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सूना मंत्रालयभले ही किसान आत्महत्या करें, या फिर प. बंगाल में भूख से मौतें हो रही हों, पर अपने केन्द्रीय कृषि और खाद्य तथा आपूर्ति मंत्री अन्य कामों में बहुत अधिक व्यस्त हैं। उन्हें ऐसे लोगों की सुध लेने की फुर्सत ही नहीं मिल रही है। बात हो रही है “मराठा सरदार” शरद पवार की। वे केन्द्र सरकार में दो भारी भरकम मंत्रालय-कृषि एवं खाद्य तथा आपूर्ति मंत्रालय संभाले हुए हैं। (हालांकि वे इससे संतुष्ट नहीं हैं और उनकी नजर गृह मंत्रालय पर है। केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में संभावित फेरबदल को देखते हुए ही उन्होंने महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम आने के बाद “लेन-देन” का खेल खेलना शुरू किया। कहा जा रहा है कि महाराष्ट्र में अपना मुख्यमंत्री बनाने से अधिक वे गृहमंत्री की कुर्सी पर बैठना चाहते थे।) पर पिछले दो महीनों से उनके दोनों मंत्रालय उपेक्षित पड़े हैं। पहले शरद पवार भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष पद पर कब्जा जमाना चाहते थे, इसलिए अलग-अलग प्रदेशों के क्रिकेट संघों में अपनी पैठ बनाने की कोशिश में व्यस्त रहे। हालांकि वहां उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा और मामला अदालत तक जा पहुंचा है। इसके बाद बारी थी महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों की। पवार अपना गृह प्रदेश बचाने में इस कदर डूब गए कि भूल ही गए कि वे केन्द्र में मंत्री भी हैं। दिल्ली में उनका मंत्रालय उनकी राह देख रहा है। इस बीच मंत्रालय के अनेक महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में, जिन्हें मंत्री महोदय को सम्बोधित करना था, पवार की ओर से वरिष्ठ अधिकारियों ने वक्तव्य दिया। कुछ ऐसा ही हाल नागरिक उड्डयन मंत्रालय में भी चल रहा है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के ही प्रफुल्ल पटेल भी महाराष्ट्र चुनाव में जुटे रहे। चुनाव परिणाम आने के बाद नई दिल्ली और मुम्बई में चले “राजनीतिक ड्रामे” में वे एक प्रमुख किरदार थे। इसलिए वे भी अपने वरिष्ठ नेता का अनुसरण करते हुए दिखे और उनका मंत्रालय भी वैसा ही जवाब देता रहा जैसा शरद पवार का।बीमारी का नया इलाजआखिरकार सार्वजनिक क्षेत्र की 24 बीमार इकाइयों को पुनरुज्जीवित करने के लिए बहुप्रतीक्षित अनुदान को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने मंजूरी दे दी। लेकिन इस निर्णय ने इस मामले को और अधिक पेचीदा बना दिया। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने इन बीमार इकाइयों के लिए 517 करोड़ रुपए के आर्थिक अनुदान की घोषणा की थी। परन्तु बाद में भारी उद्योग मंत्रालय और सार्वजनिक उपक्रम विभाग ने यह स्पष्ट कर दिया कि इसका लाभ पाने वाली इन इकाइयों को यह राशि केवल एक बार ही दी जाएगी। ऐसे में यह तय है कि ये बीमार इकाइयां इस धन का उपयोग पहले अपने वेतन और अन्य आवश्यक भुगतान करने में लगा देंगी। फिर उपक्रम को चलाने के लिए पूंजी कहां से बचेगी? यही सवाल सत्ता के गलियारों में पूछा जा रहा है। लेकिन न तो वामपंथी और न ही कांग्रेसी नेताओं को इसका कोई उत्तर सूझ रहा है। पर दोनों अपना-अपना राग अलापते फिर रहे हैं कि इन बीमार इकाइयों को बचाने में उनका बहुत बड़ा योगदान है।पाकिस्तान में अमरीकी सैनिक अड्डाअमरीकी नागरिक किस तरह स्वयं को दुनिया में शांति का वाहक और शांति स्थापना का थानेदार मानते हैं, यह शिकागो काउंसिल आन फारेन रिलेशंस (सी.सी.एफ.आर.) के उस सर्वेक्षण से स्पष्ट हो जाता है, जिसमें 51 प्रतिशत अमरीकियों ने पाकिस्तान में कट्टरवाद समाप्त करने के लिए अमरीकी सैनिक सहायता देने की बात कही है। साथ ही ये लोग पाकिस्तान में अमरीकी सेना का स्थायी शिविर भी स्थापित करना चाहते हैं। सर्वेक्षण के अनुसार अमरीका की 39 प्रतिशत जनता तथा 20 प्रतिशत नेताओं का मानना है कि पाकिस्तान में अमरीकी सेना का मजबूत और दीर्घकालीन आधार सैनिक शिविर होना चाहिए। इसके विपरीत 18 प्रतिशत अमरीकी जनता भारत-पाकिस्तान सम्बंधों को अमरीका के लिए चुनौतीपूर्ण मानती है, जबकि 75 प्रतिशत अमरीकी नेता और 51 प्रतिशत अमरीकी जनता भारत-पाकिस्तान सम्बंधों में शान्ति बनाए रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की मदद लेने के पक्ष में हैं।39
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