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सरोकार

by
Jul 11, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 11 Jul 2004 00:00:00

मेनका गांधी, सांसद, लोकसभामानव व्यवहार काफी बदतर हैयदि पशुओं को मारना गलत है तो क्या परभक्षी पशुओं को अन्य पशुओं को मारने से नहीं रोकना चाहिए?आलोक शर्माकटीरा, आरा, बिहार-802301परभक्षी को जिन्दा रहने के लिए अन्य पशुओं को मारना पड़ता है; उन्हें रोकना वास्तव में उन्हें मारना है। मान लीजिए हमें सभी जानवरों को परभक्षण से रोकने के लिए व्यापक स्तर पर हस्तक्षेप करना है- तो क्या हम ऐसा कर सकते हैं? और कर सकते हैं तो कैसे? क्या परभक्षियों को मारकर? मान लीजिए हमें बिल्ली को किसी पक्षी को मारने से रोकना चाहिए। तब हम यह महसूस करते हैं कि वह पक्षी कई सांपों का हत्यारा है। सांप छोटे पक्षियों को मारता है। वे छोटे पशु कीड़े-मकोड़ों को मारते हैं। तो फिर हम किस बिन्दु पर हस्तक्षेप करें?तथ्य यह है कि मानव के पास इन सभी गणनाओं को करने के लिए व्यापक दूरदर्शिता की कमी है। परभक्षण रोकने के लिए हस्तक्षेप करने से वह पारिस्थितिकीय तन्त्र नष्ट हो जाएगा जिस पर जैवमण्डल निर्भर है। इससे पृथ्वी पर सभी जीवों को क्षति पहुंचेगी। करोड़ों वर्षों से जैवमण्डल ने एक जटिल पारिस्थितिकीय तन्त्र विकसित किया है, जो अपनी सतत स्थिरता के लिए परभक्षण पर निर्भर करता है। परभक्षण रोकने के लिए मानव द्वारा हस्तक्षेप इन पारिस्थितिकीय तन्त्रों पर गम्भीर क्षति पहुंचाएगा, जिसके सभी जीवों पर भयंकर परिणाम होंगे। परन्तु तार्किक रूप से इसका यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि यदि हम परभक्षण को नहीं रोक सकते तो स्वयं ही इसमें लिप्त हो जाएं। जब हम युद्धों में मानव के व्यापक वध को रोकने में असफल हों तो क्या इसका यह अर्थ है कि हमें भी इस प्रकार से वध करना चाहिए? अति प्राचीन काल के समान अब मानव भोजन के लिए हत्या नहीं करता है बल्कि उसके द्वारा बिना आवश्यकता के हत्या की जाती है, जिससे पारिस्थितिकीय तन्त्र की रक्षा नहीं होती वरन यह नष्ट होता है।मानव व्यवहार “किसी अन्य परभक्षी” से काफी बदतर है। हम पशुओं को केवल पोषण के लिए ही नहीं बल्कि खेल, उत्सुकता, फैशन, मनोरंजन आदि सुविधा के लिए भी मारते हैं। हम लाखों की संख्या में अन्य मनुष्यों को क्षेत्र, धन तथा शक्ति के लिए मारते हैं। कभी-कभी मारने से पहले पीड़ा तथा यातना भी देते हैं। हम भूमि तथा महासागर में बड़े भारी अनुपात में वध करते हैं। कोई भी अन्य प्रजाति इस प्रकार का व्यवहार नहीं करती, केवल मानव ही प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ रहा है। हमारा गैर-मानव पशुओं को मारा जाना अनावश्यक है, जबकि गैर-मानव परभक्षी केवल अपने अस्तित्व के लिए आवश्यक मात्रा को ही मारते और उपभोग करते हैं। उनके पास कोई विकल्प नहीं है: मारिए अथवा भूखे मरिए।मानव के पास विकल्प है- उसे जिन्दा रहने के लिए मांस खाने की आवश्यकता नहीं है। मानव, गैर-मानव पशुओं से इस रूप से भिन्न है कि वह नैतिक सूत्रों के किसी संग्रह का पालन करने में समर्थ है। इसलिए इस तर्क का प्रयोग करते हुए हम गैर-मानव पशुओं से नैतिक मार्गदर्शन अथवा पूर्वोदाहरण नहीं ढूंढ सकते। मानव द्वारा किसी सचेतन गैर-मानव को मारा और खाया जाना उतना ही गलत है जितना कि किसी सचेतन मानव को। गैर-मानव पशुओं में नैतिक पूर्वोदाहरण ढूंढने की मूर्खता को प्रदर्शित करने के लिए निम्न रूप पर विचार कीजिए: “प्रकृति में पशु एक-दूसरे का भोजन चोरी करते हैं; तो मानव के द्वारा चोरी करने में गलत क्या है?” अथवा “प्रकृति में पशु मानव को मारते हैं और खाते हैं; तो मानव द्वारा मानव को मारा जाना और खाया जाना गलत क्यों है?”पशु कल्याण आंदोलन में भाग लेने के इच्छुक पाठक श्रीमती मेनका गांधी से 14, अशोक रोड, नई दिल्ली-110001के पते पर सम्पर्क कर सकते हैं।श्रीमती मेनका गांधी”सरोकार” स्तम्भद्वारा, सम्पादक, पाञ्चजन्यसंस्कृति भवन, देशबन्धु गुप्ता मार्ग, झण्डेवाला, नई दिल्ली-110055इस स्तम्भ में हर पखवाड़े प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और शाकाहार कीे समर्पित प्रसारक श्रीमती मेनका गांधी शाकाहार, पशु-पक्षी प्रेम तथा प्रकृति से सम्बंधित पाठकों के प्रश्नों का उत्तर देती हैं। अपना प्रश्न भेजते समय कृपया निम्नलिखित चौखाने का प्रयोग करें।30

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