज्य है दूसरी ओर लगभग सेकुलरवादी तुर्की है, जहां वेश्यावृत्ति कानूनन वैध है, शराब पानी की तरह बहती है और सरकारी दफ्तरों में महिलाओं को सर ढककर आने या स्कार्फ पहनने की मनाही है। इसकी तुलना में फ्रांस को देखें जहां मुस्लिम लोग विद्यालयों में अपनी बच्चियों को स्कार्फ पहनकर ही आने के अधिकार के लिए लड़ रहे हैं।दिल्ली में नीदरलैंड के दूतावास में शुक्रवार को खासी चहल-पहल थी और कई राजदूत तथा अन्य भारतीय मेहमान रोम में यूरोपीय संघ के संविधान के लिए एक संधि पर हस्ताक्षर के भव्य आयोजन को सीधे प्रसारण पर दिखा रहे थे। नीदरलैंड के राजदूत ने कहा, “यह सब भारतीय प्रौद्योगिकी का कमाल है। वायरलैस ब्राड बैण्ड के जरिए हम यह कार्यक्रम यहां देख रहे हैं।” मैंने कहा भारतीय कमाल एक और भी है कि यहां बहुसंख्यक हिन्दुओं की मुसलमानों के प्रति वह दृष्टि नहीं है जो यूरोप की है। आखिरकार तुर्की किस वजह से अभी तक यूरोपीय संघ का सदस्य बना ही नहीं है? बल्कि उसे सदस्य बनाने के लिए कोई राजनीति, बातचीत शुरू की जानी चाहिए या नहीं, इस बारे में भी 17 दिसम्बर को फैसला होगा। राजदूत महोदय सिर्फ हंसे, कुछ कहा नहीं। इस महत्वपूर्ण हस्ताक्षर कार्यक्रम के लिए रोम इसलिए चुना गया क्योंकि यहीं 1957 में यूरोपीय संघ का विचार अंकुरित हुआ था। तब से अब तक यूरोपीय संघ इतना शक्तिशाली हो गया है कि अमरीका को भी चिंता होने लगी है। डालर के मुकाबले यूरोपीय संघ की मुद्रा यूरो ज्यादा ताकतवर और ज्यादा लोकप्रिय हो रही है। अनेक देशों ने अपनी मुद्रा डालर के बजाय यूरो के साथ सम्बद्ध की है। भारत के सामने भी यह मौका था, पर जाने क्यों ऐसा नहीं किया गया।यूरोपीय संघ के 25 सदस्य देशों में जर्मनी सबसे बड़ा है, जिसकी आबादी लगभग 8 करोड़ है। बाकी सब देशों की आबादी मिलाकर 45 करोड़ बनती है जो दुनिया के एक चौथाई के सकल राष्ट्रीय उत्पाद की दावेदार है और विश्व का 40 प्रतिशत व्यापारिक निर्यात यहां से होता है। अनेक मामलों में उन्होंने सांझे राजनीतिक कदम भी उठाने शुरू किए। इराक पर उन्होंने अमरीकी कदम के विरुद्ध रुख लिया। यह बात अलग है कि कुछ सदस्य देशों ने अपने-अपने तईं अमरीका का भी साथ दिया। यूरोपीय संघ का एक विदेश मंत्री भी है, एक संसद है और एक नीति निर्माता व्यवस्था आकार ले रही है। तुर्की को शामिल करने में हिचकिचाहट का एक कारण यह भी है कि तब यूरोपीय संघ का सबसे बड़ा देश जर्मनी नहीं बल्कि मुस्लिम तुर्की होगा, जिसकी आबादी 12 करोड़ के लगभग है।यूरोपीय संघ से अपने देश और हिन्दू समाज की तुलना करना चाहेंगे क्या? संकोच भी होगा और यह समझने में परेशानी भी होगी कि सब कुछ सांझा होते हुए भी सिर्फ मजहब की भिन्नता के कारण भारत तोड़कर पाकिस्तान बनाने की मांग क्यों की गई? उसके बाद भी पाकिस्तान हमें न तो चैन से रहने दे रहा है और न ही भारत की सदाशयता का कुटिलता से जवाब देने की आदत छोड़ता है। यहां दक्षिण एशिया के देशों का ऐसा ही संघ बनने में भला क्या दिक्कत हो सकती है- जहां एक बाजार हो, एक मुद्रा, एक पासपोर्ट और वीजा खलास?…. बताइए!!6
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