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वाजपेयी ने कहा-फिर सुबह होगीभारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने नए अध्यक्ष के चुनाव पर कहा कि हम अपनी इस विशेषता पर अभिमान अवश्य कर सकते हैं कि भाजपा में सत्ता का संघर्ष नहीं है। उन्होंने कहा कि जब अन्य दलों में नए अध्यक्ष का चुनाव होता है तो वहां विवाद होते हैं, समर्थन-विरोध की लहरें चलने लगती हैं। पर हमें अभिमान है कि हम कुछ अलग ही मिट्टी के बने हैं।निवर्तमान अध्यक्ष श्री वेंकैया नायडू की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि श्री नायडू ने बड़ी कुशलता, परिश्रमशीलता तथा सबको साथ लेकर आगे बढ़ने की जिस प्रवृति का परिचय दिया, उससे नि:संदेह दल को शक्ति मिली है।श्री लालकृष्ण आडवाणी के पांचवीं बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने को उन्होंने ऐतिहासिक बताया। उन्होंने कहा कि वे संगठन कौशल के लिए परखे हुए, तपे हुए तथा बुद्धि और श्रम का मिश्रित रूप हैं। स्वर्गीय दत्तोपंत ठेंगडी का पुण्य स्मरण करते हुए श्री वाजपेयी ने कहा कि जब कुछ दिनों पूर्व हम उनके अन्तिम संस्कार में सम्मिलित होने पुणे जा रहे थे, तब एक मित्र ने कहा कि अब पार्टी के सामने आने वाले कठिन अवसरों और चुनौतियों के समय हम किनसे मार्गदर्शन प्राप्त करने जाएंगे। जब पूज्य श्री गुरुजी थे, तब पं. दीनदयाल जी उनसे परामर्श लेने जाते थे। जब दीनदयाल जी नहीं रहे तब हम सब ठेंगडी जी के पास जाया करते थे। और जब हम ठेंगडी जी की काया को अग्नि में समर्पित कर रहे थे तब मैं सोच रहा था कि अब हम किसके पास परामर्श के लिए जाया करेंगे। और उस समय सबके ध्यान में एक ही नाम था- आडवाणी जी।… वह फिल्मचुनावों में हार की चर्चा करते हुए भी अटल जी ने वातावरण को गंभीर नहीं होने दिया। चुटीले अंदाज में उन्होंने बताया कि पहले तो हारते ही रहते थे। एक बार वे और आडवाणी जी- दोनों चुनाव हार गए। वह शाम काटे नहीं कट रही थी। इसलिए आडवाणी जी ने फिल्म देखने का प्रस्ताव रखा। उस शाम उन्होंने जो फिल्म देखी उसका नाम था … “फिर सुबह होगी”।लोकसभा चुनाव में हुई हार की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि हम जितनी सफलता की आशा करते थे, उतनी सफलता हमें नहीं मिली। साथ ही उन्होंने कहा, “हारने वाले तो यह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि वे क्यों हारे, लेकिन जो जीते भी हैं वे भी नहीं समझ पा रहे हैं कि वे कैसे जीत गए। पर हम हार गए हैं और अब हार का हिसाब लगा रहे हैं।… लेकिन हिम्मत नहीं हारे हैं।… एक बाजी और लगेगी।… दांव लगेगा। इस बार तो हम गफलत में मारे गए। देशभर में विजय का वातावरण इतना प्रबल था कि कार्य करने पर विशेष ध्यान ही नहीं दिया गया।” श्री वाजपेयी ने पराजय को चुनावी समर का हिस्सा बताते हुए कहा कि, “यह पराजय ज्यादा दिन तक नहीं रहेगी, ज्यादा समय तक हमें निष्क्रिय नहीं बनाए रख सकेगी। अब और परिश्रम करके, चुनौती को स्वीकार करके हमें आगे बढ़ना है और परीक्षा में उत्तीर्ण होना है।”मंच पर बैठे छ: प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि उनके प्रदेशों में उनका कार्य कसौटी पर कसा जाएगा। राज्य सरकार की नीतियों और व्यवहार को हम परखेंगे और उसी आधार पर जनता के बीच जाएंगे। इसलिए उन पर यह जिम्मेदारी है कि वे ऐसा कार्य करें जिसकी सर्वत्र प्रशंसा हो।केन्द्र में सत्तारूढ़ नई गठबंधन सरकार की अस्थिरता में चिंता व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि हमने भी 24 दलों की गठबंधन सरकार चलाई थी। पर वह स्थिर थी और लोगों में भी उसकी स्थिरता को लेकर विश्वास था। परन्तु इस गठबन्धन सरकार के गठन के साथ ही मतभेदों के समाचार लोगों के विश्वास को डिगा रहे हैं। अब फिर से वातावरण में अस्थिरता की गूंज सुनाई दे रही है और यह देश के लिए अच्छा नहीं है। यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम ईमानदारी से प्रतिपक्ष का दायित्व निभाते हुए ऐसे वातावरण का निर्माण करें जिससे केन्द्र में स्थिरता आए। देश की आन्तरिक सुरक्षा और एकता के सम्मुख जो चुनौती निर्मित हुई है, उसका भी हम उत्तर देंगे।9
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